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जानिए दक्षिण भारत के जलियांवाला कांड को, यहां का नरसंहार अंदर से झकझोर देगा आपको

- भैरनपल्ली का हादसा और ऑपरेशन पोलो इस बात को दर्शाते हैं कि रजवाड़ों का विलय कितना जटिल और विशाल कार्य था।

नियति चौधरी by नियति चौधरी
Nov 13, 2022, 09:08 pm IST
in भारत, तथ्यपत्र
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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-257044.mp3?cb=1668353917.mp3

वर्ष 1919 में बैसाखी के दिन अमृतसर में हुए जलियांवाला कांड के बारे में अनेक लोगों ने सुन रखा है। जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर भयानक गोलियां चला दी थी। उत्तर भारत के जलियांवाला कांड के जैसा ही भयावह दक्षिण भारत में 1948 में भैरनपल्ली गांव का नरसंहार है। मात्र इतना अंतर है कि जलियांवाला बाग में गोलियां अंग्रेजी हुकूमत द्वारा चलाई गई थी और भैरनपल्ली में गोलियां चलाने वाले निज़ाम की निजी फौज के रजाकार थे।

हैदराबाद एक ऐसा रजवाड़ा था जिसका निज़ाम एक मुसलमान था परंतु राज्य में बहुमत हिंदुओं का था। निज़ाम हिंदुओं से नफरत करते थे। अपनी एक कविता में निज़ाम ने लिखा है: “मैं पासबाने दीन हूं कुफ्र का जल्लाद हूं।” अर्थात मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूं। निज़ाम के अंतर्गत हैदराबाद में 13% ही मुसलमान थे परंतु उच्च पदों पर 88% मुसलमान थे। इसी तरह 77% हाकिम मुसलमान थे। अफसरों में हिंदू ना के बराबर थे। हैदराबाद की आमदनी का 97% हिंदुओं से वसूला जाता था। इसके बावजूद निजाम हिंदू विरोधी था। उसके हरम में 360 स्त्रियां थी। उनमें से अधिकतम “काफिर” थी अर्थात गैर मुस्लिम थी। उसके अधीनस्थ उसको खुश करने के लिए अफगानिस्तान से 10-12 साल की गैर मुस्लिम लड़कियां भी खरीद कर लाते थे जिन्हें बंदाफराश ग्रामीण क्षेत्रों से चुरा लाते थे।

मुसलमान निजाम पाकिस्तान में मिलना चाहता था। परंतु हैदराबाद पाकिस्तान से बहुत दूर था और चारों तरफ से भारत से घिरे द्वीप की भांति था। यह याद करने की ज़रूरत है कि 1933 में एक मुसलमान बुद्धिजीवी चौधरी रहमत अली द्वारा लिखे एक घोषणापत्र “अब या कभी नहीं” में पाकिस्तान की स्थापना का विचार पहली बार रखा गया था। इसके उपरांत मुहम्मद अली जिन्नाह और मुस्लिम लीग ने 1940 में पाकिस्तान की औपचारिक मांग की थी। प्रासंगिक है कि चौधरी रहमत अली के प्रकाशित विचारों में उस्मानिस्तान नाम के एक प्रांत का भी उल्लेख है, जो कि डेक्कन में पाकिस्तान का एक अंत:क्षेत्र के तौर पर प्रस्तावित किया गया था। रहमत अली ने उस्मानिस्तान नाम हैदराबाद के आखरी निज़ाम उस्मान अली खान के सम्मान में दिया था।

इसी प्रकार मुस्लिम लीग ने भारत के केंद्र-पूर्व में रहने वाले आदिवासियों को भी बरगलाना चाहा था और उसके लिए लाखों रुपए भी खर्च किए  थे। इसमें ब्रिटिश सरकार की भी मिली-भगत थी क्योंकि वे इन क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों के माध्यम से अपना प्रभाव स्वतंत्रता के बाद भी बनाये रखना चाहते थे। श्री शेषाद्री अपनी पुस्तक “…और देश बट गया” में लिखते हैं कि मुस्लिम लीग प्रयासरत थी कि छोटा नागपुर, संथाल परगना, सरगुजा, उदयपुर, जशपुर आदि को अलग करके एक आदिवासी बहुमत वाला देश बना दिया जाए जोकि पूर्वी बंगाल से तेलंगना तक एक कॉरिडोर के रूप में हिंदुओं के विरुद्ध काम करें। भारतीय आदिवासी समुदाय के देश-प्रेम और साहस के परिणामस्वरुप यह प्रयास विफल रहा।

निज़ाम के रज़ाकारों का आतंक और भैरनपल्ली का नरसंहार

1948 में कासिम रिजवी मजलिस ए इत्तेहादुलमुस्लिमीन के अध्यक्ष थे। मजलिसएतिहाद उल मुस्लिमीन आज के एआईएमआईएम का पूर्ववर्ती संगठन था। कासिम रिजवी के नेतृत्व में यह संगठन चाहता था कि हैदराबाद का विलय पाकिस्तान में हो। हैदराबाद के हिंदू बाहुल्य नागरिक भारत में रहने के इच्छुक थे। निज़ाम की निजी फौज के तौर पर मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सशस्त्र दस्ते के रूप में रजाकारों की फौज खड़ी की गई। यह हैदराबाद में घूम-घूम कर आतंक मचाने लगी और जजिया इकट्ठा करने लगी।

