दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फीस नहीं भर पाने के कारण एक छात्र को बोर्ड परीक्षा देने से रोकना भारत के संविधान की धारा का 21 के तहत गारंटीकृत बच्चे के अधिकारों का उल्लंघन होगा। जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने ये आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को फीस नहीं भर पाने की वजह से बोर्ड की परीक्षा में बैठने से रोका नहीं जा सकता है, खासकर तब जब वे दसवीं और बारहवीं की परीक्षा देने वाले हों। शिक्षा वो बुनियाद है, जिस पर छात्र का भविष्य निर्भर करता है और आखिरकार ये समाज का भविष्य तय करते हैं।
कोर्ट ने दिल्ली के इंडियन स्कूल के दसवीं कक्षा के एक छात्र को बोर्ड की परीक्षा में शामिल करने का आदेश दिया। छात्र के अभिभावक ने स्कूल की फीस जमा नहीं की थी, जिसकी वजह से उसे दसवीं की परीक्षा में बैठने नहीं दिया जा रहा था। छात्र के अभिभावक की आर्थिक स्थिति काफी खराब है, जिसकी वजह से फीस जमा नहीं हो पाई थी। दसवीं की प्रैक्टिकल परीक्षाएं 18 जनवरी से शुरू हो रही हैं। कोर्ट ने याचिकाकर्ता छात्र के अभिभावक की इस बात के लिए फटकार लगाई कि उसने कोर्ट का दरवाजा अंतिम समय में खटखटाया है।
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