विजयदशमी पर्व पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में अपना उद्बोधन दिया। इस दौरान उन्होंने कहा- प्रजातंत्र में प्रजा के मनोयोग से सहयोग का महत्व सर्वश्रुत है ही । नियमों का बनना, स्वीकार होना तथा अपेक्षा परिणाम तक पहुँचना उसी से होता है। जिन नियमों से त्वरित लाभ होते हैं, अथवा कालांतर में कोई लाभ अथवा स्वार्थसिद्धि दिखाई देती हो उन्हें समझाना नहीं पड़ता। परन्तु जब देश के हित में या दुर्बलों के हित में अपने स्वार्थ को छोड़ना पड़े, वहाँ इस त्याग के लिए जनता सदैव तय्यार रहे इस लिए समाज में स्व का बोध व गौरव जगाए रखने की आवश्यकता होती है।
यह स्व हम सबको जोड़ता है। क्यों कि वह हमारे प्राचीन पूर्वजों ने प्राप्त किये सत्य की प्रत्यक्षानुभूति का सीधा परिणाम है। “सर्व यद्भूतं यच्च भव्यं” उसी एक शाश्वत अव्यय मूल की अभिव्यक्ति मात्र है, इसीलिए अपनी विशिष्टता पर श्रद्धापूर्वक दृढ़ रहते हुए सभी की विविधता, विशिष्टता का सम्मान व स्वीकार करना चाहिए, यह बात सबको सिखाने वाला केवल भारत है। सब एक हैं इसलिए सबको मिलजुलकर चलना चाहिए, मान्यताओं की विविधता हमको अलग नहीं करती। सत्य, करुणा, अंतर्बाह्य शुचिता, तथा तपस् का तत्वचतुष्टय सभी मान्यताओं को साथ चलाता है। सभी विविधताओं को सुरक्षित व विकासमान रखते हुए जोड़ता है। उसी को हमारे यहां धर्म कहा गया। इन्हीं चार तत्वों के आधार पर सम्पूर्ण विश्व के जीवन को समन्वय, संवाद, सौहार्द तथा शान्ति पूर्वक चला सकने वाले संस्कार देने वाली संस्कृति हम सबको जोड़ती है, विश्व को कुटुम्ब के नाते जोड़ने की प्रेरणा देती है। सृष्टि से लेकर हम सभी जीते हैं, फलते फूलते हैं। जीवने यावदादानं स्यात्प्रदानं ततोऽधिकम् की भावना हमें उसी से मिलती है। “वसुधैव कुटुंबकम्” की यह भावना तथा “विश्वं भवत्येकं नीडम्” यह भव्य लक्ष्य हमें पुरुषार्थ की प्रेरणा देता है।
हमारे राष्ट्रीय जीवन का यह सनातन प्रवाह प्राचीन समय से इसी उद्देश्य से इसी रीति से चलता आया है । समय व परिस्थिति के अनुसार रूप, पथ तथा शैली बदलती गयी परन्तु मूल विचार, गन्तव्य तथा उद्देश्य निरन्तर वही रहे हैं। इस पथ पर यह निरन्तर गति हमें अगणित वीरों के शौर्य और समर्पण से, असंख्य कर्मयोगियों के भीमपरिश्रम से तथा ज्ञानियों की दुर्धर तपस्या से प्राप्त हुई है । उनको हम सब अपने जीवन में अनुकरणीय आदर्शों का स्थान देते हैं। वे हम सबके गौरव निधान हैं। वे हमारे समान पूर्वज हमारे जुड़ने का एक और आधार हैं।
उन सभी ने हमारी पवित्र मातृभूमि भारत वर्ष के ही गुणगान किये है । प्राचीन काल से सभी प्रकार की विविधता को ससम्मान स्वीकार कर साथ चलाने का हमारा स्वभाव बना; भौतिक सुख की परमावधि पर ही न रुकते हुए अपने अन्तरतम की गहराइयों को खंगालकर हमने अस्तित्व के सत्य को प्राप्त किया; विश्व को अपना ही परिवार मानकर सर्वत्र ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति व भद्रता का प्रसार किया इसका कारण यह हमारी मातृभूमि भारत ही है। प्राचीन काल में सुजल सुफल मलयजशीतल इस भारत जननी ने प्राकृतिक रीति से सर्वथा सुरक्षित अपनी चतु:सीमा में जो सुरक्षा व निश्चिंतता हमें दी उसी का यह फल है। उस अखण्ड मातृभूमि की अनन्य भक्ति हमारी राष्ट्रीयता का मुख्य आधार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में आयोजित विजय दशमी कार्यक्रम में शक्ति की साधना का आह्वान किया। इस अवसर पर उन्होंने शस्त्र पूजा भी की इस दौरान उनके साथ पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद रहीं। संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं।
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