पड़ोसी इस्लामी देश पाकिस्तान में सियासी सरगर्मियां एक बार फिर उबाल पर हैं। नेताओं की पैनी बयानबाजियों, अदालती फरमानों, सियासी मोर्चों, फौजी दखलंदाजियों और आतंकियों की मनमानी के बीच आम पाकिस्तानी खुद को दलदल में गहराता पा रहा है। आने वाले कल से बेखबर सत्ता और सियासी अधिष्ठान अपनी अपनी गोटियां बिठाने में देश को लगभग भुला ही चुके हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान एक बार फिर से लाहौर से इस्लामाबाद के लांग मार्च पर निकल लिए हैं। इधर सरकार के मंत्रियों और इमरान की पार्टी पीटीआई के नेताओं के पलटवार करते बयानों ने बड़े पैमाने पर हिंसा के आसार दिखाने शुरू कर दिए हैं। पूर्व गृहमंत्री शेख रशीद का कहना है कि अगर मार्च करने वालों पर एक भी गोली चली तो सरकार का कोई मंत्री इस्लामाबाद से बाहर नहीं निकल पाएगा। उधर सरकार के मंत्रियों ने चुनौती दी है कि चारों तरफ से घिर चुके इमरान मार्च लेकर इस्लामाबाद तक नहीं पहुंच पाएंगे।
इमरान के मार्च को देखते हुए पाकिस्तान के कई बड़े शहर फौजी छावनियों में बदल दिए गए हैं। सड़कों पर फौजी पहरा दे रहे हैं। तिस पर केन्या में पाकिस्तानी पत्रकार अरशद शरीफ की हत्या ने शोलों में और पेट्रोल छिड़कने का काम किया है। जबसे इसका ठीकरा इमरान ने सीधे सीधे फौज पर फोड़ा है तबसे फौज और आईएसआई के आला अफसर कुढ़े पड़े हैं। फौज ने इस बारे में अपना पल्ला झाड़ने वाला बयान परसों देर शाम जारी किया था। जबकि बाद में आईएसआई के महानिदेशक नदीम ने भी प्रेस को बुलाकर इमरान के विरुद्ध अपनी भड़ास निकाली। इमरान और जनरल बाजवा के बीच की मुलाकातों की कलई खोली जिसके बाद इमरान को मानना पड़ा है कि उन्होंने जनरल बाजवा का कार्यकाल अपनी सरकार बचाए रखने के लिए बढ़ाया था।
पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई के महानिदेशक का पूर्व प्रधानमंत्री को निशाने पर लेने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाने की यह घटना पहली बार देखने में आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि उस इस्लामी देश के इतिहास में ऐसा पहले कभी देखने में नहीं आया था। नदीम वैसे भी ज्यादा सामने नहीं आते, न अखबारों में खास फोटो छपते हैं, न बयान।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, लेफ्टिनेंट जनरल नदीम का सामने आकर पत्रकार अरशद शरीफ की हत्या तथा इमरान खान के लांग मार्च की आड़ में सियासत से जुड़ी चीजों पर टिप्पणी करना असाधारण बात मानी जा रही है। अरशद की हत्या के मामले में पाकिस्तान की फौज शक के घेरे में है। माना जा रहा है कि उनकी केन्या में पाकिस्तानी एजेंसियों के कथित इशारे पर हत्या की गई।
प्रेस कांफ्रेंस में नदीम ने इमरान खान से जुड़े मुद्दों को ही केन्द्र में रखा। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री के नाते इमरान खान ने सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल अनिश्चितकाल समय तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन जनरल बाजवा उस पर राजी नहीं हुए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने बताया कि इमरान खान दिन में सेना के अफसरों के खिलाफ बोलते रहते हैं, लेकिन रात में सेना प्रमुख से मिलने की जुगत भिड़ाते हैं। नदीम का कहना है कि इमरान को गुस्सा सिर्फ इस बात का है कि बाजवा ने उनकी सरकार को गिरने से बचाने में मदद करने से मना कर दिया था।
इधर नदीम की प्रेस कांफ्रेंस खत्म हुई उधर इमरान ने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए माना कि उन्होंने तब बाजवा का कार्यकाल बढ़ाने की पेशकश की थी, जब उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने जनरल बाजवा से बार बार यह कहा कि अगर उनकी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ तो उससे देश की अर्थव्यवस्था डगमगा जाएगी और कोई इसे डूबने से बचा नहीं पाएगा।
पाकिस्तान की राजनीति के जानकार मानते हैं कि इमरान खान, उनके नेताओं और समर्थकों की की ओर से लगातार सरकार विरोधी बयानों से नाराज शाहबाज सत्ता से जुड़ी फौज और आईएसआई मैदान में उतर आए हैं। इन्होंने इमरान और उनकी पार्टी पीटीआई के विरुद्ध मोर्चा खोला है।
कहना न होगा, कि पाकिस्तान अपनी फितरत के अनुसार ही, फिर से लड़खड़ाने लगा है। एफएटीएफ की ‘दागी सूची’ से बाहर निकलने से जो थोड़ा—बहुत जोश उपजा भी होगा, वह चकनाचूर हो चुका है। क्रिकेट के मैदान में लगातार हो रही अपमानजनक हार से टूटे दिल लिए बैठे पाकिस्तानी अब सियासी सर्कस को लेकर भी अनमने से बैठे बस हालात को ताकते रहने को मजबूर हैं।
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