साक्षरता के साथ-साथ लोगों को सुसंस्कारित करना भी शिक्षा में अंतर्भावित है। व्यक्ति साक्षर तो हुआ किंतु सुसंस्कारित नहीं हुआ तो ऐसा व्यक्ति एक तरह से राक्षस ही होता है।
साक्षरता के साथ-साथ व्यवहार सिखाना और संस्कारित करना भी शिक्षा का दायित्व है। आज हम अनुभव करते हैं कि शिक्षा क्षेत्र में लोगों को सुसंस्कारित करने की दृष्टि से जितना प्रयास होना चाहिए, उतना नहीं हो पाता। छात्रों को सुसंस्कारित करने का कामकेवल स्कूलों या कॉलेजों में ही नहीं, इसकी शुरूआत घर से ही होनी चाहिए।
घर का वायुमंडल कैसा है, उसके माता-पिता उसे किस प्रकार की शिक्षा देते हैं, यह भी उतने ही महत्व का है। छात्रों के व्यवहार का दायित्व शिक्षकों के साथ ही उनके माता-पिता और पालकों पर भी है। सभी को अपना दायित्व ठीक तरह से समझना और निभाना होगा।
(पाञ्चजन्य में प्रकाशित श्री बालासाहेब देवरस जी के आलेख के अंश)
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