अफगानिस्तान में काले दौर की शुरुआत यूं तो पिछले साल अगस्त में उस दिन से शुरू हो गई थी जब बंदूक के बल पर इस्लामवादी तालिबान ने काबुल में कुर्सी कब्जाई थी। लेकिन जैसी आशंका थी, अब उस देश में शरिया के तहत दंड देने का प्रावधान भी अंतत: लागू कर दिया गया है।
तालिबान के सबसे बड़े नेता कहे जाने वाले हेब्तुल्ला अखुंदजदा ने नया फरमान जारी किया है कि अब अफगानिस्तान में अपराधों की सजा इस्लामी कानून के तहत दी जाएगी। अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की दयनीय हालत को लेकर दुनिया जहां स्थिति में सुधार की उम्मीदें लगाए बैठी थी उन पर यह नया फरमान पानी फेर देता है। तालिबान नेता ने देश के जजों को हर मामले में इस्लामी कानून को ही अपनाने का आदेश जारी कर दिया है।
तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह ने पुष्टि की है कि अब देश में इस्लामी कानून के तहत अपराधों के फैसले किए जाएंगे। पिछले एक साल से कुछ अधिक समय बाद पहली बार तालिबान के बड़े नेता अखुंदजदा ने पूरे देश में इस्लामी कानून के सभी आयामों को लागू करने का औपचारिक फरमान सुनाया है। अभी तक महिलाओं को लेकर आएदिन जारी होते रहे काले फरमानों और फतवों के बाद अब हर अपराधी को शरिया के तहत सजा का कड़ा प्रावधान होगा।
प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने बताया कि हैब्तुल्ला अखुंदजदा ने जजों के एक समूह से बात करने के बाद उक्त फरमान जारी किया है। जजों के साथ हुई उस बैठक में यह आदेश भी जारी किया गया कि चोरी करने वालों, अपहरण करने वालों और देश के गद्दारों के मामलों की जांच की जानी चाहिए। तालिबानी प्रवक्ता ने कहा कि इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता का यह फरमान पूरे देश में लागू होगा।
एक अन्य तालिबान नेता यूसेफ अहमदी ने समाचार एजेंसी टोलो न्यूज से बात करते हुए कहा कि जो भी अपराधी हत्या, अपहरण तथा चोरी में लिप्त हैं, उन्हें इसके लिए सजा दी जानी चाहिए। टोलो न्यूज का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब तालिबान के नेता ने इस गुट के कुर्सी पर बैठने के बाद से इस तरह का अधिकृत आदेश पूरे देश में लागू किया है।
जैसा पहले बताया, गत वर्ष अगस्त में काबूल की सत्ता कब्जाने के बाद तालिबान ने विशेष रूप से महिलाओं के दमन के अनेक कदम उठाए हैं। कितने ही मानवाधिकार को धता बताने वाले कायदे लागू किए हैं। लड़कियों की पढ़ाई बंद कराई है। महिलाओं को बुर्के में ढका है। उन्हें नौकरी करने की मनाही हो गई है।
इन सब कदमों को लेकर कई अंतरराष्ट्रीय संगठन अनेक मंचों से आवाज उठाते रहे हैं लेकिन कट्टर इस्लामी तालिबान ने किसी भी बात पर कान नहीं दिए हैं। जबकि उस देश को आपदाओं से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय राहत मिलती रही है। यूएन महासचिव तक ने कहा है कि तालिबान का लड़कियों को शिक्षा से दूर करना गलत कदम है।
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