गत दिनों जबलपुर में कुटुंब एकत्रीकरण कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दायित्ववान कार्यकर्ताओं के परिवार वालों ने भाग लिया। इस अवसर पर सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि समाज में कुटुंब के नाते एक उदाहरण प्रस्तुत करना हमारा कर्तव्य बन गया है। स्वभाषा, स्वदेशी का आचरण, देश-समाज के लिए अपने धन-साधनों का उपयोग, सबकी देखरेख, सब प्रकार के योग्य आचरण की आज आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि सारी व्यवस्था गृहस्थाश्रम पर चलती है। इसलिए गृहस्थाश्रम को धन्य कहा गया है। भारतीय तत्व दर्शन की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भोगवादी जीवनशैली में व्यक्तिवाद केंद्रीय स्थान पर है, लेकिन हमारी प्राच्य परंपरा में कुटुंब को समाज की इकाई माना गया है। कुटुंब से व्यक्ति और समाज दोनों का, सब प्रकार से पोषण होता है। धर्म की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म सारी सृष्टि के साथ जीना सिखाता है।
धर्म सबके विकास का मार्ग है और गृहस्थाश्रम धर्म की शिक्षा का स्थान। इसलिए प्राचीनकाल से ही हमारे परिवारों में बड़ों का आदर करना सिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता का व्यवहार हर परिवार में होना आवश्यक है। अपने पास-पड़ोस, कुटुंब और कार्यस्थल में हमें समानता के आचरण को स्थापित करना है।
हमारे निकट रहने वाले परिवार किसी भी जाति के हों, हमारे आत्मीय व्यवहार के दायरे में होने चाहिए। हमारे यज्ञ-हवन, पारिवारिक कार्यक्रमों में उनकी भी भागीदारी होनी चाहिए। सब प्रकार के भेद समाप्त होने चाहिए। संघ की शाखा, संघ के कार्यक्रमों में किसी की जाति नहीं पूछी जाती। सब साथ खाते-पीते हैं, मिलकर काम करते हैं। हर घर में ऐसा वातावरण बनाना है।
वर्तमान जीवनशैली की बात करते हुए उन्होंने कहा कि परिवार में परस्पर संवाद होना चाहिए। दूर रहने वाले परिजनों को साल में एक, दो बार एकत्रित होना चाहिए। नई पीढ़ी को अपने परिवार के इतिहास, पूर्वजों, सगे-संबंधियों, कुल स्थान, तीर्थ आदि के बारे में बताना चाहिए। कार्यक्रम में 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं की थी।
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