महाराष्ट्र के राजभवन में मां गुंडी देवी का मंदिर स्थापित है। माना जाता है कि सदियों पहले यहां के मछुआरों के कोली समाज द्वारा इस मंदिर को अपनी कुलदेवी के रूप में स्थापित किया गया था। अरब सागर से आने वाले समुद्री यात्रियों को सबसे पहले इस माता मंदिर के के दर्शन हुआ करते थे, इसलिए इसे जंबू द्वीप का पहला मंदिर भी माना जाता है। पुराने लोग कहते हैं कि इस मंदिर का इतिहास मुंबई की मुंबा देवी से भी पुराना है।
स्थानीय लोग इसे सागर माता मंदिर या सकलाई देवी का मंदिर भी कहते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां छत्रपति शिवाजी महाराज भी पूजन करने आते थे। अंग्रेजी शासन काल में राजभवन में ब्रिटिश हुकूमत की वजह से यह मंदिर लंबे समय तक उपेक्षित रहा। आजादी के बाद भी राजभवन में आए राज्यपालों का ध्यान इस मंदिर की ओर ज्यादा नहीं गया। 2019 में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के समक्ष इस मंदिर के महत्व के बारे में जानकारी आई तब उन्होंने इसका जीर्णोद्धार करवाना शुरू किया।
भगत सिंह कोश्यारी ने अपने सचिव राकेश नैथानी को इस मंदिर को फिर से संवारने सजाने का जिम्मा दिया और देखते ही देखते यह मंदिर पुनः भव्य रूप में स्थापित हुआ। मां गुंडी देवी को पूर्व की तरह एक गुफा में स्थापित किया। उनके पास ही मां दुर्गा और हनुमान जी की भव्य प्रतिमा लगाई गई है। मंदिर के बाएं तरफ एक शिला पर शिवजी की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है और उसके नीचे शिवलिंग और ठीक सामने नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी की मूर्ति स्थापित की गई है।
राकेश नैथानी ने बताया कि इस मंदिर के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी इसलिए नहीं रही क्योंकि राजभवन ये कई सदियों तक ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहा। उसके बाद जो राज्यपाल यहां रहे उनका भी ध्यान इस ओर नहीं गया। कुछ समय पहले उत्तराखंड के एक सन्यासी यहां आए। उन्होंने राज्यपाल कोश्यारी जी से इस मंदिर के विषय में जानकारी साझा की, फिर इस पर काम शुरू हुआ। नैथानी ने कहा कि हमारी कोशिश है ये मंदिर एक सिद्धपीठ के रूप में पुनर्स्थापित हो, यहां पर्यटकों, श्रद्धालुओं को क्रूज के जरिए मां के दर्शनों के लिए लाया जाए और लेजर शो के जरिए मां की महिमा का वर्णन किया जाए।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जब राजभवन आए तो उन्होंने भी मां के दर्शन किए और पूजा-अर्चना की। राजभवन के जनसंपर्क अधिकारी संजय बलोदी बताते हैं कि राज्यपाल कोश्यारी के व्यक्तिगत प्रयासों से ये मंदिर फिर से जाना गया है। ऐसा लोग बताते हैं कि ये सिद्धपीठ था, किंतु ब्रिट्रिश हुक्मरानों ने राजभवन को जब अपने कब्जे में लिया तब से यहां पूजा बन्द हो गई।
राज्यपाल कोश्यारी ने बताया कि राजभवन में स्थापित ये मंदिर आसपास रहने वालों की कुलदेवी का मंदिर है, अब हमने श्रद्धालुओं के इस मंदिर तक आने जाने के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। हर साल यहां एक दिन भंडारा और विशेष पूजा हो रही है। हमने राजभवन में एक पुजारी से सुबह-शाम आरती पूजन की व्यवस्था की है। राजभवन आने वाले लोगों को इस मंदिर तक ले जाकर माता के विषय में जानकारी दी जाती है। हमारी कोशिश है इस मंदिर के तट को और भी सांस्कृतिक रूप से भव्यता प्रदान की जाए।
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