विश्व हिन्दू सम्मेलन में बौद्ध मत के सर्वोच्च गुरु परमपावन दलाई लामा शामिल हुए थे।
सर्वोच्च बौद्ध गुरु को महादेव के अभिषेक से समस्या नहीं है, मगर केजरीवाल जी
के मंत्री बौद्ध चीवर को ढाल बना हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित करते हैं।
देश में त्योहारों की खुशी एवं उत्साह का वातावरण है। परंतु कुछ लोग इसमें कड़वाहट घोलने के लिए बेताब हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक करीबी मंत्री हैं राजेन्द्र पाल गौतम। पिछले दिनों इन्होंने हिंदुओं को बौद्ध पंथ की दीक्षा दिलाते हुए हिंदू धर्म के विरुद्ध जो कुछ किया, वह आस्था का विषय नहीं था। वह समाज में कड़वाहट घोलने वाला एक भौंडा राजनीतिक प्रदर्शन था। उनकी पार्टी हमेशा से यही प्रदर्शन कर रही है, लेकिन राजेन्द्र पाल गौतम इसमें अब तक सबसे आगे निकल गए हैं, बस।
वर्ष 2014 में नई दिल्ली में संपन्न पहले विश्व हिन्दू सम्मेलन में बौद्ध मत के सर्वोच्च गुरु परमपावन दलाई लामा शामिल हुए थे। सर्वोच्च बौद्ध गुरु को महादेव के अभिषेक से समस्या नहीं है, मगर केजरीवाल जी के मंत्री बौद्ध चीवर को ढाल बना हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित करते हैं।
राजेंद्र पाल गौतम और उनके जैसे ‘केवल राजनीति’ सोचने वाले लोग किसी भी धर्म, मत, पंथ संप्रदाय के लिए कलंक हैं। ये कौन-से बौद्ध हैं जो चीवर की आड़ लेकर हिन्दुओं को गाली देने का काम करने वाली राजनीति करते हैं, उस राजनीति को पहचानना आवश्यक है।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इसमें उनके साथ इस्लामी उन्मादी भी दिखायी देते हैं और वामपंथी भी सुर से सुर मिलाते हैं। ये सारा काम वे बाबा साहेब को सामने रखकर कर रहे हैं।
इन लोगों से अवश्य पूछा जाना चाहिए कि वे किन बाबा साहेब की बात कर रहे हैं? कोई भी व्यक्ति बाबा साहेब आंबेडकर को कुनबे को तोड़ने वाली फांस के तौर पर कैसे देख या दिखा सकता है? नाना, बाबा तो परिवार को एकजुट करते हैं, परिवार को बांटते नहीं हैं। उसी दृष्टि से बाबा साहेब को देखना पड़ेगा।
हिंदू समाज में कुरीतियां नहीं पैदा हुईं और ऐसा नहीं है कि कुरीतियां समाप्त करने के लिए समाज ने काम नहीं किया। 1 मार्च, 1930 को जिन पुजारियों ने अस्पृश्यों को कालाराम मंदिर में प्रवेश करने से रोका था, उनके पोतों ने सन 2005 में समरसता यात्रा की शुरुआत भी कालाराम मंदिर से ही करवाई थी। दादा इदाते जी के मार्गदर्शन और डॉ. सुवर्णा रावल के नेतृत्व में समरसता यात्रा मंदिर से शुरू हुई। यह बदलाव 75 साल में आया।
बौद्ध मत का चयन क्यों
यहां यह देखना होगा कि जिन बाबासाहेब के नाम पर कड़वाहट घोलने की कोशिश की गई वे बाबासाहेब हिंदू से बौद्ध मत में गए तो क्यों गए? भारत के पंथ से अलग देश वाले किसी पंथ में क्यों नहीं गए? क्योंकि बौद्ध मत में उन्हें मानवता के लिए वह कड़वाहट नहीं दिखती कि दूसरे को नष्ट कर दो, खत्म कर दो।