हिंदू महासभा और आर्य समाज ने इसका विरोध किया और भारत में मिलने के समर्थन में आंदोलन चलाया। डॉक्टर बुर्गुला रामाकृष्ण राव इस आंदोलन के एक प्रखर नेता थे। रजाकारों की फौज गांव-गांव में जाकर लूटपाट कर रही थी, निर्दोषों की हत्या कर रही थी, स्त्रियों की इज्जत लूट रही थी। 22 मई 1948 को हैदराबाद के गंगापुर स्टेशन पर एक रेलगाड़ी में सवार हिंदू यात्रियों पर हमला किया गया। इसने पूरे भारत की भावनाओं को झकझोर दिया। जनता पहले ही भारत सरकार के निज़ाम के प्रति नरम रुख से परेशान थी। इससे पूरे देश की भावनाएं भड़क उठी।

15 अगस्त 1948 को देश ने स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ मनाई। 27 अगस्त 1948 को रजाकारों की फौज ने राज्य की पुलिस से मिलकर भैरनपल्ली गांव पर आक्रमण कर दिया। जून 1948 से ही रजाकार बार-बार भैरनपल्ली पर आक्रमण कर रहे थे। गांव वाले कुल्हाड़ी, लाठी, फरसा, गुलेल इत्यादि पारंपरिक हथियारों मात्र से उन्हें भगाने में सफल हो पा रहे थे। ग्रामीण स्थानीय स्तर पर संगठित होकर इसका प्रतिकार कर रहे थे। ग्राम रक्षक टोलियां हर रात पहरा देती थी। चरवाहे दूर-दूर तक जाकर रजाकारों के आने की सूचना देते थे। बहुत  से गुलेली पत्थर ग्रामीणों ने इकट्ठे कर लिए थे। जिसको जो मिला उसी से ग्रामीणों ने रजाकारों का जमकर मुकाबला किया।

इन ग्रामीण तरीकों से ही वे रजाकारों के तीन हमले विफल करने में सफल हो गए। परंतु चौथी बार रजाकारों की संख्या बहुत बड़ी  थी। गांव वाले इतनी बड़ी संख्या का मुकाबला नहीं कर पाए। जनजातीय समाज का वार्षिक त्योहार बैठकुमा मनाया जा रहा था। 27 अगस्त को रजाकार और हैदराबाद स्टेट पुलिस ने मिलकर  भैरनपल्ली पर आक्रमण कर दिया। ग्रामीण सुरक्षा गार्डों को पकड़ कर गोली मार दी गईI  निहत्थे, निर्दोष ग्रामीणों को चुन-चुन कर मारा गया। एक लाइन से खड़ा कर ग्रामीणों को मारा गयाI गोलियां बचाने के लिए एक के पीछे एक खड़ा कर इकट्ठे तीन-तीन लोगों को एक ही गोली से मारा गया। औरतों को नंगा करके मृत ग्रामीणों के समक्ष जबरदस्ती नाच करवाया गयाI उनके साथ बलात्कार किया गया। अनेकों स्त्रियों ने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी। 120 से ज्यादा लोग मारे गए। इस घिनौने अत्याचार ने पूरे हैदराबाद की जनता में आक्रोश भर दिया।

रजाकारों के द्वारा किस प्रकार से निर्दोष जनता को आतंकित किया गया इसका आंखों देखा हाल वर्ष 2017 में द हिंदू में प्रकाशित हुए के एक स्थानीय वरिष्ठ नागरिक चला चंद्र रेड्डी के शब्दों में है। उन्होंने बताया कि गुलेल जैसे पारंपरिक हथियार से भी ग्रामीणों ने क्रूर रजाकारों को रोके रखाI परंतु रजाकारों की बंदूकों के सामने ग्रामीण कब तक लड़ाई कर पाते। बहुत से लोग घायल हो कर जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो गए। बहुत से लोग मारे गए। स्त्रियों के आभूषण छीन लिए गए।

इस घटना के उपरांत सरदार पटेल ने हैदराबाद में भारतीय सेना भेजने का निर्णय लिया। यह 13 सितंबर को  भेजी जानी थी। किसी ने कहा कि 13 तिथि अशुभ है इसलिए ऑपरेशन 14 सितंबर को प्रारंभ किया जाए। सरदार पटेल ने कहा इसे 12 तारीख कर दिया जाए। तत्कालीन हैदराबाद स्टेट के केंद्रीय सलाहकार के एम मुंशी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सेना की लामबंदी की तिथि 9 सितंबर निश्चित की गई थी क्योंकि 3 दिन उन्हें हैदराबाद में अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने में लगने थे। इसे ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया और आखिर में 13 सितंबर को आरंभ होने के बावजूद यह शुभ निष्कर्ष तक पहुंचा। मात्र 5 दिन में ही इस अभियान को भारतीय सेना द्वारा निपटा दिया गया। यह सरदार पटेल की सैन्य बुद्धि और कूटनीति का ही परिणाम था।  इस प्रकार हैदराबाद का विलय भारत में हो गया। मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमान के मुखिया कासिम रिजवी और हैदराबाद के प्रधानमंत्री लायक अली पाकिस्तान भाग गए।

भैरनपल्ली का हादसा और ऑपरेशन पोलो इस बात को दर्शाते हैं कि रजवाड़ो का विलय कितना जटिल और विशाल कार्य था। इस अमूल्य योगदान के लिए देश सदा सरदार पटेल का आभारी रहेगा। देश उन वीरों के प्रति भी कृतज्ञ है जिन्होंने राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता की रक्षा स्थानीय स्तर पर भैरनपल्ली गांव में की और सर्वस्व बलिदान कर दिया।

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