खालिस्तानियों की हरकतें इधर पिछले कुछ समय से कनाडा में कुछ ज्यादा ही देखने में आ रही हैं। कनाडा में खालिस्तानी तत्व भारत विरोधी गतिविधियों और दुष्प्रचार में लगे हुए हैं। कभी वे खालिस्तान का गुणगान करते हुए मुख्य सड़कों पर बड़े बड़े बोर्ड लगाते हैं तो कभी भारत के पर्व त्योहारों के विरुद्ध दुष्प्रचार हो हवा देते हैं। भारत में केन्द्र की मोदी सरकार की नीतियों का कथित कांग्रेस, आआपा और कम्युनिस्ट दलों से साठगांठ करते हुए बदनाम करने का काम करते हैं। यही वजह है कि भारत सरकार समय समय पर कनाडा सरकार को ऐसे तत्वों के प्रति आगाह करती आ रही है।
ताजा समाचारों के अनुसार, आगामी 6 नंबर को खालिस्तानियों ने एक और भारत विरोधी एजेंडे के तहत ‘जनमत संग्रह’ करने की घोषणा की है। इसे लेकर भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाते हुए कनाडा सरकार को सचेत किया है कि ऐसे तत्वों को खुली छूट न दी जाए।
अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड में प्रमुख रूप से सक्रिय इन तत्वों ने हिन्दू समुदाय को भी निशाना बनाया हुआ है। इसके पीछे वजह यही है कि ये समुदाय अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा रखता है और खालिस्तानियों के पृथकतावादी एजेंडे का विरोधी है। अभी पिछले दिनों ऐसी अनेक घटनाएं हुई हैं जिनसे भारत विरोधी तत्वों की सक्रियता का अंदाजा लगता है। जैसे, न्यूयॉर्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा को खंडित किया जाना। इसके करीब एक महीने के अंतराल पर कनाडा में एक मंदिर को निशाना बनाया गया और वहां दीवारों पर भारत विरोधी तस्वीरें बना दी गईं। इतना ही नहीं, मंदिर की दीवारों पर ‘खालिस्तान जिंदाबाद’, ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ के उकसावे वाले नारे लिखे गए।
कनाडा में खालिस्तान का यह पृथकतावादी अभियान कुछ ज्यादा ही गति पकड़ रहा है इसलिए वहां के भारत विरोधी तत्व ‘जनमत संग्रह’ कराने की जुर्रत कर रहे हैं। यह नि:संदेह खालिस्तानियों द्वारा करीब दो साल पहले प्रचारित किए गए ‘रेफेरेंडम—2020’ की साजिश का अगला प्रयास है। भारत की केन्द्र सरकार ने कनाडा सरकार को इसी चीज को लेकर सावधान किया है।
भारत ने कनाडा सरकार को इस भारत विरोधी ‘जनमत संग्रह’ को रोकने की अपील की है। भारत सरकार की तरफ से स्पष्ट कहा गया है कि ये भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देता है। ध्यान रहे कि अभी पिछले महीने की 16 तारीख को कनाडा सरकार ने बयान दिया था कि कनाडा की सरकार भारत की क्षेत्रीय अखंडता तथा संप्रभुता का सम्मान करती है। उसी बयान में कहा गया था कि वह ऐसे तथाकथित ‘जनमत संग्रह’ को मान्यता नहीं देती।
अभी तक मिले अंदर के समाचारों के अनुसार, यह पृथकतावादी ‘जनमत संग्रह’ 6 नवंबर को ओंटारियो में कराया जाना है। इससे पहले ऐसा ही एक ‘जनमत संग्रह’ पिछले महीने 18 सितंबर को ब्रैम्पटन में रखा गया था। कनाडा में पृथकतावादी भारत विरोधी तत्व गुरपतवंत पन्नू की एसएफजे संस्था के बारे में भी भारत सरकार ने कनाडा सरकार तथा सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क किया था। लेकिन इतने के बाद भी वहां खालिस्तानियों का जनमत संग्रह का ढकोसला किया गया। तब इसी त्रूदो की सरकार ने कहा था कि उनके यहां लोगों को छूट है कि वे खुद के विचार व्यक्त कर सकते हैं, बशर्ते वह कानून की सीमा में हो।
इसके बाद भी त्रूदो की सरकार ने अपने यहां सक्रिय खालिस्तानियों जैसी भारत के विरुद्ध षड्यंत्र रच रही ताकतों पर लगाम लगाने की कोई पहल नहीं की है। हैरानी की बात है कि इन्हीं प्रधानमंत्री त्रूदो ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों में रूस द्वारा कराए गए कथित जनमत संग्रह के विरुद्ध अपना मत जाहिर किया था और उस पर ट्वीट भी किया था।
भारत की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों को यह कहते हुए सावधान किया जा चुका है कि गुरपतवंत पन्नू सरीखे सिख चरमपंथियों को सिखों को भड़काकर कट्टरपंथी बनाने से नहीं रोक रहे हैं। यह आगे चलकर उनके लिए मुसीबत की वजह बन जाएंगे। कनाडा की सुरक्षा एजेंसियां आग से खेल रही हैं।
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