इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश (आबादी) है, लेकिन कभी यहां हिंदू संस्कृति का बोलबाला था। रामायण काल के कई चिह्न आज भी यहां मौजूद हैं। यहां के द्वीप बाली से किष्किंधा के राजा बाली और लंका के राजा रावण से सूत्र जुड़े हुए हैं। पृथ्वी पर सुदूर पूर्व में स्थित इस द्वीप से सबसे पहले सूर्य के दर्शन होने के कारण बाली यहीं पर अपने आराध्य भगवान सूर्य को प्रात:कालीन अर्ध्य अर्पित करता था। इतना ही नहीं, रावण को भी बाली ने यहीं पर कांख में दबाया था। इतना ही नहीं भारत में मां गंगा हैं तो इंडोनेशिया में तीर्थ गंगा हैं, जिन्हें तीरतगंगा भी कहा जाता है।
बाली रामायण कालीन केंद्र है। यहां 1000 उत्तम मंदिरों और 20,000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं। मार्कण्डेय ऋषि की तपोस्थली, वासुकि एवं तक्षक नाग की प्रतिमा और सुमेरु पर्वत का विशेष महत्व है। प्राचीन हिंदू संस्कृति और इतिहास यहां 8वीं से 14वीं सदी के संस्कृत व बालीनीज भाषा और देवनागरी लिपि के शिलालेखों, पाण्डुलिपियों व ताम्रपत्रों में प्रचुरता से है।
बाली हिंद महासागर के सुदूर पूर्व में स्थित विश्व का सर्वाधिक मंदिर वाला द्वीप है। एक जाग्रत ज्वालामुखी युक्त अगुंग पर्वत की मार्कण्डेय ऋषि की तप:स्थली एवं वासुकि व तक्षक नाग की प्रतिमाओं का प्रागैतिहासिक महत्व है। वासुकि नाग समुद्र मन्थन में रस्सी बने थे और मथानी बना सुमेरु पर्वत भी बाली के पास जावा में है। वासुकि नाग के नाम पर ही यहां स्थित मन्दिर का नाम पुरा बैसाकिह है।
सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश, जहां की राजकुमारी इस्लाम छोड़कर बनीं हिंदू
मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया पंद्रहवीं सदी तक शैलेन्द्र व मजपहित साम्राज्य तक हिन्दू-बौद्ध प्रधान देश था। सत्रह हजार द्वीपों में 6000 द्वीप आवासित हैं। करीब 500 वर्ष पूर्व इण्डोनेशिया के अन्य द्वीपों से अनेक हिन्दू व बौद्ध बाली में आकर बस गए थे।
रामायण के समय का इतिहास
बाली द्वीप का नाम किष्किन्धा के राजा बाली से सम्बन्धित है। सूयोर्पासना स्थल होने से यहां प्राचीन महाविशाल सूर्य मण्डल स्पष्ट दिखाई देता है। पृथ्वी पर सुदूर पूर्व में स्थित इस द्वीप से सर्वप्रथम सूर्य दर्शन होने से बाली यहीं पर अपने आराध्य सूर्य को प्रात:कालीन अर्ध्य अर्पित करता था। तीर्थ गंगा (तीरतगंगा) नदी के पूर्व में यह सूर्यमण्डल, बाली द्वीप के पूर्व में स्थित है। यहीं पर युद्ध की चुनौती देने पर रावण को बाली द्वारा अपनी बगल या कांख में दबा कर पूजा पूरी करने का प्रसंग वाल्मीकी रामायण व तुलसीकृत रामचरित मानस में है।
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