बाबासाहेब के पास पोप के प्रतिनिधि भी आए थे, निजाम के लोग भी आए थे। दावत हर तरफ से थी। लेकिन उन्होंने सभी को मना किया। उन्होंने लिखा है कि मैं यदि ईसाइयत में गया या इस्लाम स्वीकार किया तो यह देश एक बड़े खतरे में चला जाएगा। इसलिए मैं उसी रास्ते को अपना रहा हूं, जिससे इस देश के मौलिक तत्व-ज्ञान के साथ मैं जुड़ा रहूंगा।
दलाई लामा बौद्ध और हिंदू, दोनों को आध्यात्मिक भाई बताते हैं। हम छोटे भाई हैं, भारत का हिंदू हमारा बड़ा भाई है। यह किसी राजनीतिक सुविधा-असुविधा का प्रश्न नहीं है। बाल्यकाल में ही मातृभूमि के परित्याग के लिए विवश होने वाले दलाई लामा ने शिव पूजन करके ही उनसे विदा मांगी थी।
डॉ. आंबेडकर ने आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत को बहुत दृढ़ता से नकारा। उन्होंने सिद्ध किया कि न तो आर्य कोई नस्लसूचक शब्द था और न ही दास और दस्यु शब्दों का अर्थ द्रविड़ों से जुड़ा था। बाद में मैक्समूलर को भी स्वीकार करना पड़ा कि आर्य भाषासूचक शब्द था, न कि नस्लसूचक। चेहरा, बालों और मानवकाया की बनावट के आधार पर भी आर्यों के भिन्न होने की बात डॉ. आंबेडकर ने गलत साबित की।
वस्तुत: बाबासाहेब को एक सुधारक के तौर पर देखना चाहिए। बाबासाहेब ने कहा भी था, ‘मैं हिंदू समाज सुधारक हूं।’ संघर्ष का स्वरूप स्पृश्यता-अस्पृश्यता का न होकर हिंदू सुधार का था, और वही होना चाहिए। उन्होंने कहा भी था, मैं हिंदू धर्म का शत्रु हूं, विध्वंसक हूं-इस प्रकार मुझे लेकर टिप्पणी होती है, लेकिन एक दिन ऐसा आएगा कि मैं हिंदू समाज का उपकारकर्ता हूं, इन्हीं शब्दों में हिंदू मुझे धन्यवाद देंगे।
उनका कहा आज दिख भी रहा है। ऐसा नहीं था कि हिंदू समाज में कुरीतियां नहीं पैदा हुईं और ऐसा नहीं है कि कुरीतियां समाप्त करने के लिए समाज ने काम नहीं किया। 1 मार्च, 1930 को जिन पुजारियों ने अस्पृश्यों को कालाराम मंदिर में प्रवेश करने से रोका था, उनके पोतों ने सन 2005 में समरसता यात्रा की शुरुआत भी कालाराम मंदिर से ही करवाई थी। दादा इदाते जी के मार्गदर्शन और डॉ. सुवर्णा रावल के नेतृत्व में समरसता यात्रा मंदिर से शुरू हुई। यह बदलाव 75 साल में आया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बाबासाहेब के मन में बहुत जिज्ञासा थी। वे संघ शिविर में भी गए थे। उन्होंने प्रश्न किया कि इनमें अस्पृश्य समाज के कितने स्वयंसेवक हैं? उन्हें उत्तर दिया गया कि इनमें न कोई सवर्ण है, और न कोई अस्पृश्य। जो हैं, वे सिर्फ हिंदू हैं। बाबासाहेब के लिए यह अनूठा अनुभव था। संघ में अस्पृश्यता का कोई नामोनिशान न देखकर वे प्रसन्न हुए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त स्वयंसेवक एकात्मता स्रोत (ठक्करो भीमरावश्व, फुले नारायणो गुरु:) में हर दिन उनका स्मरण करते हैं। डॉ. आंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की नाराजगी को कम्युनिज्म के चंगुल में पड़ने से बचा लिया।
मुस्लिम एवं वामपंथ पर बाबासाहेब
अब बात आती है बाबासाहेब की आड़ में हिंदू समाज को तोड़ने की कोशिश करने वाले तबके का साथ कौन दे रहा है? देखेंगे तो यहां इस्लामिक ताकतों और वामपंथियों का गठजोड़ दिखेगा। परंतु बाबासाहेब की क्या राय थी इन दोनों के बारे में?
