ईसाइयों ने पूरे प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमा रखा है और वहां क्रॉस लगाकर बेलगाम ‘प्रार्थना घर’ बना रहे हैं। यह सिलसिला पिछले 3-4 वर्षों में ज्यादा बढ़ा है। दूसरी ओर, प्रशासन की शह से मिशनरी हिंदू मंदिरों या तीर्थस्थलों के नवीनीकरण या उनके विस्तार को बाधित कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश ने पिछले दो दशकों में तेजी से ईसाईकरण देखा है। हालांकि, विडंबना यह है कि आज ईसाई मिशनरियों को वर्तमान राज्य सरकार का पूरा समर्थन मिल रहा है जिससे कन्वर्जन में तेजी आई है और कन्वर्टेड लोगों की वित्तीय स्थिति और उनके जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के प्रयासों को भी बल मिला है।
पहाड़ियों पर सलीब – प्रशासन की मौन स्वीकृति
ईसाइयों ने पूरे प्रदेश में पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमा रखा है और वहां क्रॉस लगाकर बेलगाम ‘प्रार्थना घर’ बना रहे हैं। यह सिलसिला पिछले 3-4 वर्षों में ज्यादा बढ़ा है। दूसरी ओर, प्रशासन की शह से मिशनरी हिंदू मंदिरों या तीर्थस्थलों के नवीनीकरण या उनके विस्तार को बाधित कर रहे हैं। उदाहरण देखिए :
1-सुब्रमण्येश्वर मंदिर-दिकानाकोंडा, कुरीचेडु मंडल, जो पूर्व में प्रकाशम जिला था, नरसिंह स्वामी कोंडा नामक एक विशाल पहाड़ी के नीचे स्थित है और 700-800 साल प्राचीन है। इसे खजाने के लालच में चोरों ने तहस-नहस कर दिया था। जब ग्रामीणों ने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए समिति बनाई, तो ईसाइयों ने तुरंत मंदिर के पीछे पहाड़ी की ऊंची चोटी पर क्रॉस यानी सलीब लगा दिया। जैसे-जैसे जीर्णोद्धार का काम आगे बढ़ा, उस जगह पर ही चर्च के निर्माण की मांग भी उभरने लगी जहां पहले एक क्रॉस लगा दिया गया था। हिंदुओं की शिकायत पर पुलिस उप-अधीक्षक के. दारसी ने दौरा किया और मंदिर के आसपास सभी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए धारा 145 लगाने की सिफारिश की। जनवरी, 2021 में तहसीलदार ने तत्काल इस आदेश को लागू किया। अपील के बावजूद आदेश को वापस नहीं लिया गया। विडंबना यह कि तहसीलदार ने अनुसूचित कॉलोनी के लोगों द्वारा मंदिर के बगल में क्रॉस लगाने की बात कही। अगर अनुसूचित कॉलोनी के लोग क्रॉस लगा रहे थे तो यह सत्यापित करना तहसीलदार का कर्तव्य था कि ये लोग हिंदू अऩुसूचित जाति से थे या ईसाई बन चुके थे। इस पर गौर करने के बजाय, तहसीलदार ने निषेधाज्ञा जारी करने का फैसला किया। मजबूरन ग्रामीणों को उच्च न्यायालय से मंदिर की मरम्मत और नवीनीकरण का कार्य पुन: शुरू करने के लिए स्थगन-आदेश और अनुमति लेनी पड़ी।
2-राहदारी माता पहाड़ी तीर्थ-
पूर्व गुंटूर जिले के एलापिड गांव में राष्ट्रीय राजमार्ग के सामने की एक पूरी पहाड़ी को जमीन से शिखर तक खोद दिया गया और उस पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य होने लगा। पहाड़ी पर पहले से मौजूद छोटे हिंदू मंदिरों को नष्ट करने के बाद पहाड़ी की चोटी को समतल करके एक विशाल क्रॉस की स्थापना की गई। ग्रामीणों के अनुसार, पहाड़ी पर ‘सेंतामु पदालु’ (मां सीता के चरण) नाम का एक छोटा मंदिर मौजूद था। शादियां पहाड़ी पर ही होती थीं। लेकिन ईसाइयों ने पहाड़ी पर कब्जा कर निर्माण शुरू कर दिया। अधिकारियों के पास की गई शिकायतों को अनसुना कर दिया गया। उनका एक ही जवाब होता ‘पहाड़ी पर कोई निर्माण गतिविधि नहीं देखी गई’। आरटीआई से पता चला कि पहाड़ी पर किसी को भी किसी प्रकार का निर्माण कार्य करने की अनुमति नहीं दी गई थी। हालांकि, जब पहाड़ी पर हुई खुदाई के कारण हुई भारी बरबादी का मंजर दिखाई देने लगा तो जनता का ध्यान आकर्षित हुआ, जिसके बाद पूरे मामले को छिपाने के लिए अधिकारियों की कवायद शुरू हो गई। उप-कलेक्टर, नरसरावपेटा ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें अवैध निर्माण होने की बात स्वीकार की गई और आगे की कार्रवाई के लिए सरकार को रिपोर्ट भेजी गई।
