सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह, निकाह हलाला, निकाह मुताह और निकाह मिस्यार के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए जल्द ही संविधान बेंच का गठन करेगा। आज भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की। तब कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए जल्द ही संविधान बेंच का गठन किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि अश्विनी उपाध्याय और सायरा बानो के बाद दिल्ली की महिला समीना बेगम ने बहुविवाह और निकाह-हलाला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। अपनी याचिका में इस महिला ने बहुविवाह और निकाह-हलाला को भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध घोषित करने और मुस्लिम पर्सनल लॉ की धारा 2 को असंवैधानिक करार देने की मांग की है।
जानिए क्या होता है मुताह निकाह
मुता विवाह एक निश्चित अवधि के लिए साथ रहने का करार होता है और शादी के बाद पति-पत्नी कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर एक अवधि तक साथ रह सकते हैं। साथ ही यह समय पूरा होने के बाद निकाह खुद ही खत्म हो जाता है और उसके बाद महिला तीन महीने के इद्दत अवधि बिताती है। इतना ही नहीं मुता निकाह की अवधि खत्म होने के बाद महिला का संपत्ति में कोई हक नहीं होता है और ना ही वो पति से जीविकोपार्जन के लिए कोई आर्थिक मदद मांग सकती जबकि सामान्य निकाह में महिला ऐसा कर सकती है।
जानिए क्या होता है हलाला
हलाला को आप ऐसे समझिए कि सलीम और सलमा का निकाह हो गया और अब उन सलीम स्लैम से झगड़ा करने लगा जिस वजह से दोनों में तलाक हो गया। लेकिन थोड़े समय लगा की उनसे गलती हो गई या दोनों का साथ रहने का मन हुआ और वह दोनों अब फिर से निकाह करना चाहते है तो ऐसे में सलीम और सलमा सीधे सीधे निकाह नहीं कर सकते इसके लिए सलमा को हलाला की प्रक्रिया से गुजरना होगा।
यानि की सलमा को किसी और से निकाह कर उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने होंगे, क्योंकि हलाला की प्रक्रिया में सेक्स को आवश्यक माना जाता है। उसके बिना हलाला को पूर्ण नहीं कहा जा सकता। इतना ही नहीं सलमा को शारीरिक सम्बन्ध बनाने के बाद अब दूसरे पति के उपर निर्भर रहना होगा की वह उसको तलाक दे तब जाकर वह सलीम से निकाह योग्य होगी। इसी पूरी प्रक्रिया को ही हलाला कहा जाता है।
जानिए क्या होता है मिस्यार निकाह
मिस्यार निकाह में आदमी-औरत का निकाह तो होता है। लेकिन कुछ बेसिक चीज़ों की अनिवार्यता के बगैर। इसमें एक नॉर्मल शादी का अभिन्न अंग माने जाते कुछ अधिकार छोड़ दिए जाते हैं।
मिस्यार निकाह के अनुसार साथ रहना ज़रूरी नहीं होता। दोनों अपनी-अपनी जगह एक दुसरे से दूर रहकर निकाह में बने रहते है। इसमें मेल-मुलाक़ात सिर्फ शारीरिक सम्बन्धों के लिए होती है। इसके अलावा निकाह करने वाली महिला अपने घरखर्चे के पैसे का अधिकार त्यागती है, तो शौहर पत्नी से घरेलु काम काज कराने का अधिकार छोड़ता है।
इस निकाह में वो सब खामियां हैं जो मुताह निकाह में हैं। जिसके दुष्परिणाम महिला को ही भुगतने होते हैं। इसमें भी पुरुष आसानी से निकाल कर आगे बढ़ जाता है। वहीं महिला सामजिक स्वीकार्यता को लेकर जीवन भर लड़ती रहती है, या चुपचाप सब सहती रहती है।
बरहाल सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए अलग से संविधान बेंच के गठन के निर्णय के बाद ये उम्मीद बंध रही है कि इनमें से कुछेक प्रथाएं बंद करने की तरफ कुछ तो कदम बढ़ेंगे। ये ज़रूरी भी है। इनमें से कुछ प्रथाएं बेहद गैरज़रूरी और मनुष्यता पर कलंक। जितनी जल्दी मुस्लिम कौम इनसे छुटकारा पा लें, बेहतर है।
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