गढ़वाल की महारानी कर्णावती से मुस्लिम शासक कांपते थे। विलक्षण बुद्धि एवं गौरवमय व्यक्तित्व के चलते हुईं इतिहास में प्रसिद्ध। पति के वीरगति प्राप्त होने पर सती नहीं हुईं बल्कि महान धैर्य और साहस के साथ उन्होंने राज्य संभाला।
भारतीय इतिहास में कर्णावती नाम की दो प्रमुख वीरांगना रानियों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। इनमें एक चित्तौड़ के शासक महाराणा संग्राम सिंह की पत्नी तथा दूसरी उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र की सुप्रसिद्ध शासिका महारानी कर्णावती। इतिहास में गढ़वाल की रानी का उल्लेख ‘नाक काटने वाली महारानी’ के नाम से है। उन्होंने लुटेरी मुगल सेना को अपमानित-पराजित कर बाकायदा उनकी नाक तक कटवाई थी।
गढ़वाल क्षेत्र में श्रीनगर नाम से ऐतिहासिक प्राचीन नगर स्थित है। श्रीनगर को राजधानी बनाकर पंवार वंश के महाराजा महिपतशाह राज्य करते थे। इनकी महारानी का नाम कर्णावती था। महाराजा अपने राज्य की राजधानी सन 1622 में देवालगढ़ से श्रीनगर ले आए थे। महाराजा महिपतशाह एक स्वतन्त्र, स्वाभिमानी और प्रजापालक शासक के रूप में प्रसिद्ध थे। महारानी कर्णावती भी ठीक वैसी ही थीं। कभी किसी आक्रांता को इन्होंने अपने राज्य में घुसने नहीं दिया।
महारानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपति शाह को राजगद्दी पर आसीन कर उस समय शासन सत्ता के सूत्र स्वयं संभाले थे जब दिल्ली में मुगल आतताई शाहजहां का कब्जा था। तत्कालीन समय में बादशाहनामा या पादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी गढ़वाल की इन रानी का जिक्र किया है। शम्सुद्दौला खान ने ‘मासिर अल उमरा’ में गढ़वाल की महारानी कर्णावती का उल्लेख किया है। इटली के लेखक निकोलाओ मानुची ने अपनी किताब ‘स्टोरिया डो मोगोर’ यानी ‘मुगल इंडिया’ में गढ़वाल की रानी के बारे में विस्तार से लिखा है।
इतिहास के झरोसे से पता चलता है कि राजा महिपतशाह एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके बाद उनकी पत्नी महारानी कर्णावती ने गढ़वाल राज्य की सत्ता संभाली। उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह उस समय केवल सात वर्ष के थे। रानी कर्णावती अपनी विलक्षण बुद्धि एवं गौरवमय व्यक्तित्व के लिए इतिहास में सुप्रसिद्ध हुईं।
पुत्र के नाबालिग होने के कारण रानी कर्णावती जन्मभूमि गढ़वाल के हित के लिए अपने पति के रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त होने पर सती नहीं हुई थीं बल्कि महान धैर्य और साहस के साथ उन्होंने पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका के रूप में राज्यभार संभाला था। रानी ने राजकाज संभालने के बाद अपनी देखरेख में शीघ्र ही शासन व्यवस्था को बेहद सुदृढ़ किया। गढ़वाल राज्य के सम्बंध में उपलब्ध प्राचीन साहित्य और प्रचलित लोकगीतों में रानी कर्णावती की प्रशस्ति में उनके द्वारा जनहित में निर्मित अनेक बावड़ियों, तालाबों, कुओं आदि का वर्णन आता है।
जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें बर्बर लुटेरा नजाबत खान भी शामिल था। वह इससे बेहद शर्मसार था और उसने पहाड़ों से मैदानों की तरफ वापस लौटते समय बेहद अपमानित अवस्था में आत्महत्या कर ली
इतिहास में मिलता है कि समर्थ गुरु स्वामी रामदास जी एक बार श्रीनगर पधारे और रानी कर्णावती को उनसे भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समर्थ गुरु रामदास ने रानी कर्णावती से पूछा कि क्या पतित पावनी मां गंगा की सप्त धाराओं से सिंचित भूखंड में यह शक्ति है कि वह वैदिक धर्म एवं राष्ट्र की मर्यादा की रक्षा के लिए आक्रमणकारी मुगलों से युद्ध कर उन्हें पराजित कर सके।
इस पर रानी कर्णावती ने विनम्र निवेदन किया कि पूज्य गुरुदेव इस राष्ट्र हित के कर्तव्य के लिए हम गढ़वाल निवासी सदैव कमर कसे हुए हैं। वीरगति को प्राप्त हुए राजा महिपतशाह ने कभी भी मुगल अधीनता स्वीकार नहीं की थी। बर्बर शाहजहां इससे बेहद चिढ़ा हुआ था ही। एक बार उसे किसी ने बताया कि श्रीनगर में सोने की खदानें हैं।
राजा महिपत शाह के शासनकाल में मुगल सेना तो गढ़वाल विजय के सम्बंध में सोचती भी नहीं थी। लेकिन जब राजा मृत्यु को प्राप्त हुए और रानी कर्णावती ने गढ़वाल का शासन संभाला तब मतांध शाहजहां ने सोचा कि उनसे शासन छीनना सरल होगा। गढ़वाल राज्य पर हमले की योजना बनाई गई। शाहजहां ने गढ़वाल पर कई हमले किए, लेकिन सफल नहीं हो सका। अंत में नजाबत खां नाम के एक मुगल आक्रमणकारी लुटेरे को गढ़वाल पर कब्जे की जिम्मेदारी सौंपी गयी।
लुटेरे नजाबत खां ने सन 1635 में एक विशाल प्रशिक्षित सेना लेकर गढ़वाल पर हमला किया। रानी कर्णावती ने सीधा मुकाबला करने के बजाय कूटनीति से काम लिया। रानी ने उसे अपनी सीमा में घुसने दिया लेकिन जब वे वर्तमान समय के लक्ष्मणझूला, ऋषिकेश से आगे बढ़े तो उसके आगे और पीछे जाने के समस्त रास्ते रोक दिये गये। गंगा के किनारे और पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ आक्रमणकारी मुगल सैनिकों के पास खाने की रसद सामग्री समाप्त होने लगी थी।
मुगल सेना कमजोर पड़ने लगी। ऐसे में लुटेरे नजाबत ने रानी के पास संधि का प्रस्ताव भेजा लेकिन उसे ठुकरा दिया गया। अब मुगल सेना की स्थिति बदतर हो गयी थी। रानी ने मुगलों को संदेश भिजवाया कि वह मुगल सैनिकों को जीवनदान दे सकती हैं, लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी।
अब मुगल सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो रहेगी ही तब पराजित और हताश-निराश मुगल सैनिकों के हथियार छीन लिए गये और अंत में उन सभी की एक-एक करके नाक काट दी गयी। जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें बर्बर लुटेरा नजाबत खान भी शामिल था। वह इससे बेहद शर्मसार था और उसने पहाड़ों से मैदानों की तरफ वापस लौटते समय बेहद अपमानित अवस्था में आत्महत्या कर ली थी।
उसके बाद मुगलों की हिम्मत नहीं हुई कि वे कुमाऊं-गढ़वाल की तरफ आंख उठाकर देखते।
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