स्वतंत्र भारत के इस मंदिर की नींव में पड़े हुए असंख्य पत्थरों को कौन भुला सकता है, जो स्वयं स्वाहा हो गए, किन्तु भारत के इस भव्य और स्वाभिमानी मंदिर की आधारशिला बन गए थे। स्वतंत्र भारत की नींव के एक ऐसे ही गुमनाम पत्थर के रूप में सम्पूर्ण भारत के साथ उत्तराखण्ड में भी आर्यसमाज के हैदराबाद सत्याग्रह के लिए क्रांति की अलख जगाने वाले देवभूमि हरिद्वार में जन्में क्रान्तिकारी बाबू प्रेम सिंह थे। हैदराबाद निजाम के विरूद्ध आर्य समाज के हैदराबाद सत्याग्रह में कठोर कारावास का दण्ड भोगने वाले हैदराबाद सत्याग्रह के नायक बाबू प्रेम सिंह जिनके विकट सत्याग्रह के फलस्वरूप हैदराबाद रियासत का भारत गणराज्य में विलय संभव हुआ था।
15 अगस्त सन 1947 को अंग्रेजों ने पूर्वनियोजित षड़यंत्र के माध्यम से अखण्ड भारत का विभाजन कर शेष भारत को स्वतन्त्र तो कर दिया था, परंतु इसके साथ ही वे यहां की सभी रियासतों, राजे-रजवाड़ों को यह स्वतन्त्रता भी दे गये कि वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में जा सकते हैं। देश की सभी रियासतें भारत में सम्मिलित हो गयीं परन्तु जूनागढ़, भाग्यनगर, हैदराबाद की रियासत भारत में सम्मिलित होने के विषय पर षड़यंत्रपूर्वक टेढ़ी-तिरछी हो रही थीं। इसका प्रमुख कारण इन दोनों रियासतों के मुखिया का मुसलमान होना था। उस समय हैदराबाद में वास्तव में हिन्दुओं की जनसंख्या तो सर्वाधिक थी, परन्तु प्रशासन और पुलिस में सुनियोजित तरीके से शत-प्रतिशत संख्या मुस्लिम थी, अतः हिन्दुओं का घोर उत्पीड़न होता था और उनकी कहीं सुनवाई भी नहीं थी। हैदराबाद के निजाम की इच्छा स्वतन्त्र रहने या फिर पाकिस्तान में मिलने की थी। निजाम इसके लिए अथक प्रयास कर रहा था। इन्हीं विकट परिस्थितियों में भारत को पुनः अखण्ड बनाने दिशा में कार्य करते हुए एक कदम आगे बढ़ा कर भारत सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने वहां सेना की कार्रवाई कर हैदराबाद को भारत में मिला लिया था।
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हैदराबाद रियासत के भारत में विलय की घटना से अनेक वर्ष पूर्व वहां के पीड़ित हिन्दू समुदाय ने हिन्दू महासभा तथा आर्य समाज के साथ मिलकर एक बड़ा आन्दोलन चलाया था, जिसमें असंख्य सत्याग्रही–आंदोलनकारी बलिदान हुए और अनेक आंदोलनकारियों ने गंभीर सजाएं भुक्ति तथा असंख्य लोगों ने गंभीर जख्म खाएं थे। हिन्दू समाज के इस सत्याग्रह में देशभर से लोग सहभागी हुए थे। बाबू प्रेम सिंह जिन्होंने देवभूमि हरिद्वार में आर्यसमाज के हैदराबाद सत्याग्रह आन्दोलन की चिंगारी जलायी थी। तत्कालिक समयकाल में उनका केवल नाम लेने मात्र से युवकों में राष्ट्रभक्ति जागृत हो जाया करती थी। अन्ततः ऐसे आंदोलनकारी सत्याग्रही वीरों का बलिदान रंग लाया था और 17 सितम्बर सन 1948 को हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हो गया। यह बेहद दुर्भाग्य का विषय है कि मात्र दो-चार दिन के लिए किन्हीं कारणों से जेल जाने वालों को तो भारत सरकार ने स्वतन्त्रता सेनानी मान कर उन्हें अनेक सुविधाएं प्रदान की और ताम्रपत्र भेंट किए थे। वहीं, हैदराबाद के भारत में विलय की पृष्ठभूमि लिखने वाले हिन्दू उत्पीड़न के विषय पर आर्य समाज के इस विराट हैदराबाद आन्दोलन के सत्याग्रहियों और बलिदानियों को कभी याद नहीं किया गया था।
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