जिस प्रकार से श्रद्धा की जघन्य और पूर्ण रूप से विचलित करने वाली हत्या की गई है, उससे पूरे देश में उबाल है। श्रद्धा की हत्या अपने में शैतानी कुकर्म की एक ऐतिहासिक घटना होने के साथ-साथ इस बात का प्रमाण भी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कितनी घटिया वोट बैंक राजनीति है कि दुर्घटना और धर्म का चयन कर ही उस पर विरोध जताया जाता है। भारतवासियों ने बीते वर्षों देखा कि किस प्रकार से अवार्ड वापसी गैंग, लुटियंस गैंग, मोमबत्ती गैंग, खान मार्केट गैंग, जेएनयू गैंग सड़क पर उतर आते थे, शाहीन बाग में दादियां आदि सड़क जाम, चक्का जाम किया करते थे, आज नदारद हैं। कहां हैं वरिष्ठ कांग्रेसी, वामपंथी, सपा, बसपा, तृणमूल नेता? कहां हैं ओवैसी बंधु, तौक़ीर रज़ा खान और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र? कहां हैं वे जालीदार टोपियां जो समय-समय पर सरकार के विरुद्ध सड़क पर उतरती हैं? क्यों सबको साँप सूंघ गया? क्या श्रद्धा उनकी बहन-बेटी नहीं थी?
आफ़ताब ने श्रद्धा का कत्ल किया है, इससे पूर्व भी फ़रीदाबाद में निकिता तोमर की तौसीफ़ ने दिन-दहाड़े और शाहरुख और नईम ने दुमका, रांची में 12वीं कक्षा की छात्रा ने की हत्या की थी। दक्षिण भी इस प्रकार के जघन्य पाप से अछूता नहीं क्योंकि वहां अशरीन सुल्ताना ने एक हिन्दू युवक बी नागराजू से विवाह कर लिया था और अशरीन सुल्ताना के भाई ने नागराजू की हत्या की कर दी थी। ये कैसे मुसलमान हैं? क्या यही इस्लाम है? सच्चाई तो यह है कि न तो ये सच्चे मुसलमान हैं और न ही यह सच्चा इस्लाम है। ये सब इस्लाम और मुसलमानों के नाम पर धब्बा हैं। मगर यह भी एक सच्चाई है कि सामने वाला इस्लाम कुरान, हदीस या कोई और ग्रंथ पढ़ कर नहीं समझेगा बल्कि एक मुस्लिम के चाल-चलन, बोल-चाल, किरदार और उसके व्यवहार को देखकर समझेगा।
जाने-माने शिक्षा व भाषाविद डाo प्रदीप कुमार जैन का मानना है जिस प्रकार से आफ़ताब ने श्रद्धा की हत्या कर उसको इस प्रकार से काटा जैसे किसी बकरे या मुर्ग़ी को काटा जाता है, इस बात की ओर इशारा करता है कि बचपन से ही ये लोग बकरा ईद आदि पर बकरों का ज़िबह (काटना) होना और उनके 20-25 हिस्से बना कर गरीबों में बांटने के आदी होते हैं। आफ़ताब ने भी बचपन से यह देखा होगा और एक एक्सपर्ट की तरह उसने श्रद्धा के भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले और जंगल में फेंक आया। इस संदर्भ में लेखक बताना चाहेगा कि उसके घर में भी बकरा ईद पर कुर्बानी होती थी, मगर जब उसके बच्चों ने रोना बिलखना शुरू कर दिया कि पापा इतने प्यार से बकरे को लाते हैं और घर के सब लोग इतने चाव से उसे पत्ते, दाना, जौ आदि खिलाते हैं और फिर उसके गले पर छुरी फेर देते हैं तो उसने बकरे ज़िबह करना बंद कर दिये और उनके पैसों को ज़रूरतमंद लोगों में बांटना शुरू कर दिया।
इस संदर्भ में इंद्रेशजी ने बड़ी दिलचस्प बात कही है कि अगर सुन्नत-ए-इब्राहीमि निभानी ही है तो केक की शक्ल में बना बेकरी वाला बकरा काटा जाए। इस पर इस्लाम के जानकार बिल्कुल बात करने को तैयार नहीं होते, मगर इस पहलू पर भी सोचना चाहिए कि अगर गरीबों की मदद करनी ही है तो बकरे काटे बिना ही हो सकती है। वैसे इस बात पर भी मुस्लिम समाज बंटा हुआ है। कुछ लोग खुद कुर्बानी न कर अपने हिस्से डालकर बंटवा देते हैं। उनका मानना है कि खेद का विषय तो यह है कि शिक्षित मुस्लिम युवा वर्ग, जिसे सही मायने में इस्लाम का पैग़ाम नहीं पहुंचा रहे हैं, जिसके कारण इस्लाम और मुस्लिमों की साख को बट्टा लग रहा है।
