अभिषेक कुमार ने शिक्षक प्रतियोगिता परीक्षा में अपने प्रखंड में सबसे अधिक अंक लाए और उन्हें नौकरी भी मिली, लेकिन चार दिन बाद ही उन्हें यह कहते हुए हटा दिया गया कि मिशन स्टेशन ने आपका भारी विरोध किया।
अब झारखंड में कोई हिंदू किसी सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय में नौकरी नहीं कर सकता है। भले ही उसने इसके लिए आयोजित परीक्षा अच्छे अंकों से पास ही क्यों न कर ली हो। यही नहीं, यदि किसी हिंदू की नौकरी लग भी जाए और चर्च चाह ले तो उसकी नौकरी भी जा सकती है। एक ऐसा ही मामला रांची जिले के लापुंग प्रखंड में सामने आया है। बताया जा रहा है कि लापुंग के सारंगलोया गांव में आ.सि. मिशन प्राथमिक एक अल्पसंख्यक विद्यालय है। यहां नियुक्त हुए शिक्षकों को झारखंड सरकार वेतन देती है। इस विद्यालय सहित कई अल्पसंख्यक विद्यालयों में इसी वर्ष 30 जुलाई को शिक्षक नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था। इस विज्ञापन के अनुसार किसी भी मत, पथ या समुदाय का व्यक्ति आवेदन कर सकता था। 20 अगस्त को शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा ली गई और 22 अगस्त को परीक्षा का परिणाम आया। इस परीक्षा परिणाम में लापुंग प्रखंड के अंतर्गत सबसे अधिक अंक अभिषेक कुमार को प्राप्त हुआ। इसके बाद 23 अगस्त को विद्यालय प्रबंधन समिति की बैठक में इनकी नियुक्ति का निर्णय लिया गया। 26 अगस्त को अभिषेक कुमार को नियुक्ति पत्र भेजकर 5 सितंबर तक नौकरी शुरू करने को कहा गया। नौकरी मिलने की खुशी में अभिषेक 1 सितंबर को ही विद्यालय पहुंचे और औपचारिकता पूरी कर छात्रों को पढ़ाने लगे। इसके बाद अचानक 5 सितंबर को उनके स्वागत के बाद उन्हें एक पत्र देकर कहा गया कि मिशन स्टेशन के भारी दबाव और विरोध के कारण आपका योगदान अस्वीकृत किया जाता है। यानी उन्हें विद्यालय से निकाल दिया गया। अब आप समझ ही गए होंगे कि यह मिशन स्टेशन क्या है और अभिषेक को विद्यालय से क्यों निकाल दिया गया होगा। सवाल उठता है कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे इस विद्यालय में मिशन स्टेशन क्या काम है?
अभिषेक के पिता चंद्रमोहन ठाकुर के अनुसार, ” आसपास के क्षेत्रों और विद्यालयों में ईसाई मिशनरियों का काफी प्रभाव है। इसी वजह से उनके बेटे अभिषेक कुमार को पूरे प्रखंड में सबसे अधिक अंक प्राप्त करने और नियुक्ति होने के बाद भी नौकरी से निकाल दिया गया। इसके लिए उन्हें पत्र भी भेजा गया था। पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा गया कि मिशन स्टेशन के दबाव के बाद अभिषेक की नियुक्ति रद्द कर दी गई।”
इसकी खबर फैलने के बाद स्कूल की तरफ से यह कहा जा रहा है कि अगर अभिषेक ईसाई होने वाली बात का खंडन कर दें तो अगले महीने से उनकी नियुक्ति फिर से हो जाएगी।
इस प्रकरण पर हिंदू जागरण मंच के प्रदेश परावर्तन प्रमुख संजय कुमार वर्मा ने कहा, ” झारखंड में तुष्टीकरण की पराकाष्ठा देखने को मिल रही है। कभी मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा विद्यालय के नियमों को बदल दिया जाता है, तो कभी चर्च और मिशनरियों के दबाव में हिंदू शिक्षकों को निकाल दिया जाता है। झारखंड के अल्पसंख्यक विद्यालयों के शिक्षकों को वेतन झारखंड सरकार देती है उसके बावजूद इन विद्यालयों में मिशनरियों का हस्तक्षेप करना समझ से परे है। यह स्थिति सिर्फ लापुंग प्रखंड की ही नहीं है, बल्कि खूंटी, गुमला और सिमडेगा जिले के अल्पसंख्यक विद्यालयों में भी यही हाल है। यहां पर भी रणनीति के तहत सिर्फ ईसाई बन चुके लोगों को ही नौकरी दी जा रही है।”
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि झारखण्ड में चर्च के लोग क्या कर रहे हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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