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निजाम के अत्याचारों के विरुद्ध संघर्ष की दास्तान

हैदराबाद में निजामशाही ने हिंदुओं पर जो अत्याचार किए, जनता ने उनके विरुद्ध जमकर संघर्ष किया और भारतीयता की अलख जगाए रखी। परंतु ऐसे अनेक संघर्षों की दास्तान को इतिहासकारों ने दफन कर दिया। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर भारतीयों को सही इतिहास जानने का अधिकार है और इस अभाव को पूरा करती है डॉ. गोडबोले की यह पुस्तक

रतन शारदा by रतन शारदा
Mar 10, 2023, 05:10 am IST
in भारत, पुस्तकें
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संवित प्रकाशन ने हैदराबाद के निजाम के शासन और संघर्ष के बारे में पहले भी दो पुस्तकें प्रकाशित की हैं— ‘लिबरेशन स्ट्रगल आफ हैदराबाद – सम अननोन पेजेज’ और ‘निजाम्स रूल अनमास्क्ड।’ हैदराबाद के कट्टर इस्लामी शासन के 84 प्रतिशत हिन्दू प्रजा पर अत्याचार को इतिहास के पन्नों से गायब ही कर दिया गया है, साथ ही उसके विरुद्ध संघर्ष को भी। संवित प्रकाशन ने इस खाई को पाटने का सार्थक प्रयत्न किया है। डॉ. श्रीरंग गोडबोले द्वारा व्यापक शोध के आधार पर लिखी गई ‘हैदराबाद नि:शस्त्र प्रतिरोध- आरएसएस, आर्य समाज एवं हिन्दू महासभा का योगदान’ इस क्रम में तीसरी पुस्तक है।

यह पुस्तक से अधिक शोध ग्रंथ है। डॉ. गोडबोले ने मात्र 64 पृष्ठों में गागर में सागर भरने का काम किया है। उन्होंने हिन्दू समाज के नि:शस्त्र प्रतिरोध के तथ्यों को गहन शोध के आधार पर प्रस्तुत किया है। आर्य समाज, हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1938-1939 में सत्याग्रह और कई माध्यमों से इस अत्याचार का विरोध किया था और राष्ट्रभक्ति की अलख जगाए रखी।

पुस्तक में निजामशाही की संक्षिप्त पृष्ठभूमि दी गई है। निजामशाही मुगल शासकों से कम मतांध नहीं थी। लेखक ने बताया है कि किस प्रकार हिंदुओं को शिक्षा, सरकारी नौकरी इत्यादि से वंचित रखा गया था। यहां तक कि 1934-35 में आर्य समाज मंदिरों में यज्ञ, भजन इत्यादि पर पाबंदी और 1935 में मंदिरों में आरती इत्यादि पर भी रोक लगा दी गई थी। स्थानीय भाषाओं (तेलुगू) को दबा कर उर्दू को बढ़ावा दिया गया था जहां दुर्बल घटकों को बुरी तरह त्रस्त किया गया वही अलग-अलग नामों से जजिया कर वसूलने का लोभ भी शासकों ने नहीं छोड़ा।

लेखक ने पुस्तक में उस समय के महानायकों यथा डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर, गांधी जी, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर और स्थानीय हिन्दू नेताओं के हैदराबाद और निजाम के प्रति विचार और चल रहे संघर्ष में उनके वैचारिक और व्यावहारिक योगदान को पाठक वृंद के सामने रखा है। उस समय स्थापित स्थानीय सामाजिक संस्थाओं, जिन्होंने संघर्ष खड़ा किया, के नाम को आप शायद पहली बार जान पाएंगे।

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बापट के 1939 के उद्गार हैं, ‘हिंदुओं की जिन मांगों को हिन्दू सभा ने रखा है, उनमें कोई भी मांग अनुचित नहीं है। आर्य समाजियों की मांगें भी अन्यायपूर्ण नहीं। दोनों पर ही कितने वर्षों से अन्याय और दमन हो रहा है, यह कोई झूठ नहीं है। ऐसा होने पर भी कांग्रेस ने हिमायती होकर आर्य और हिंदुओं के गर्त में गिरने की प्रतीक्षा करते हुए, उनका पतन कैसे हो, और कब हम राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करें, यह आसुरी प्रवृत्ति बनाए रखी’

संघ-द्वेषी वर्ग का आरोप रहा है कि संघ ने हैदराबाद मुक्ति संग्राम में कोई भूमिका नहीं निभाई। उनके लिए यह पुस्तिका अत्यंत उपयोगी होगी, यदि वे पढ़ना चाहें तो। मैंने ‘संघ और स्वराज’ नामक पुस्तक कुछ वर्ष पहले लिखी थी, जिसमें संघ का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और उस समय के काल के बारे में तथ्यात्मक जानकारी है, लेकिन संघ से ईर्ष्या करने वाले फिर भी दोषारोपण से बाज नहीं आते। इसलिए मैंने कहा ‘यदि वे चाहें तो’!

