‘गगनयान’ भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान है। इसके 2024 में लॉन्च होने की उम्मीद है। परीक्षण उड़ान में एक ह्यूमनॉयड होगा। इस रोबोट का नाम व्योम मित्र है। इसकी तस्वीर भी इसरो की ओर से जारी की जा चुकी है। बता दें कि इसरो अपने पहले ही प्रयास में मंगलयान मिशन को पूरा कर चुका है। पहले ही प्रयास में मंगल तक पहुंचने वाला भारत पहला देश है।
भारतीय वायुसेना के चार लड़ाकू पायलट इस मिशन का हिस्सा होंगे। उन्होंने रूस में ट्रेनिंग ली है। वे क्रू की तरह जाएंगे। गगनयान मिशन के तहत पहले मानवरहित सेटेलाइट और ह्यूमेनॉयड को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। सेंसर से प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण किया जाएगा। वहां के तापमान का रोबोट पर क्या असर पड़ रहा है, इसकी भी जानकारी मिलेगी। ट्रॉयल के परिणाम को देखने के बाद सेटेलाइट के साथ मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। गगनयान मिशन की सफलता के साथ ही मंगल ग्रह पर मानव के पहुंचने का रास्ता साफ हो जाएगा।
गगनयान मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2018 को लाल किले से की थी। इस मिशन पर करीब दस हजार करोड़ रुपये की लागत आ रही है। इसके सफल होते ही भारत अंतरिक्ष में इंसान को भेजने वाला चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्ष में इंसान को भेज चुके हैं। इसरो, डीआरडीओ और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड इसमें जिम्मेदारी निभा रहे हैं। मिशन में जीएसएलवीएमके 3 की जगह एचएलवीएम 3 का प्रयोग होगा। इसके ऊपरी हिस्से में क्रू स्केप सिस्टम है।
उत्तर प्रदेश के झांसी के मिलिट्री कैंट इलाके के बबीना फील्ड फायर रेंज में इसरो के गगनयान मिशन के पैराशूट सिस्टम का परीक्षण सफल रहा। इसरो ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से सफल परीक्षण के बाद पैराशूट की तस्वीर साझा की। इसरो के वैज्ञानिकों ने 18 नवंबर 2022 को बबीना फील्ड फायर रेंज में सफल परीक्षण किया। इसे इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट नाम दिया गया। इसमें पैराशूट की ताकत और क्षमता का परीक्षण किया गया, जिससे भविष्य में गगनयान के क्रू मॉड्यूल की लैंडिंग कराते समय कोई समस्या न हो। गगनयान में तीन पैराशूट मुख्य भूमिका निभाएंगे। इस परीक्षण से ये पता किया गया कि अगर एक पैराशूट खराब हो जाता है तो दूसरा पैराशूट क्रू मॉड्यूल की सही लैंडिंग करा पाएगा कि नहीं।
इन पैराशूट की मदद से पांच टन के डमी पैराशूट को जमीन पर लैंड कराया गया। इस परीक्षण के लिए भारतीय वासूसेना के आईएल-76 एयरक्राफ्ट की मदद ली गई। पैराशूट को ढाई किलोमीटर ऊपर से गिराया गया था। इसके बाद दो छोटे पाइरो-बेस्ड मोर्टार पायलट पैराशूट छोड़े गए। सात सेकेंड के भीतर दोनों पैराशूट खुल गए। इस परीक्षण को पूरा होने में महज 2 से 3 मिनट का समय लगा। यह परीक्षण इसरो, डीआरडीओ, भारतीय वायसेना और भारतीय सेना की मदद से पूरा किया गया।
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