नई दिल्ली। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर अतिरिक्त पाबंदी लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की धारा 19 (2) के तहत वाजिब प्रतिबंध के अलावा जनप्रतिनिधियों पर अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। कोर्ट ने ये भी कहा कि लंबित मामलों में मंत्री का बयान सरकार का बयान नहीं माना जा सकता है। अगर मंत्री के बयान से केस पर असर पड़ा हो, तो कानून का सहारा लिया जा सकता है।
इस मामले पर सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट देख रहा है कि क्या किसी आपराधिक केस पर बेवजह टिप्पणी से मंत्रियों या अफसरों को रोका जा सकता है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली बेंच ने 11 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। वर्ष 2016 में बुलंदशहर गैंगरेप मामले में आजम खान के बयान के बाद इस मामले की शुरुआत हुई थी। पांच अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने बुलंदशहर गैंगरेप पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान के बयान के बाद सुनवाई को जरूरी माना था और इस मसले को संविधान बेंच को रेफर कर दिया था।
दुष्कर्म पीड़िता के पिता ने यह याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व ने दुष्कर्म की घटना को राजनीतिक साजिश करार दिया था। आजम खान ने बाद में अपने बयान के लिए माफी मांग ली थी।
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