डॉ. गोडबोले ने एक निष्पक्ष इतिहासकार के रूप में बिना बढ़ाए-घटाए उतना ही लिखा है, जितना दस्तावेजों से सिद्ध हो। इसमें डॉ. हेडगेवार का हैदराबाद के संघर्ष में संघ प्रमुख के नाते सशक्त सहयोग, संघ के कई बड़े अधिकारियों और स्थानीय कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों के सत्याग्रह में प्रत्यक्ष शामिल होने, कारागार में सजा भुगतने, निजामशाही के निंदनीय अत्याचार सहन करने इत्यादि के बारे में बताया गया है और आर्य समाज और हिन्दू महासभा के निर्भीक संघर्ष को उजागर किया गया है।

इस अध्ययन में कांग्रेस का इस इस्लामी राज्य के लिए कोमल हृदय, अपनी ही स्थानीय इकाई को संघर्ष से रोकना, डॉ. आंबेडकर का इत्तिहादे-मुसीलमीन (आज की एआईएमआईएम) के प्रति विरोध और अपने अनुसूचित जाति के बंधुओं को उनसे कोई संबंध न रखने की स्पष्ट राय इत्यादि तथ्य भी सामने आते हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से निजाम को भारत विरोधी करार दिया था। वहीं, लेखक का कहना है कि ‘रियासत हिन्दू है या मुसलमान, इस पर गांधी जी की नीति तय होती थी।’ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण लेखक उनके मैसूर राज्य और हैदराबाद रियासत के बारे में व्यवहार से देता है।

स्वाधीनता प्राप्त किए हमें 75 वर्ष हो चुके हैं। हमें आज ऐसी कई अनकही अनसुनी संधर्ष गाथाएं जानने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस आजादी के लिए न जाने कितने अज्ञात, सामान्य जनों ने असाधारण त्याग और अपना सर्वस्व भारत माता के चरणों में वार दिया। यह उनका हम पर ऋण है। उनके जीवन और संघर्ष को जान कर हम उनके प्रति श्रद्धानवत तो हो ही सकते हैं। 

मैं पुस्तक से केवल एक उद्धरण यहां दे रहा हूं, ताकि आप उस समय की परिस्थिति और कांग्रेस के दोहरे मापदंड की कल्पना कर सकें। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी सेनापति बापट के 1939 के उद्गार हैं, ‘हिंदुओं की जिन मांगों को हिन्दू सभा ने रखा है, उनमें कोई भी मांग अनुचित नहीं है। आर्य समाजियों की मांगें भी अन्यायपूर्ण नहीं। दोनों पर ही कितने वर्षों से अन्याय और दमन हो रहा है, यह कोई झूठ नहीं है। ऐसा होने पर भी कांग्रेस ने हिमायती होकर आर्य और हिंदुओं के गर्त में गिरने की प्रतीक्षा करते हुए, उनका पतन कैसे हो, और कब हम राष्ट्रीय आंदोलन शुरू करें, यह आसुरी प्रवृत्ति बनाए रखी। जिन राष्ट्रवादियों में मानवता नहीं, उनका राष्ट्रीयत्व उनको मुबारक हो और हैदराबाद तथा महाराष्ट्र में इन मानवताहीन राष्ट्रवादियों की राष्ट्रघातक पक्षान्धता शीघ्र ही जनता की नजरों में आए और उनका धिक्कार हो।’

यह पुस्तिका इतिहास के ऐसे गुमशुदा पन्नों को उजागर करती है कि आप चौंक जाएंगे। वंदे मातरम् की घोषणा करने के कारण 850 विद्यार्थियों को उस्मानिया विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय डॉ. हेडगेवार के प्रयत्नों से और कुलाधिपति श्री केदार जी के सहयोग से उन सभी को नागपुर के विभिन्न महाविद्यालयों में प्रवेश दिलवाने और उनके रहने की व्यवस्था इत्यादि की गई थी। सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचारों के बारे में जान कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। परंतु आप इस बारे में, किसी भी कांग्रेस नेता की एक भी टिप्पणी नहीं ढूंढ पाएंगे।

संवित प्रकाशन का यह पहला हिन्दी प्रकाशन है। इसके लिए वे अभिनंदन के पात्र हैं कि हैदराबाद में वे हिन्दी में अच्छे स्तर का प्रकाशन कर पाए। स्वाधीनता प्राप्त किए हमें 75 वर्ष हो चुके हैं। हमें आज ऐसी कई अनकही अनसुनी संधर्ष गाथाएं जानने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस आजादी के लिए न जाने कितने अज्ञात, सामान्य जनों ने असाधारण त्याग और अपना सर्वस्व भारत माता के चरणों में वार दिया। यह उनका हम पर ऋण है। उनके जीवन और संघर्ष को जान कर हम उनके प्रति श्रद्धानवत तो हो ही सकते हैं।

Topics: सर्वस्व भारत मातावंदे मातरम्Vande Mataramनिजामशाही मुगल शासकNizamshahi Mughal Rulersसंवित प्रकाशनSanvit Prakashan‘लिबरेशन स्ट्रगल आफ हैदराबाद - सम अननोन पेजेज’'Liberation Struggle of Hyderabad - Some Unknown Pages'veer savarkar‘निजाम्स रूल अनमास्क्ड'Nizam's Rule Unmaskedवीर सावरकरहिंदुओं को शिक्षाEducation for Hindusडॉ. हेडगेवारडॉ. बाबा साहेब आंबेडकरGandhijiDr. Hedgewarगांधी जीDr. GodboleDr. Babasaheb Ambedkarडॉ. गोडबोलेHindu Sabhaहैदराबाद के निजामहिन्दू सभाMother IndiaNizam of Hyderabad
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