पाकिस्‍तान की कंगाली और गिलगित-बाल्टिस्तान पर्यटकों से खाली!

परमिट के लिए फीस बढ़ाने के साथ ही कई देशों जैसे, अमेरिका, सऊदी अरब और आस्ट्रेलिया द्वारा अपने सभी लोगों को यह सलाह देने से भी पर्यटक नहीं आए हैं कि पाकिस्तान की यात्रा न करें तो बेहतर है

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WEB DESK

पाकिस्तान में जम्मू—कश्मीर के कब्जाए हिस्से गिलगित बाल्टिस्तान में इस बार एक भी विदेशी पर्यटक झांकने तक नहीं आया। यह बात पाकिस्तान की वर्तमान कंगाली को और उजागर कर गई है। एक तो पाकिस्तान में खाने के लाले पड़े हैं तिस पर इस इलाके से पर्यटकों से होने वाली कमाई इस बार जीरो रही है। इसकी एक बड़ी वजह बताई जा रही है राजनीतिक अस्थिरता और दूसरी, कई देशों द्वारा अपने नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा न करने की चेतावनी देना।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरा इलाका गिलगित-बाल्टिस्तान विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। लेकिन पाकिस्तान में जिस तरह से सत्ता डगमगाई हुए है और गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं उससे जो थोड़े बहुत लोग यहां आना भी चाहते थे उन्हें भी कई दिनों तक वीजा न मिलने से गिलगित-बाल्टिस्तान जाने की इच्छा रखने वाले चंद विदेशी पर्वतारोही भी यहां नहीं आ पाए। यानी इस साल का यह सीजन पाकिस्तान के लिए यहां से कमाई का एक भी मौका नहीं दे रहा है।

पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध समाचार पत्र द डॉन की रिपोर्ट बताती है कि परमिट के लिए फीस बढ़ाने के साथ ही कई देशों जैसे, अमेरिका, सऊदी अरब और आस्ट्रेलिया द्वारा अपने सभी लोगों को यह सलाह देने से भी पर्यटक नहीं आए हैं कि पाकिस्तान की यात्रा न करें तो बेहतर है।

और तो और गिलगित बाल्टिस्तान का पर्यटन विभाग साफ बता रहा है कि कहां तो नवंबर से फरवरी तक चलने वाले जाड़ों विदेशी खोजियों या ट्रेकिंग पर जाने वालों की भरमार रहती थी, लेकिन इस बार अभी तक किसी को भी परमिट ही दिया गया है। इस सीजन में बस दो विदेशी पर्वतारोही दल वीसा लेने के लिए आए थे लेकिन इसमें होने वाली देरी के चलते उनका सारा कार्यक्रम ही चौपट हो गया। वे भी बैरंग लौट गए। ऐसा पिछले कई साल से देखने में नहीं आया था।

इस स्थिति पर पाकिस्तान के ‘अल्पाइन क्लब’ के सचिव करार हैदरी की टिप्पणी है कि मुल्क में सब डावांडोल है, राजनीतिक अंधियारा छाया है इसलिए इस इलाके में इस बार विदेशी लोग आए ही नहीं। टूर ऑपरेटर असगर अली का कहना है कि इसकी बड़ी वजह तो वीसा की नीति है। इसके जो देरी हुई उसकी वजह से भी लोगों के तय कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं। परमिट के लिए जो फीस लगा करती थी वह भी इस बार 40 प्रतिशत बढ़ा दी गई है, जिससे लोग नाराज हुए हैं।

वजह कुछ भी रही हो, पाकिस्तान को इस मद से जो राजस्व मिलता था आ कंगाली के आलम में उससे भी उसे हाथ धोना पड़ा है। खाली खजाने में एक नई पाई गिलगित बाल्टिस्तान की ओर से न आना, यह बड़ी बात मानी जा रही है।

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