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इमरान खान पर हमला, पाकिस्तानी सेना का खूनी इतिहास

अगर इतिहास पर गौर किया जाए तो यह बात पक्की है कि अपनी तानाशाही को चुनौती देने वाले राजनेताओं और लोगों को निपटाने में पाकिस्तान की सेना किसी भी हद तक जा सकती है।

प्रेरणा कुमारी by प्रेरणा कुमारी
Nov 6, 2022, 01:31 pm IST
in विश्लेषण
इमरान खान

इमरान खान

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https://panchjanya.com/wp-content/uploads/speaker/post-256167.mp3?cb=1667721730.mp3

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हाल ही में जानलेवा हमला हुआ है। पाकिस्तान के हरफनमौला क्रिकेट खिलाड़ी रह चुके इमरान खान ने आरोप लगाया है कि देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृहमंत्री सनाउल्ला और सेना के मेजर जनरल फैसल नसीर ने इस हमले की साजिश रची है। सेना ने आरोपों का खंडन किया है। इमरान के आरोपों की सच्चाई के बारे में अभी कोई पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है और इस बात की भी कोई उम्मीद नहीं है कि पाकिस्तान में सेना के खिलाफ स्वतंत्र जांच हो पाएगी, हालांकि अगर इतिहास पर गौर किया जाए तो यह बात पक्की है कि अपनी तानाशाही को चुनौती देने वाले राजनेताओं और लोगों को निपटाने में पाकिस्तान की सेना किसी भी हद तक जा सकती है। बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की जिंदगी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके जुल्फिकार अली भुट्टो की मौत पाकिस्तान की सेना के दामन पर ऐसे बड़े दाग हैं जो साबित करते हैं कि इस देश में सेना राजनीति में दखल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अपनी ताकत बरकरार रखने के लिए यह अपने ही लोगों का नरसंहार तक कर सकती है।

1947 में पाकिस्तान बनने के समय सेना और प्रशासन के उच्च पदों पर मुख्यतः पंजाबी मुसलमानों का कब्जा था। पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बांग्लादेश) के लोग एक तरफ सेना-प्रशासन से बाहर थे, दूसरी तरफ पश्चिमी पाकिस्तान के आम लोग भी बंगालियों को अपने बराबर के नागरिक समझने को तैयार नहीं थे। साथ ही 1970 तक इस देश में कोई आम चुनाव नहीं हुआ। इस तरह राजनीतिक क्षेत्र में भी बंगाली मुसलमानों को भागीदारी नहीं मिली। इसके बाद तत्कालीन पाकिस्तान में जब बहुसंख्यक लोगों की भाषा बंगाली के बजाय उर्दू को राजभाषा बनाया गया तो पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का सब्र का प्याला भर गया और उन्होंने बंगाली को भी राजभाषा बनाए जाने के लिए आंदोलन-प्रदर्शन शुरू किए। इस पूरे कालखंड में आवामी लीग पार्टी के नेता मुजीबर्रहमान का जेल से आना-जाना लगा रहा। इन सब के बीच 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनाव हुए और मुजीबर की पार्टी आवामी लीग को बहुमत मिला। अब पश्चिमी पाकिस्तान के नेता और सेना दोनों ही इस बात पर एकमत थे कि कोई बंगाली प्रधानमंत्री पद पर काबिज नहीं होना चाहिए। इसके लिए मुजीबर पर देशद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया गया और देश के पूर्वी हिस्से में सेना का कुख्यात ऑप्रेशन सर्चलाइट शुरू हुआ। इस ऑपरेशन के बाद आगे आज के बांग्लादेश में नरसंहार की शुरुआत हुई। बांग्लादेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान सेना की कार्रवाइयों से 30 लाख लोग मारे गए। ज्यादातर स्वतंत्र अनुमान मौतों की संख्याओं को पांच से दस लाख के बीच बताते हैं। यह भी अनुमान है कि इस दौरान 2 लाख से लेकर 4 लाख महिलाओं से बलात्कार किए गए।

बांग्लादेश का यह नरसंहार इसलिए किया गया क्योंकि सेना बंगाली मुजीबर्रहमान के बजाय पश्चिमी पाकिस्तान से जुल्फिकार भुट्टो को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी, लेकिन जब भुट्टो भी सेना की मनमानी में रोड़ा साबित होने लगे तो सेना के इस मोहरे को भी फांसी का तख्ता नसीब हुआ। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद आम लोगों में सेना के प्रति भरोसा खत्म हो गया। पाकिस्तान टूटने के लिए ज्यादातर लोग सेना को ही जिम्मेदार मानते थे। ऐसे में 1972 में शिमला समझौते के बाद भुट्टो जब 92000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को छुड़ाने में कामयाब हुए तो उन्हें पाकिस्तान में जबरदस्त लोकप्रियता मिली। 1973 में उनकी पार्टी आम चुनाव जीती और 1977 तक वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। भुट्टो की लोकप्रियता हालांकि जल्दी सेना की आंखों में खटकने लगी और 1977 में जिया उल हक ने तख्तापलट कर दिया। भुट्टो की चुनौती जल्द ही खत्म करने के लिए सेना की शह पर पाकिस्तान के इस नेता को कत्ल के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया। इस अदालती कार्रवाई को “अदालती कत्ल” के रूप में माना जाता है।

पाकिस्तान की सेना के दाग इन दो नामों तक ही सीमित नहीं हैं। ब्लूचिस्तान में जबरन गुमशुदगियों से लेकर पत्रकारों की हत्या-प्रताड़ना तक सेना पर नागरिक अधिकारों को कुचलने और समानांतर या कठपुतली सरकार चलाने के कई आरोप लग चुक हैं। सेना प्रमुख रह चुके तानाशाह परवेज मुशर्रफ पर भी यह आरोप लग चुके हैं कि दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी जुल्फकार भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो के कत्ल में उनका हाथ था। इस बीच अभी भी पाकिस्तान की मीडिया ने इमरान को पाकिस्तान का दुश्मन बताना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के बड़े पत्रकार सलीम बुखारी ने इमरान खान को नया शेख मुजीबर्रहमान बताया है। उन पर हुए हमले को खुद द्वारा करवाया गया हमला या नौटंकी भी बताया जा रहा है। इमरान नए मुजीबर्रहमान हैं या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है, फिर भी इन दोनों में एक समानता है। ये दोनों ही लोग पंजाबी मुस्लिम नहीं है। मुजीबर्रहमान बंगाली थे तो इमरान पठान है और जिस तरह से इमरान खान को नया मुजीबर्रहमान बताने का नैरेटिव गढ़ा जा रहा है, उससे यह आशंका भी बढ़ रही है कि कहीं पाकिस्तान की सेना दोबारा अपना बांग्लादेश का काला इतिहास दोहराने की तैयारी तो नहीं कर रही।

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