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2014 के बाद सब बदल गया

पूर्व थलसेना प्रमुख और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह। उन्होंने सेना में भ्रष्टाचार, 26/11 आतंकी हमला रोकने में तत्कालीन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की चूक सहित अन्य कई विषयों पर बात की

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Dec 7, 2022, 07:47 am IST
in भारत, विश्लेषण
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सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने कहा कि 2014 के बाद भारत बहुत बदल गया है। दुनिया भारत को न केवल गंभीरता से लेती है, बल्कि उसका पूरा सम्मान भी करती है

महाराष्ट्र में आयोजित ‘मुंबई संकल्प’ कार्यक्रम में एक सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने किया। इसमें वक्ता थे पूर्व थलसेना प्रमुख और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह। उन्होंने सेना में भ्रष्टाचार, 26/11 आतंकी हमला रोकने में तत्कालीन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार की चूक सहित अन्य कई विषयों पर बात की।

जनरल सिंह ने कहा कि जब-जब देश में आत्मनिर्भरता की बात हुई, रक्षा तंत्र में सक्रिय एक मजबूत लॉबी ने उसका विरोध किया। इस कारण भारत रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो सका। मौजूदा सरकार में ‘मेक इन इंडिया’ प्रक्रिया शुरू हुई, तब भी विरोध हुआ, क्योंकि उनका जोर आत्मनिर्भरता पर था ही नहीं। लेकिन हमारा ध्येय है कि हम हर चीज देश में बनाएं और आत्मनिर्भर बनें। कई बार तकनीक हमारे पास नहीं होती, उस स्थिति में दूसरे देशों से तकनीक लेकर इसे आगे बढ़ाने की कोशिश होनी चाहिए। लेकिन अगर घर में ही गड़बड़ी करने वाले हों, जिनका उद्देश्य सिर्फ मुनाफाखोरी है, तो यह प्रयोग असफल हो जाता है।

सेना में भ्रष्टाचार पर उन्होंने कहा कि सेना को ट्रक आपूर्ति करने वाली कंपनी कहती थी कि वह इसका निर्माण करती है, लेकिन असल में वह तकनीक ही नहीं, पूरा सामान बाहर से मंगा कर उसे असेंबल करती थी। इस तरह, 15-20 लाख रुपये में मिलने वाला ट्रक सेना को एक करोड़ रुपये में बेचा जाता था। दूसरी बड़ी बाधा बाबू तंत्र या लाल फीताशाही है, जो नीतियों को आगे ले जाने में बाधक है। खुद कोई पहल नहीं करना चाहता।

उन्होंने कहा कि बोफर्स के साथ उसकी तकनीक भी खरीदी गई थी। लेकिन 20-25 साल तक वह अलमारी में बंद रही। यह गलती किसकी है? इन्हीं गलतियों के कारण दूसरे देशों के आगे झोली फैलाने की नौबत आती है। लोग इसका फायदा उठाते हैं। 1962 में जो गलती हुई, वह दोबारा न हो।

2014 के बाद सेना में आए बदलावों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मुंबई हमले में जिन नंबरों का प्रयोग किया गया, वे कोलकाता से खरीदे गए थे। हमने खरीदे गए 10-12 नंबरों की सूचना आईबी से साझा की थी। यह आशंका भी जताई थी कि आतंकी हमलों में इनका इस्तेमाल हो सकता है। 26/11 हमले में इनमें से 4 नंबरों का इस्तेमाल हुआ। अगर इनपुट को गंभीरता से लेते हुए निगरानी की जाती तो आतंकियों को पकड़ा जा सकता था। लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया।

आज ऐसी स्थिति नहीं है। 2014 के बाद बहुत कुछ बदला है। पहले जब आतंकी हमला होता था तो कहा जाता था कि ‘हम निंदा करते हैं।’ फिर ‘घोर निंदा’ और ‘अति घोर निंदा’ करते थे। 2014 के बाद हमने एक बार जरूर कहा कि ‘निंदा करते हैं’, लेकिन उसके बाद हमने साफ-साफ कहा कि दोबारा ऐसा हुआ तो हम बोलेंगे नहीं, कर के दिखाएंगे। घर में घुस कर मारेंगे। हमने यह किया भी। यह बदलाव आया है।

वैश्विक परिदृश्य में हो रहे बदलावों पर उन्होंने कहा कि कूटनीति और रणनीति साथ-साथ चलती है। कूटनीति का इस्तेमाल एक सीमा तक होता है। उसके आगे रणनीति काम आती है। तब दुनिया भी आपका साथ देती है, क्योंकि वह नहीं चाहती कि युद्ध हो। दुनिया लचकदार नीति या सहनशीलता की कद्र नहीं करती है। जिधर वजन होता है, दुनिया उस तरफ झुकती है। युद्धग्रस्त देशों में फंसे भारतीय छात्रों को सकुशल निकालने में आई चुनौतियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि परिस्थितियों के अनुसार बचाव के तरीके अलग-अलग होते हैं।

पहले पंजाब में ड्रग्स खेतों में गिराई जाती थी या सीमा के पास पैकेट खिसकाए जाते थे, लेकिन सख्ती के बाद ड्रग्स तस्करी के मामलों में कमी आई है। ड्रग्स की बड़ी-बड़ी खेप पकड़ी जा रही है। ऐसे में तस्कर दूसरा ठिकाना तलाशेंगे, जहां से उन्हें अधिक पैसे मिलेंगे। कहने का तात्पर्य है कि जब नुकसान होगा तो कोई हमसे शत्रुता नहीं रखेगा, चाहे वह चीन हो या पाकिस्तान। 

