पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं, इसलिए वहां के तमाम नेता फौज के जनरलों को खुश करने में लगे हैं। कोई इस्लामी बैंकिंग शुरू करा रहा है, कोई परमाणु बम की धमकी दे रहा है, तो कोई संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रधानमंत्री को लेकर ओछी बात कर रहा है
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध नितांत छिछली और बेतुकी टिप्पणी की और आलोचना होने पर एक सीढ़ी ऊपर की बेशर्मी का प्रदर्शन करके दिखाया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए प्रलाप करते रहना पाकिस्तान का मुख्य काम है। सिर्फ संयुक्त राष्ट्र में ही क्यों, कहीं भी और कभी भी। पाकिस्तानियत यही है। हालांकि भारत का सोशल मीडिया ही पाकिस्तानी विदेश मंत्री को मुंहतोड़ जवाब दे चुका है। लेकिन इस प्रलाप को सीमा के दूसरी तरफ से देखा जाए, तो इसे पूरी तरह समझना सरल हो जाता है।
सबसे पहले यह देखें कि बिलावल भुट्टो, जरदारी भुट्टो या फिलहाल जो भी नाम हो, अंतत: एक वंशवादी पार्टी के वारिस भर हैं। ये पहले पार्टी के सह-मालिक थे, अब साथ में पाकिस्तान के विदेश मंत्री भी हैं। उनकी यह वंशवादी पृष्ठभूमि ही उनका सारा भेद खोल देती है। वास्तव में भूमिपुत्रों का उदय वंशवादी पार्टियों को हजम नहीं होता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज विश्व के कई देशों की राजनीति में एक मानक हैं। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और जापान से लेकर इस्राएल तक। खुद पाकिस्तान के कई नेता बार-बार मोदी के नाम पर राजनीति करते रहते हैं। लिहाजा, वंशवादी नेता पुत्र-पुत्रियां उनके खिलाफ प्रलाप करने में अपनी पारिवारिक हैसियत जताने पर सुख महसूस करते हैं। तमाम अन्य शहजादों की तरह, बिलावल भुट्टो जरदारी अपनी योग्यता या मेहनत के बूते एक बार का भोजन भी कमा सकने की हैसियत नहीं रखते हैं। लेकिन अपनी पारिवारिक विरासत के बूते, जो मूलत: पुश्तैनी लूट पर टिकी है, उन्होंने अपने जीवन का काफी सारा समय लंदन के महंगे क्लबों और अमीर बारों में व्यतीत किया है। नाना, अम्मी, अब्बा- सबके और सबकी लूट के, एकमात्र वारिस होने के कारण उनका आक्रामक, हिंसक और आपराधिक स्वभाव वाला बिगड़ैल बच्चा होना बिल्कुल स्वाभाविक है।
यह पाकिस्तान की मजबूरी है कि उसे बिलावल को ऐसे समय अपना विदेश मंत्री बनाना पड़ा है, जब उसके पास विदेशों से भीख मांगने के अलावा कोई चारा नहीं है और विदेशी संबंधों में इतनी भी गुंजाइश नहीं है कि कोई समझदार व्यक्ति वहां हल्की सी भी शरारत कर सके। लेकिन क्या करें, नाम में भुट्टो है, भले ही जोड़ा गया हो। वैसे उनकी मां बेनजीर ने कभी अपने नाम के आगे जरदारी नहीं लगाया। फिर भी, बिलावल की कुल राजनीतिक हैसियत उनका नाम ही है। जुल्फिकार अली भुट्टो उनके नाना थे। बांग्लादेश में बंगालियों के कसाई। बांग्लादेश में याह्या-भुट्टो के किए नरसंहारों पर पाकिस्तान आज तक हीले-हवाले देने से ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहा है। फौज नेताओं को जिम्मेदार ठहराती है और नेता फौज को। बिलावल के नाना ने कभी कहा था कि पाकिस्तान घास की रोटी खाएगा, लेकिन एटम बम बनाएगा। आज पाकिस्तान उनके दिखाए रास्ते पर काफी आगे बढ़ चुका है।
इसके बाद आती हैं उनकी मां बेनजीर भुट्टो। बेनजीर मुगल और उत्तर-मुगल इतिहास की शानदार मिसाल हैं। निहायत मुगलिया अंदाज में बड़े भाई मुर्तुजा भुट्टो को पुलिस की गोलियों से मरवाकर और 26 की उम्र में शाहनवाज भुट्टो की फ्रांस के एक होटल में संदिग्ध मौत के बाद वह भुट्टो खानदान की निष्कंटक वारिस बनीं। हालांकि शहीद वाला दर्जा सिर्फ जुल्फिकार अली भुट्टो के नाम रहा। बेनजीर का भी अधिकांश समय लंदन में बीता। हालांकि उनके पति बार-बार पाकिस्तान की जेलों में रहे। लंदन में तमाम तरह की ‘हाई-लाइफ’ के लिए जानी जाने वाली बेनजीर की ही पहल पर और उन्हीं की देख-रेख में तालिबान को तैयार किया गया। कश्मीर में आतंकवाद के लिए मशीनरी खड़ी करने के लिए भी बहुत अंश तक बेनजीर जिम्मेदार थीं। इसके बाद आते हैं बिलावल के पिता और बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी पर। जरदारी को पाकिस्तान के इतिहास के सबसे भ्रष्ट राजनेताओं में से एक माना जाता है। उनका एक नाम ‘मिस्टर टेन परसेंट’ है। पाकिस्तान की अवाम मानती है कि उसकी मौजूदा गरीबी के लिए जरदारी सरीखे लोग जिम्मेदार हैं, जिन्होंने पाकिस्तान का जर्रा-जर्रा लूट लिया। जरदारी को पाकिस्तान की अवाम ‘आम आदमी का कसाई’ मानती है।
