भारत की स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात पाकिस्तान की सेना ने कबायली हमलावरों के रूप में भारत पर आक्रमण कर दिया था। जम्मू-कश्मीर के बड़गाम हवाई अड्डे को नियंत्रण में लेकर भारतीय सेना का रास्ता, हथियार आपूर्ति और रसद को बाधित करने के उद्देश्य से यह सुनियोजित भीषण आक्रमण हुआ था। पाकिस्तान की सेना के भीषण आक्रमण से जम्मू- कश्मीर के हवाई अड्डे को सुरक्षित रखने और बचाने में अहम भूमिका निभाने वाले मेजर सोमनाथ शर्मा के साथ उत्तराखण्ड राज्य के सीमांत क्षेत्र पिथौरागढ़ के पुरदम, तल्लाजोहार के सिपाही दीवान सिंह दानू की वीरगाथा बहुत कम लोगों को ही मालूम होगी।
भारत-पकिस्तान युद्ध में अदम्य साहस और वीरता का परिचय देकर भारत भूमि की रक्षा करते हुए युद्ध क्षेत्र अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान देने वाले में मेजर सोमनाथ को परमवीर चक्र तथा सिपाही दीवान सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र से विभूषित किया गया था। भारतीय सेना के इतिहास में दीवान सिंह दानू का नाम देश के पहले महावीर चक्र विजेता के रूप में अंकित है। कुमाऊं रेजीमेंट के सेंटर रानीखेत में महावीर चक्र विजेता दीवान सिंह दानू के नाम पर दीवान हाल बनाया गया है। उत्तराखण्ड के मुनस्यारी स्थित राजकीय हाईस्कूल बिर्थी भी दीवान सिंह दानू के नाम से स्थापित है।
4 मार्च 1923 को उत्तराखण्ड राज्य के सीमांत क्षेत्र पिथौरागढ़ में ग्राम पंचायत गिन्नी के पुरदम निवासी उदय सिंह और रमुली देवी के घर पर जिस बालक दीवान ने जन्म लिया था, तब कोई नहीं जानता था कि यह बालक केवल बीस बरस की उम्र में ही वह कर जाएगा, जहां तक पहुंचने के लिए एक भरपूर जिंदगी भी नाकाफी होती है। यह भी एक संयोग ही है कि 4 मार्च 1943 को इस जांबाज युवक का भारतीय सेना के लिए चयन हुआ था। 1 जून 1946 को 4 कुमाऊं रेजीमेंट में उनकी पहली पोस्टिंग हुई थी। 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के तुरंत बाद ही पाकिस्तान के साथ जम्मू–कश्मीर में भयंकर लड़ाई छिड़ गई थी।
3 नवंबर 1947 को जम्मू के बड़गाम हवाई अड्डे को कब्जे में लेने के लिए पाकिस्तान की सेना ने कबायलियों के भेष में हवाई अड्डे की सुरक्षा में तैनात दीवान सिंह दानू की पलाटून पर हमला कर दिया। 4 कुमाऊं रेजीमेंट की डी कंपनी के 11वीं पलाटून के सेक्शन नंबर 1 में ब्रेन गनर के रूप में तैनात दीवान सिंह दानू ने दुश्मन सामने देख ब्रेन गन से फायर खोलकर 15 से ज्यादा आक्रमणकारी पाकिस्तानी कबायलियों को तत्काल मौत के घाट उतार दिया। आमने सामने के भयानक युद्ध के समय दीवान सिंह दानू के कंधे में अचानक गोली लग गई और वह गंभीर रुप से घायल हो गए।
भारतीय सेना की वीर सिपाही दीवान सिंह गंभीर घायल होने के बाद भी उस युद्ध की विकट परिस्थितियों में अपने जीवन की चिन्ता न कर बल्कि भारत भूमि की सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए लगातार भीषण फायरिंग करते रहे। वीर सिपाही दीवान सिंह के खतरनाक रुख से घबराए पाकिस्तान की सेना ने दीवान सिंह को लक्ष्य मानकर उन पर चारों ओर से हमला कर दीवान सिंह का सीना छलनी कर दिया। पाकिस्तानी कबाइलियों से हुए भीषण युद्ध में दीवान सिंह दानू ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। इस भयानक युद्ध में दीवान सिंह दानू ने देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान किया।
भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया, यह स्वतन्त्र भारत का पहला महावीर चक्र था। दीवान सिंह दानू के सर्वोच्च बलिदान का सम्मान करते हुए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बलिदानी सैनिक के पिता उदय सिंह को लिखे अपने हस्तलिखित पत्र में उनके बलिदान के लिए संपूर्ण राष्ट्र को उनका कृतज्ञ बताया था। उन्होंने पत्र में लिखा, “हिंद की जनता की ओर से और अपनी तरफ से दु:ख और रंज में यह संदेश भेज रहा हूं। हमारी दिली हमदर्दी आपके साथ है। देश की सेवा में यह जो बलिदान हुआ है, इसके लिए देश कृतज्ञ है और हमारी यह प्रार्थना है कि इससे आपको कुछ धीरज और शांति मिले।”
दीवान सिंह दानू के अदम्य साहस और वीरता का घटनाक्रम “कुमाऊं रेजीमेंट का इतिहास” नामक पुस्तक में भी वर्णित किया गया है। पुस्तक में लेखक ने अपार गर्वित भाव से लिखा है कि दीवान सिंह दानू ने पाकिस्तानी सेना के कबाइलियों से मोर्चे के दौरान अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। दीवान सिंह अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे। अंतिम समय जब उनकी आखिरी सांस उखड़ी, तब भी उनके हाथ में गन जकड़ी हुई थी।
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