ओडिशा में स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत अच्छी है और न ही बच्चों की। बीते दिनों क्योंझर जिला मुख्य चिकित्सालय में 18 दिनों में 13 शिशुओं ने दम तोड़ दिया। ये सारी मौतें लापरवाही के कारण हुई।
क्योंझर ओडिशा का सबसे बड़ा और खनिज संपदा से समृद्ध जिला है। राज्य के उत्तरी छोर पर बसा विविध प्राकृतिक संसाधनों वाला यह जिला अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां बड़ी संख्या में खनन कंपनियां मौजूद हैं। इसके बावजूद इस जिले में न तो स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत अच्छी है और न ही बच्चों की। बीते दिनों क्योंझर जिला मुख्य चिकित्सालय में 18 दिनों में 13 शिशुओं ने दम तोड़ दिया। ये सारी मौतें लापरवाही के कारण हुई।
इस पर हंगामा होना ही था। तब जिला प्रशासन हरकत में आया। पहले तो जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आक्रोशित लोगों को शांत कराने का प्रयास किया और एहतियातन अस्पताल परिसर में पुलिस बल की तैनाती कर दी। बच्चों को खो चुके परिजनों का कहना था कि उनके बच्चों की मौत डॉक्टरों व नर्सों की लापरवाही के कारण हुई। इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर नहीं थे, इसलिए बच्चों का समय पर इलाज नहीं हुआ। एक और बच्चे के पिता ने बताया कि उन्होंने रात 9 बजे अपने लाडले को जब अस्पताल में भर्ती कराया, तो कोई डाक्टर नहीं था। अगले दिन दोपहर अस्पताल प्रशासन ने बताया कि उनके बच्चे की मौत हो गई। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण यहां इतनी संख्या में बच्चों की मौत हुई है।
लचर हैं स्वास्थ्य सेवाएं
बहरहाल, परिजन जब नहीं माने तो प्रशासन ने जांच के आदेश दे दिए। इसमें पता चला कि अस्पताल में पिछले 18 दिनों में 13 बच्चों की मौत हो चुकी है। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत बताती है कि जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति लचर है। स्थानीय मीडिया में बच्चों की मौत की खबर आने के बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नवकिशोर दास हरकत में आए और घटना की जांच कराने के आदेश दिए। उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच में यह बात सामने आई है कि कुछ बच्चे कुपोषण के शिकार थे। स्वास्थ्य विभाग को जल्द रिपोर्ट देने को कहा गया है। उधर, जिला अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद सरकार ने आनन-फानन में सीडीएमओ को हटा दिया और अतिरिक्त निदेशक (बाल स्वास्थ्य) डॉ. रश्मि सत्पथी ने अस्पताल का दौरा किया।
अतिरिक्त जिला स्वास्थ्य अधिकारी (एडीएमओ) किशोर पृष्टी का कहना है कि सितंबर में कुल 122 बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए, जिनमें से 13 की मौत हो गई। हालांकि जिले की मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी (सीडीएमओ) सुजाता रानी मिश्रा इलाज में लापरवाही संबंधी रिपोर्ट को सिरे से खारिज करती हैं। साथ ही, 24 घंटे में 4 बच्चों की मौत को भी झूठ बता रही हैं। बकौल सुजाता, 24 घंटे में कोई मौत ही नहीं हुई। बता दें कि मरने वाले सभी नवजात शिशु थे। बताया जा रहा है कि कुछ बच्चों की मौत आक्सीजन नहीं मिलने के कारण हुई, जबकि कुछ को समय पर उपचार नहीं मिला। लेकिन सीडीएमओ का कहना है कि सभी नवजात शिशुओं की मौत दूसरी वजहों से हुई है।
चिकित्सकों की भारी कमी
राज्य में पिछले 22 साल से नवीन पटनायक की सरकार है। लेकिन अब तक चिकित्सा सेवाओं में कोई सुधार नहीं आया है। क्योंझर ही नहीं, पूरे राज्य में चिकित्सकों की भारी कमी है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में 1943 व्यक्ति पर एक चिकित्सक उपलब्ध है। आबादी और चिकित्सक का यह अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से बहुत कम है। राष्ट्रीय अनुपात हासिल करने के लिए ओडिशा में 10,000 चिकित्सकों की जरूरत है।
क्योंझर से भाजपा विधायक मोहन माझी ने कहा कि बच्चों में कुपोषण का मामला हो या स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का, हर मामले में राज्य सरकार संवेदनहीन है। जिले में इतनी खदानें हैं और जिला खनिज निधि (डीएमएफ) में 8,583 करोड़ रुपये से अधिक की राशि है। इसका उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं के विकास पर किया जा सकता है। केंद्र सरकार भी देश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री पोषण योजना चला रही है। इस योजना के तहत राज्य को करोड़ों रुपये भेजे जा रहे हैं, लेकिन इस राशि को खर्च करने में भी गड़बड़ियां हो रही हैं।
