हिंदू समानता की कल्पना सर्वांगीण समरसता की कल्पना है। उसकी मूलभूत श्रद्धा यह है कि सभी में एक ही आत्मा है, सभी में भगवान का अंश है, इसलिए कोई ऊंच-नीच नहीं है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक अर्थात जीवन के सभी अंगोपांग में हम समानता की कल्पना करते हैं। हिंदुत्व की दृष्टि में एक यह भी विशेष बात है कि समानता समरसता से उत्पन्न होती है।
घर-परिवार में सभी का एक-दूसरे के प्रति समान व्यवहार होता है और विभिन्न प्रकार की भूमिका भी निभाते हैं क्योंकि उनमें समरसता होती है, परस्पर प्रेम होता है। इसलिए हिंदुत्व और संघ की दृष्टि से पहले हम समरसता पर जोर देते हैं।
समरसता के साथ-साथ स्वयं ही समानता भी आती है। यही हिंदुत्व और संघ की विशेषता है। आपसी समझ, बराबरी, आत्मीयता का भाव ही समाज में समता और समरसता स्थापित करने का मार्ग है।
भेदभाव मानसिक परायेपन की तार्किक परिणति है। इसलिए अपनत्व भाव का निर्माण होना अधिक जरूरी है। अपनत्व भाव का निर्माण होगा एकात्मता के विचारों से। इस एकात्मता का स्वभाविक परिणाम समरसता है।
(पाञ्चजन्य में प्रकाशित हो.वि. शेषाद्रि और सुंदर सिंह भंडारी के आलेखों से)
समता पर भाषण
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