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स आन पाकिस्तान’ में मुस्लिम राजनीति के सांप्रदायिक आधार का विस्तृत वर्णन किया है। इस वर्णन से मुस्लिम राजनीति के दो आयाम दृष्टि-गोचर होते हैं- एक आक्रामकता और दूसरा अलगाववाद।
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा- ‘सरसरी दृष्टि से देखने पर भी यह बात स्पष्ट हो जाएगी कि मुसलमानों के प्रति हिन्दू मनोवृत्ति और हिन्दुओं के प्रति मुस्लिम मनोवृत्ति में एक मूलभूत आक्रामक भाव विद्यमान रहता है। हिन्दुओं का आक्रामक भाव एक नई प्रवृत्ति है जिसे उन्होंने हाल ही में विकसित करना प्रारंभ किया है। मुसलमानों की आक्रामक भावना उनकी जन्मजात पूंजी है और हिन्दुओं की तुलना में बहुत प्राचीन काल से उनके पास है।’
डॉ. आंबेडकर कहते हैं, ‘वे जिहाद केवल छेड़ ही नहीं सकते, उसकी सफलता के लिए विदेशी मुस्लिम शक्ति को सहायता के लिए बुला भी सकते हैं। और, इसी प्रकार यदि भारत के विरुद्ध कोई विदेशी मुस्लिम शक्ति ही जिहाद छेड़ना चाहती है, तो मुसलमान उसके प्रयास की सफलता के लिए सहायता भी कर सकते हैं।’
फरवरी, 1942 में मुंबई वसंत व्याख्यानमाला में डॉ. आंबेडकर ने कहा था, इस झूठी धारणा को न पालें कि पाकिस्तान अपने मुस्लिम साम्राज्य को भारत पर फैलाने में समर्थ होगा। हिंदू उन्हें धूल चटा देंगे। मैं मानता हूं कि कुछ बातों पर हिंदुओं का आपसी झगड़ा है लेकिन मैं आपके समक्ष शपथ लेता हूं कि मैं अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दूंगा।
आज कई कम्युनिस्ट आंबेडकर का चित्र लगाकर कहते हैं कि वे वर्ग संघर्ष के पुरोधा थे, जबकि आंबेडकर स्वयं को कम्युनिस्टों का कट्टर दुश्मन कहते थे। उनके अनुसार कम्युनिस्ट राजनीतिक स्वार्थ के लिए मजदूरों का शोषण करते थे। वह श्रमिक, मालिक और सरकार, तीनों को अलग नहीं मानते थे और तीनों के मिलकर कार्य करने के पक्षधर थे।
वाम की कठपुतली आआपा
गुजरात आआपा पूरी तरह वामपंथियों का एक छद्म रूप मात्र है। पार्टी के प्रदेश संयोजक गोपाल इटालिया के वामपंथियों और विदेशी संस्थाओं से संबंध प्रमाणित हो चुके हैं। सीएए से लेकर किसान आंदोलन तक में केंद्र सरकार के खिलाफ एजेंडा चलाने में गोपाल संलिप्त पाए गए हैं। 2018 में अहमदाबाद में इटालिया ने शबनम हाशमी के एनजीओ अनहद के कार्यक्रम ‘डिस्मैंटलिंग इंडिया’ में हिस्सा लिया था।
ये वही शबनम हाशमी हैं जो अक्सर हिन्दू विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाई गई हैं। इनके एनजीओ को ईसाई मिशनरियों से संबंधित कई सारे एनजीओ द्वारा पूर्व में फण्ड मिल चुका है। इस कार्यक्रम में अन्य कई वामपंथी और आल्ट न्यूज की स्वामिनी निर्झरी सिन्हा भी उपस्थित थीं। गुजरात दंगों को लेकर भ्रम फैलाने वाली तीस्ता सीतलवाड़ और विदेशी चंदा पाने वाली मेधा पाटकर भी शबनम हाशमी के साथ काम करती हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में बाबासाहेब के मन में बहुत जिज्ञासा थी। वे संघ शिविर में भी गए थे। उन्होंने प्रश्न किया कि इनमें अस्पृश्य समाज के कितने स्वयंसेवक हैं? उन्हें उत्तर दिया गया कि इनमें न कोई सवर्ण है, और न कोई अस्पृश्य। जो हैं, वे सिर्फ हिंदू हैं। बाबासाहेब के लिए यह अनूठा अनुभव था। संघ में अस्पृश्यता का कोई नामोनिशान न देखकर वे प्रसन्न हुए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त स्वयंसेवक एकात्मता स्रोत (ठक्करो भीमरावश्व, फुले नारायणो गुरु:)में हर दिन उनका स्मरण करते हैं। डॉ. आंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की नाराजगी को कम्युनिज्म के चंगुल में पड़ने से बचा लिया।
यही इटालिया प्रधानमंत्री के लिए उलटे-सीधे शब्द बोल रहा है, हिन्दू देवी-देवताओं के लिए बोल रहा है। उसका एजेंडा क्या है? इसी गुट की मेधा पाटकर को आआपा द्वारा गुजरात विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने की बात चल रही थी। यानी गुजरात में आआपा पूरी तरह से विदेशी इशारों पर नाचने वाले वामपंथियों के कब्जे में है!
अब यह पार्टी बाबा साहेब की आड़ लेकर उनके परिवार को बांटने का काम कर रही है। महापुरुषों को बांटा जा सकता है क्या? बाबा तो पूरे परिवार के हैं। ये उसे वर्ग में बांटते हैं और अपने राजनीतिक हित साधते हैं। कम्युनिस्ट यही करते हैं। मुसलमान अपनी ताकत बढ़ाने के लिए करते हैं। आआपा भी यही काम कर रही है।
आआपा ने राजेंद्र पाल गौतम का जो इस्तीफा लिया है, वह शुद्ध वोट बैंक के कारण लिया है, उनकी अक्षमता या भ्रष्टाचार के कारण नहीं। आआपा के लिए अक्षमता और भ्रष्टाचार मुद्दा ही नहीं है। अगर होता तो इससे पहले सत्येन्द्र जैन, सोमनाथ भारती और न जाने कितनों का इस्तीफा ले लिया गया होता। इनको लगा कि इससे गुजरात में चुनावी खेल पलट जाएगा, तो इस्तीफा लेने का स्वांग किया गया। वरना जिन्हें शह देकर ये लोग भ्रष्टाचार करवाते हैं, सामाजिक आचरण से प्रतिकूल आचरण करते हैं और पार्टी किसी को बाहर नहीं निकालती। एक आदमी जिसका दिमाग काम नहीं करता, उसको मंत्री बना रखा है।
दंगा आरोपी और खतरनाक हथियार एकत्रित करने वाले तो आज भी इनके माननीय बने हुए हैं। क्या इन्हें नौटंकी में इस्तेमाल करने के लिए एक राजेन्द्र पाल गौतम ही मिले? यूज एंड थ्रो?
लिहाजा इन्हें छोड़िए। पर्व मनाएं और कड़वाहट से परे मनाएं। भारत की मिष्ठान और पकवानों की एक सुदीर्घ परंपरा रही है। कई लोगों ने यहां की मिष्ठान परंपरा को चहुंओर फैलाने में, भारतीय मिठाइयों की तूती बुलवाने में अपना जीवन खपा दिया। पाञ्चजन्य ने इस अंक में ऐसे ही दिग्गजों और पकवान परंपरा पर यह आयोजन किया है।
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
@hiteshshankar
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