चीन की तिब्बत को लेकर मंशाएं कितनी शातिर हैं इसका हमने बार—बार खुलासा किया है। तिब्बत की मूल पहचान को बदलकर उसे मुख्यभूमि चीन के किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह बनाने की चीनी चाल धीमे—धीमे तेज होती जा रही है। तिब्बत की बौद्ध आस्था को कुचलने और बौद्धों के सर्वमान्य और पूज्य दलाई लामा के पद पर प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा को कुचलने के उसके ताजा षड्यंत्र का भी खुलासा दो दस्तावेजों से हो गया है।
यह कोई छुपी बात नहीं है कि भारत में 1959 से शरण लेकर रह रहे दलाई लामा और उनके लाखों अनुयायियों को चीन का रुख आक्रामक ही बना रहा है। लेकिन जैसा सुनने में आता रहा है और चीन के कुछ कामों से यह स्पष्ट भी हो चुका है, ड्रैगन अब ‘अपने’ किसी व्यक्ति को दलाई लामा के पद पर बैठाकर तिब्बतियों को अपने इशारों पर नचाना चाहता है। इधर अंदरखाने के दो दस्तावेजों के हाथ में आने के बाद से इस बात की पुष्टि हो चुकी है। इनसे उसकी खास रणनीति का पर्दाफाश हुआ है। इससे साफ होता है कि 14वें दलाई लामा के पद पर वह अपने आदमी को बैठाने के लिए क्या क्या तिकड़म लगा रहा है।
उल्लेखनीय है कि ये दस्तावेज पांथिक स्वतंत्रता तथा मानवाधिकार के मामलों को देखने वाली पत्रिका ‘बिटर विंटर’ के मुख्य संपादक मार्को रेस्पिंटी ने इस बारे में बताया है कि दो अनदेखी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अहम नीति ये दस्तावेज चीन में जानकार तिब्बती अनुसंधानकर्ताओं को विश्लेषण के लिए भेजे हैं। इनसे साफ होता है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार वर्तमान दलाई लामा के बाद के दिनों को लेकर एक बड़ी तैयारी करने में जुटी है। इस बारे में पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में वर्तमान दलाई लामा के जाने के बाद उसका राजनीतिक लाभ लेने और उनका उत्तराधिकारी चुनने की चीन की प्रस्तावित चालों की जानकारी है।
शायद इन्हीं सब बातों को देखते हुए पिछले दिनों ही दलाई लामा ने यह कहा था कि वे तिब्बत के बौद्ध धर्म को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की दखल को रोकने तथा लामा जी के पुनर्जन्म की परंपरा को बचाए रखने के लिए दोबारा जन्म नहीं लेंगे।
पत्रिका ‘बिटर विंटर’ के अनुसार, सामने आई 30 पृष्ठों वाली रपट इस बात को साबित करती है। रपट ‘तिब्बत, दलाई लामा तथा पुनर्जन्म की भू-राजनीति’ शीर्षक से इस रपट को अंतरराष्ट्रीय तिब्बत नेटवर्क और तिब्बत न्याय केंद्र ने जारी किया है। दस्तावेज साफ दिखाते हैं कि कैसे चीन की सरकार 14वें दलाई लामा के तौर पर पुनर्जन्म की तिब्बती बौद्ध प्रथा की पालना करने के लिए तेजी से विस्तृत योजनाएं लागू कर रहा है।
रपट बताती है कि चीन की इस योजना के नतीजे बहुत दूर तक असर डालेंगे। इसके माध्यम से चीन तिब्बत की पहचान को खत्म करके इसे नया ही रंग—रूप देने का मन बना चुका है। चीन का उद्देश्य दलाई लामा के साथ ही तिब्बती लोगों के आपसी गहरे नाते को खत्म करना है। इसमें तिब्बतियों पर पैनी नजर रखते हुए मठों और भिक्षुओं पर शिकंजा कसते जाना है। इसी योजना के तहत तिब्बती भिक्षुओं को मठों और अन्य पांथिक संस्थानों से बाहर निकाला जा चुका है। तिब्बती धार्मिक समारोहों को बंद करने की मुहिम छेड़ी हुई है।
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