केंद्र ने इस योजना के तहत 20 सितंबर को ओडिशा के लिए 279 करोड़ रुपये मंजूर किए, जबकि पिछले साल राज्य को 576 करोड़ रुपये मिले। माझी का आरोप है कि योजना के तहत अगली किस्त के लिए राज्य सरकार को जो दस्तावेज देने थे और जिन दिशानिर्देशों का पालन करना था, बीजद सरकार उसे भी नहीं पूरा नहीं कर पाई। इस कारण बेवजह केंद्र से राशि मिलने में देरी हो रही है, जिसका खामियाजा राज्य के बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कुपोषण और डॉक्टरों की लापरवाही से इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत होना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। जिला मुख्यालय और मेडिकल कॉलेज में नियुक्त डॉक्टर अधिकांश समय अवकाश पर रहते हैं। इसके अलावा, जिले में शिशु रोग विशेषज्ञों की भी कमी है। उन्होंने कहा कि जिला अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले की जांच उच्च न्यायालय के जज से कराई जाए।
जस का तस कुपोषण
भारतीय खान ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा में पाए जाने वाले लौह अयस्क का 75 प्रतिशत हिस्सा केवल केंदूझर जिले में पाया जाता है। राज्य का 31.28 प्रतिशत लौह अयस्क खनन इसी जिले में होता है। इसके बावजूद यहां की 62 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। तीन तरफ से जंगल से घिरे इस जिले की खनिज संपदा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2001 में जिले में 76 खदानें थीं, जो 2020 तक 109 हो गई। राज्य के खनन क्षेत्र में मिलने वाले रोजगार में अकेले केंदूझर 5.31 प्रतिशत का योगदान देता है। एक अन्य शोध के मुताबिक, जिले की 64 प्रतिशत आबादी खनन पर आश्रित है, लेकिन उनकी मासिक आय 5-10 हजार ही है। जिले की लगभग 50 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे है।
इस क्षेत्र में मलेरिया, डायरिया और सांस की बीमारी आम है। इसका मुख्य कारण खनन ही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां खनन में लगी कंपनियों से बाल कल्याण के लिए सीएसआर फंड में काफी पैसा जाता है। खनन प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के हितों की रक्षा के लिए जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) ट्रस्ट स्थापित किए गए। इसमें खान एवं खनिज अधिनियम-2015 के तहत खनन कंपनियां अपनी रॉयल्टी का एक-तिहाई हिस्सा जमा करती हैं। यह राशि एक ट्रस्ट के जरिये खर्च की जाती है। क्योंझर ओडिशा का एकमात्र जिला है, जिसे बीते 5 वर्ष में डीएमएफ मद में 4,506 करोड़ रुपये मिले। प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना में यह दिशानिर्देश दिया गया है कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट का पैसा किस तरह खर्च किया जाना है। लेकिन ये पैसे खर्च ही नहीं हो रहे हैं। नतीजा, बच्चों में कुपोषण जस का तस है।
कुपोषण को लेकर सरकारी आंकड़े ओडिशा की स्थिति बेहद खराब बताते हैं। खासतौर से जनजातीय बहुल जिलों की स्थिति बहुत खराब है, जबकि तटीय जिलों की स्थिति थोड़ा ठीक है। राज्य के 16 जिलों के बच्चों में कुपोषण राष्ट्रीय औसत से अधिक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएसए)-5 के आंकड़ों के अनुसार, सूबे में 5 वर्ष से कम उम्र के 31 प्रतिशत बच्चों का शारीरिक विकास उम्र के हिसाब से नहीं हो रहा है, जबकि पांच वर्ष से कम आयु के 27 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। ओडिशा में औसतन 100 में से कम से कम 30 बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं, जो कि राज्य के जनजातीय बहुल जिलों में 100 में 50 तक है। बच्चों का वजन कम है और ये एनीमिया से पीड़ित हैं। 2015-16 में जहां 44 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित थे, 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 64.2 प्रतिशत हो गया। यह चिंताजनक स्थिति है।
टिप्पणियाँ