यमन में जब हालात बिगड़ रहे थे, तब वहां करीब 3,500 भारतीय फंसे हुए थे। शुरुआती आकलन के हिसाब से एयर इंडिया के दो जहाज मस्कट में तैयार थे। सुषमा जी ने मुझे मस्कट जाने को कहा, लेकिन मस्कट दूर था। इसलिए नक्शे के हिसाब से जिबूती जाने का फैसला किया। वहां बचाव कार्य में मुश्किलें आई। तो सऊदी अरब से बात की, जो उस लड़ाई में अगुआ था। फिर प्रधानमंत्री के साथ मैं सना गया। लेकिन वहां परिवहन और संचार के साधन नहीं थे। बमबारी के कारण हवाई अड्डा और पट्टियां भी टूटी हुई थीं। किसी तरह हमने करीब 7,000 लोगों को निकाला। इनमें 5,000 भारतीय थे, जबकि 2,000 लोग अन्य 48 देशों के थे। उनमें अमेरिका और पाकिस्तान सहित कई देशों के लोग थे।

इसी तरह, दक्षिण सूडान में हमें अलग तरह की दिक्कतें आई। हमें तो यह भी नहीं मालूम था कि हम हवाईअड्डे पर उतर सकते हैं या नहीं। फिर भी सी-70 लेकर गए थे, क्योंकि हम एयर इंडिया का विमान लेकर जाते तो पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया होती। हालांकि आपात स्थिति में वे हवाईअड्डे को सुरक्षा देने के लिए तैयार थे। इस तरह, वहां से लोगों को निकाला। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान आपरेशन गंगा अलग तरह का अभियान था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सूझ-बूझ के कारण यह अभियान भी सफल रहा। यूके्रन की सीमाएं अलग-अलग देशों के साथ मिलती हैं। यूक्रेन से एक व्यक्ति नहीं निकल सकता था, वहां से हमने अपने 22,500 लोगों को निकाला। पोलैंड, हंगरी, रोमानिया, बुल्गारिया और चेकोस्लोवाकिया से बचाव अभियान चलाया गया। शुरुआत में दिक्कतें आईं, क्योंकि सभी लोग पोलैंड के रास्ते निकलना चाह रहे थे। उसी रास्ते से यूक्रेन के लोग भी निकलना चाह रहे थे। सड़क के दोनों तरफ बर्फ जमी हुई थी, इस कारण 25 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। लेकिन शुरुआती दिक्कत के बावजूद हमने न केवल विद्यार्थियों को, बल्कि उनके पालतू जानवरों को भी निकाला।

सत्र में अपने विचार रखते हुए जनरल वीके सिंह

इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री जी को जाता है। उन्होंने जिस तरह से अपने रिश्ते बनाए हैं, उसके कारण पूरे विश्व में उनका बहुत सम्मान है। चूंकि रूस और यूक्रेन के साथ हमारे संबंध अच्छे थे, इसलिए जब-जब हमें संकट ने घेरा, तब-तब हमने दोनों पक्षों से बात की और हमें सहायता मिली। जब मैं पोलैंड में था तो वहां के प्रधानमंत्री ने मुझसे यहां तक कहा था कि इस इलाके में अगर कोई शांति स्थापित करा सकता है, तो वह हैं आपके प्रधानमंत्री।

 

पाकिस्तान को लेकर भारत के रुख पर उन्होंने कहा कि यहां भी हालात बदले हैं। अब शायद उन्हें समझ में आने लगा है कि आज भारत अगर संबंध सुधारने की बात करता है तो आतंकवाद से घबरा कर नहीं। भारत ऐसा इसलिए कहता है, क्योंकि सीमा पर उसके नागरिक सुरक्षित हैं। दूसरी बात, यदि किसी मुद्दे पर जवाब मिलने की उम्मीद होगी, तभी बातचीत होगी। अगर पाकिस्तान से वही घिसा-पिटा जवाब मिलेगा तो कोई फायदा नहीं। पहले वह आतंकवाद रोके तो हम संबंध सुधारने के लिए तैयार हैं। हम तो मुसीबत में भी उनकी सहायता करते हैं।

जनरल वीके सिंह ने कहा कि आज आतंकवाद के निर्यात में पाकिस्तान को अधिक सफलता नहीं मिल पा रही है। कश्मीर मुद्दे पर भी उसे मुंह की खानी पड़ रही है। लेकिन लोगों को गुमराह करने में अधिक समय नहीं लगता। हमारे यहां तो वैसे भी बहुत से लोग गुमराह होने के लिए तैयार रहते हैं। इसका कोई इलाज नहीं है। उन्हें तिरंगा पसंद नहीं है। वे कहते हैं कि हम आजाद हैं और कुछ भी कर सकते हैं। इसीलिए वे आतंकवाद को बढ़ावा देते रहेंगे। लेकिन जैसे-जैसे उन पर अंकुश लगेगा, उनका नुकसान बढ़ता जाएगा और उनकी गतिविधियां अपने आप कम होती जाएंगी।

पंजाब का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले पंजाब में ड्रग्स खेतों में गिराई जाती थी या सीमा के पास पैकेट खिसकाए जाते थे, लेकिन सख्ती के बाद ड्रग्स तस्करी के मामलों में कमी आई है। ड्रग्स की बड़ी-बड़ी खेप पकड़ी जा रही है। ऐसे में तस्कर दूसरा ठिकाना तलाशेंगे, जहां से उन्हें अधिक पैसे मिलेंगे। कहने का तात्पर्य है कि जब नुकसान होगा तो कोई हमसे शत्रुता नहीं रखेगा, चाहे वह चीन हो या पाकिस्तान।

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