अगर सामने वाला आफ़ताब है, तौसीफ़ है या कफील है (जो 2007 में ग्लासगो हवाई अड्डे पर विस्फोटकों की गाड़ी लेकर घुस गया था) और बेगुनाह हिन्दू लड़कियों या इन्सानों का कत्ल कर रहा है, तो दूसरे धर्म वाला यही समझेगा कि इस्लाम ऐसा ही होगा, जबकि यह बिलकुल अनुचित है, क्योंकि कोई भी धर्म बेगुनाहों की हत्या व लव जिहाद आदि की शिक्षा नहीं देता। इस्लाम तो यहाँ तक कहता है कि एक मासूम की हत्या का अर्थ है पूर्ण मानवता की हत्या! मगर सामने वाला आफताब या कफ़ील जो कर रहे हैं, प्रभाव उसका ही पड़ेगा। इस्लाम की 8वीं शताब्दी में प्रसिद्ध इमाम घजाली गजाली ने आतंकवाद की कुछ घटनाओं को देखकर कहा था कि यदि मुसलमान आतंकवाद को समाप्त नहीं करेंगे तो आतंकवाद उन्हें समाप्त कर देगा। मगर उनकी बात को भी वज़न नहीं दिया जा रहा। इस प्रकार की घटनाओं से पूरा इस्लाम और मुस्लिम बदनाम हो रहा है।
जहां तक श्रद्धा की जघन्य हत्या का प्रश्न है, इसमें प्रथम समस्या आती है “लिव-इन रिलेशनशिप” की, जिसमें युवा वर्ग के कुछ लोग बिना विवाह के बंधन के एक साथ रहने लगते हैं और दूसरी है लव-जिहाद की। इन दोनों समस्याओं ने भारतीय समाज में दरार डाल दी है। यह बड़े खेद का विषय है कि श्रद्धा-आफ़ताब इतने समय से बिना शादी किए रह रहे थे और उनके दोस्तों व पड़ोसियों को भी इसका पता था तो इस पर पूछ-ताछ और टिप्पणी करना अति आवश्यक था, क्योंकि भारतीय समाज में इस प्रकार के सम्बन्धों का कोई औचित्य नहीं है। भारतीय युवा चाहे वे किसी भी समुदाय के हों, यहां यह प्रथा मान्य नहीं है। ऐसा नहीं है कि “लिव-इन रिलेशनशिप” के होते यह निर्मम घटना प्रथम है, मगर श्रद्धा की हत्या ने एक तारीख ही बना दी।
जहां तक लव-जिहाद का संबंध है, जब मुस्लिम लड़का किसी ग़ैर-मुस्लिम लड़की से शादी करता है तो 90 प्रतिशत केसों में देखा जाता है कि मुस्लिम लड़का स्वयं या उसका परिवार ग़ैर-मुस्लिम लड़की पर धर्म परिवर्तन की नकेल डालता है, जोकि बिलकुल ग़ैर-इंसानी और ग़ैर-क़ुदरती है क्योंकि जो लड़की बचपन से जवानी तक वैदिक, सिख या ईसाई परंपरा से जीवन व्यतीत करती चली आई है, उसे कम से कम एक दो वर्ष का समय तो देना ही चाहिए और वह भी तब कि जब उसकी स्वेछा हो। तभी समान आचार संहिता के कोशिश की जा रही है, मगर इसमें सरकार का ढीलापन देखा जा सकता है। अंतर-धर्म विवाह में इस बात पर पूर्ण विराम लगना चाहिए कि लड़की का धर्म ज़बर्दस्ती बदला जाए।
हज़रत मुहम्मद (सल्लo) कहा करते थे कि हिन्द की जानिब से उन्हें ठंडी हवाएं आती हैं, जोकि आज भी ऐसा ही है। चाहे समस्या लव-जिहाद की हो, मदरसों को आधुनिक बनाने की हो जैसा कि उत्तर प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश के सरकारें कोशिश में हैं कि मुस्लिम समाज के बच्चे भी समय के साथ आगे बढ़कर कुरान के साथ-साथ विज्ञान, भाषाएं गणित, भूगोल, आदि की शिक्षा लेकर आईएएस अफसर, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, आर्किटेक्ट आदि बनकर प्रधानमंत्री मोदी के सपनों का भारत बनाएं, तो कट्टरपन के जंजीरों को तोड़कर हिन्द में चलती ठंडी और रूह-परवर हवाओं के साथ चलना होगा। हदीस कहती है, “हुब्बूल वतनी निसफुल ईमान” (आधा ईमान देशभक्ति होता है) आपकी घुट्टी में पड़ा हुआ था। समस्या तो यह है कि मुस्लिम आपके बताए रास्ते से हटकर यू टर्न ले चुके हैं और देश व विश्व शांति व भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए मुसलमानों को हज़रत मुहम्मद (सल्लo) के रास्ते पर चलना ही होगा। भारत माता की जय!
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