देवभूमि उत्तराखण्ड में अनेकों महान विभूतियों, मनीषियों, आध्यात्मिक महापुरुष, विद्वान और तपस्वियों के साथ–साथ अनेक सिद्ध योगी भी हुए हैं। भारत ही नहीं विश्व के धार्मिक विद्वानों, वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों को अपनी योगिक क्रियाओं से अनेकों बार चमत्कृत कर देने वाले सिद्धयोगी स्वामी राम का नाम असहज योग की परम्परा में शीर्ष पर माना जाता है।
स्वामी राम का जन्म देवभूमि उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र की लैंसडाउन तहसील के ग्राम तोली में 2 जुलाई सन 1925 को हुआ था। उत्तराखण्ड प्राचीन काल से ही दिव्य योगियों एवं साधु–सन्तों की पावन भूमि रही है। महान साधु संतों के चरित्र से प्रेरणा पाकर स्वामी राम की रुचि बचपन से ही योग की ओर हो गयी थी। स्वामी राम की विद्यालयीन शिक्षा के सम्बंध में विधिवत जानकारी प्राप्त नहीं होती हैं, परन्तु इतना सत्य है कि लौकिक शिक्षा के बारे में इनका ज्ञान अत्यधिक था। योग में रुचि होने के कारण इन्होंने अनेक साधु–संन्यासियों के पास जाकर योग की कठिन साधना की थी। स्वामी राम ने व्यक्तिगत प्रयास एवं गुरु कृपा से अनेक सिद्धियां प्राप्त की थी। उन दिनों भारत के साथ–साथ विश्व अधिकांश देशों में ब्रिटेन एवं अमरीका आदि यूरोपीय देशों के प्रभुत्व एवं ईसाई मत का डंका बज रहा था। वे लोग भारतीय सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म, योग, चिकित्सा शास्त्र तथा अन्य धार्मिक मान्यताओं की हंसी उड़ाते हुए उन्हें मात्र पाखण्ड एवं अन्धविश्वास ही बताते थे। अंततः स्वामी राम ने उनके घर में घुसकर ही उनकी अतार्किक मत–मान्यताओं को तोड़ने का निश्चय किया था।
स्वामी राम ने विश्व अनेक देशों में योग शिविर लगाये, तो उनके योग सम्बन्धित चमत्कारों की चारों ओर चर्चा होने लगी थी। सम्पूर्ण विश्व के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों एवं चिकित्सा शास्त्र के विशेषज्ञों तक उनकी ख्याति पहुंची, तो उन्होंने अपने सामने योग के चमत्कार दिखाने को कहा। स्वामी राम ने इस चुनौती को भी स्वीकार किया और वैज्ञानिकों को अपने साथ परीक्षण के लिए आधुनिक यन्त्र लाने को भी कहा। प्रख्यात वैज्ञानिकों एवं उनकी आधुनिक मशीनों के सम्मुख स्वामी राम ने योगिक क्रियाओं का प्रत्यक्ष प्रदर्शन किया। योग द्वारा शरीर का ताप बढ़ाने एवं घटाने, हृदय की गति घटाने और 20 मिनट तक बिल्कुल रोक देने, दूर बैठे अपने भक्त के स्वास्थ्य को ठीक करना आदि प्रत्यक्ष योगिक क्रियाओं को देखकर विदेशी विशेषज्ञ अपना सब ज्ञान और विज्ञान भूल गये थे। स्वामी राम ने सम्पूर्ण विश्व के विज्ञान सम्बन्धित विशेषज्ञों को बताया कि मात्र शरीर ही सब कुछ नहीं है, अपितु चेतन और अचेतन मस्तिष्क की क्रियाओं का भी मानव जीवन में बहुत महत्व है और इस ज्ञान के क्षेत्र में पश्चिम अभी बहुत पीछे है।
कालांतर स्वामी राम ने विश्व के अनेक देशों में अनेक अन्तरराष्ट्रीय योग शिविर लगाए तथा आश्रमों की भी स्थापना की थी। स्वामी राम उन्होंने योग पर अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनका अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ था। स्वामी राम को अपनी मातृभूमि भारत और जन्मभूमि उत्तराखण्ड से अतीव प्रेम था। उत्तराखण्ड राज्य की विकट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में निर्धनता तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव को देखकर उन्हें बहुत कष्ट होता था। इसलिए उन्होंने देहरादून जिले के ग्राम जौलीग्राण्ट में एक विशाल चिकित्सालय एवं चिकित्सा शोध विद्यालय की स्थापना की थी। इस सेवा प्रकल्प के माध्यम से उन्होंने निर्धनजनों को विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने का प्रयास किया था। सम्पूर्ण विश्व में फैले स्वामी राम के भक्तों के सहयोग से स्थापित यह विशाल चिकित्सालय आज भी उत्तराखण्ड की जनता की अतुलनीय सेवा कर रहा है। निरंतर कठिन योग साधना के साथ–साथ परमार्थ कार्यों के पश्चात जब स्वामी राम का भौतिक शरीर थक गया तो उन्होंने योग साधना के माध्यम से 13 नवम्बर सन 1996 को पार्थिव देह का त्याग कर दिया था। स्वामी राम भले ही इस नश्वर संसार से चले गये थे परन्तु उनके द्वारा स्थापित सेवा प्रकल्प हिमालयन अस्पताल से उनकी कीर्ति सदा के लिए जीवित रहेगी।
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