एक और पहलू यह है कि एक-दो महीने में पाकिस्तान में चुनाव होने वाले हैं। चुनाव माने वहां की सेना ताश के पत्ते कैसे फेंटेगी और किस ‘जोकर’ को अपना पहला पत्ता बनाएगी- यह तय होना है। लिहाजा, पाकिस्तान के सारे नेता जनरलों को खुश करने में लगे हैं। वित्त मंत्री इस्लामी बैंकिंग शुरू करा रहा है एक और मंत्री परमाणु बम की धमकी दे रहा है। बाकी सब भी अपने-अपने स्तर पर लगे हुए हैं। ऐसे में बिलावल ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए जो कुछ कहा, वास्तव में उससे भिन्न कुछ कर सकना उनके वश का भी नहीं था। हालांकि सेना की खुशामद करने से बिलावल को कोई लाभ हो सकता है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। उनके नाना भी अपने समय में सेना के सबसे पसंदीदा नेता थे।
वह सेना के ऐसे प्यादे माने जाते थे, जिन्होंने आगे बढ़कर वजीर बनने की कोशिश की थी और लिहाजा सेना ने ही उन्हें फांसी के तख्ते पर पहुंचा दिया था। इसी प्रकार, बेनजीर भुट्टो ने तालिबान बनाकर और कश्मीर में आतंकवाद को पाल-पोस कर सेना का पसंदीदा बनने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें भी सेना ने गोली से उड़ा दिया था। ध्यान दीजिए कि जिस तरह रावलपिंडी में 20 फीट की दूरी से बेनजीर को एक ही गोली से उड़ाया गया था, उतना सटीक निशाना लगाना पाकिस्तान में सेना के एसओजी के अलावा किसी के वश की बात नहीं है। सेना की हुकूमत ने तुरंत जिस तरह सारे घटनास्थल को पानी की बौछारों से धुलवा दिया था, उसका भी उद्देश्य बहुत साफ था। खुद जरदारी की हुकूमत, जो ‘शहीद’ बेनजीर के नाम पर सत्ता में आई थी, इस हत्याकांड की अंतरराष्ट्रीय जांच कराने की गुहार लगाती रह गई थी।
पाकिस्तान में फौज से सभी डरते हैं। भारत विरोध की भावना को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करते रहने में पाकिस्तानी सेना का अपना हित है। वह भारत का हौवा दिखा कर पाकिस्तान की सत्ता पर बने रहना चाहती है – यह एक खुला रहस्य है। लेकिन अब इसमें एक पहलू और जुड़ गया है। विदेशी मुद्रा भंडार की जबरदस्त कमी का सामना कर रहे पाकिस्तान की आखिरी उम्मीद यही है कि कोई खाड़ी देश तरस खाकर उसे अंतत: कुछ इनाम या जकात दे देगा। उसके लिए पाकिस्तान को अपनी इस्लामी पहचान को ज्यादा से ज्यादा सान चढ़ाना होगा। खुद पाकिस्तान के अंदर जो समझ विकसित हो चुकी है और जिसे ज्यादा से ज्यादा पुष्ट करके रखने में सेना को अपना स्वार्थ दिखता है, वह यह है कि स्वयं को भारत का और हिंदुओं का प्रबल विरोधी जताया जाए। यही कारण है कि बिलावल भुट्टो जरदारी को यह पूरा विश्वास रहा होगा कि वह जितने ज्यादा भारत विरोधी नजर आएंगे, उन्हें उतना कट्टर इस्लामपरस्त माना जाएगा और उसी अनुपात में वह सेना और संभावित दानदाता मुस्लिम देशों के पसंदीदा नेता बन सकेंगे। लेकिन पाकिस्तान के आंतरिक पहलू अब उस गंभीर और निर्णायक स्थिति में पहुंच चुके हैं, जहां से वे सिर्फ विनाश की ओर जा सकते हैं। पाकिस्तान की कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसे वह फौरी तौर पर या मध्यम अवधि में भी सुलझा सकता हो।
पाकिस्तान को 130 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज चुकाना है। जेब खाली है और जकात के पैसों को छोड़कर विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकने की उम्मीद लगभग शून्य है। वहीं, जनसंख्या विस्फोट उस स्थिति में है, जिसे माल्थस के नियम के अलावा कोई भी स्थिति नियंत्रित नहीं कर सकती है। सबसे खतरनाक बात यह है कि पाकिस्तान में सेना और जनता दोनों को एक साथ संतुष्ट कर सकना किसी के लिए संभव नहीं रह गया है। दोनों में से किसी को भी नाराज कर सकना भी संभव नहीं है। इस्लाम वह लाठी है, जिससे सेना जनता को हांकना चाहती है और वहां के मौलवी सेना और सरकार को हांकना चाहते हैं। इससे भी बड़ी विडंबना है पाकिस्तान की जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा या तो पूरी तरह अनपढ़ है या उतना ही पढ़ा-लिखा है, जितना मदरसों में पढ़ाया जाता है। ऐसी उलझनों भरा पाकिस्तान अपने परमाणु बमों के कारण पूरे विश्व के लिए एक चिंता का विषय है। जहां तक आतंकवाद का प्रश्न है, शायद पाकिस्तान का यह विश्वास सही है कि पहले अमेरिका और अब चीन की तरह दुनिया का कोई न कोई देश उसकी ढाल बनकर खड़ा होता रहेगा।
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