पुलिस अधिकारियों की टीम ने भी घटनास्थल का दौरा किया और तथ्यों को पूरी तरह से उलट-पलट कर अपनी छवि साफ दिखाते हुए एक वीडियो भी जारी किया। जैसे ही यह मुद्दा फीका पड़ा, तत्परता से विशाल क्रॉस लगा दिया गया और वहां तक सीढ़ियां भी बना दी गईं। आज पहाड़ी के शिखर पर बने अवैध चर्च में नियमित प्रार्थना हो रही है और अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई फाइलों में बंद है। यह घटना राज्य में ईसाई मिशनरियों द्वारा भूमि को अवैध रूप से हथियाने की गतिविधियों पर आंध्र प्रदेश सरकार के पूर्ण समर्थन का स्पष्ट उदाहरण है। जहां हिंदू मंदिरों के निर्माण/मरम्मत/नवीनीकरण में बाधा डाली जा रही है, वहीं ईसाइयों को सरकारी तंत्र से भूमि, पहाड़ियों को हथियाने और मनमाने निर्माण करने की खुली छूट मिली हुई है।
चर्च निर्माण के लिए सार्वजनिक निधि
मार्च 2020 में वर्तमान सरकार ने अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर 76 चर्च और चर्च संचालित संस्थाओं के निर्माण/नवीनीकरण के लिए धनराशि जारी की। स्वीकृत राशि प्रति चर्च अधिकतम 5.00 लाख रुपये थी।
पादरी-इमाम-पुजारी मानदेय में भेदभाव
2019 के चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणापत्र में, आंध्र प्रदेश की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी, वाईएसआरसीपी ने निम्न वादे किए :
क) इमामों, मुअज्जिनों का मानदेय बढ़ाकर 15,000/- रुपये प्रति माह प्रति व्यक्ति।
ख) ईसाई पादरियों को मासिक मानदेय का भुगतान कम से कम 5,000/- रुपये प्रति व्यक्ति।
ग) हिंदू मंदिरों को प्रति मंदिर 10,000 से 35,000 रुपये का भुगतान होगा जिसमें पुजारी मानदेय सहित सभी खर्च शामिल हैं। यह राशि पंचायत की जनसंख्या के आधार पर तय होगी।
यह घोषणा हिंदुओं के लिए अत्यधिक भेदभावपूर्ण थी क्योंकि हिंदू पुजारियों के लिए मासिक मानदेय के रूप में कोई राशि तय नहीं की गई थी। इसके अलावा, मौलवियों और पादरियों के भुगतान का आधार व्यक्तिगत था जबकि हिंदुओं के लिए इसका आधार मंदिर, इसकी श्रेणी और मंदिर द्वारा अर्जित आय माना गया था।
उपरोक्त चुनावी वादे का कार्यान्वयन और भेदभावपूर्ण था। मई 2020 में, प्रदेश सरकार ने पांथिक कार्य संपन्न करने वालों के लिए कोविड-19 से उत्पन्न कठिनाइयों का सामना करने के एवज में एकमुश्त मुआवजे के रूप में 33.92 करोड़ रुपये जारी किए जिसमें 1.39% की आबादी वाले ईसाइयों को कुल मानदेय का 43.99% प्राप्त हुआ। पर किसी ने यह सवाल नहीं किया कि जिस राज्य में ईसाइयों की आबादी सिर्फ 6.82 लाख है, उसमें 29,841 पादरियों को 5,000 रुपये का भुगतान कैसे हो सकता है। तो क्या आंध्र प्रदेश में हर 23वां ईसाई पादरी है? बड़ी संख्या में उन पादरियों को ये भुगतान मिले जिनके पास हिंदू जाति प्रमाणपत्र हैं।
ईसाई पादरियों को मानदेय भुगतान पर आरटीआई से प्राप्त आंकड़ों से चौंकाने वाला ब्यौरा मिला है। कुछ क्षेत्रों में, ईसाई पादरियों की संख्या उस क्षेत्र में ईसाइयों की वास्तविक आबादी से अधिक थी। इसके अलावा, मानदेय लाभार्थी पादरियों के बारे में आरटीआई से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि नमूने में 60% ईसाई पादरी हिंदू प्रमाणपत्र रखते थे। इससे कई लोगों में रोष भर गया और उन्होंने पादरियों के मानदेय संबंधी आवेदनों के लिए दी गई मंजूरी की प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
क्रिप्टो ईसाइयों के जरिए हिंदुओं से धोखाधड़ी
अगर 60 प्रतिशत पादरियों के पास हिंदू अनुसूचित जाति/अन्य पिछड़ी जाति /अन्य जाति समुदायों का प्रमाणपत्र है, तो क्या यह कहना उचित नहीं होगा कि सामान्य आबादी के लिए भी यही सच है? ईसाई मत के नेताओं के विभिन्न बयानों में आंध्र प्रदेश में ईसाइयों की संख्या लगभग 25 प्रतिशत है और पूर्णकालिक पादरियों की संख्या लगभग 2 लाख। दूसरी तरफ, 2011 की जनगणना के अनुसार, आंध्र प्रदेश में ईसाइयों की कुल संख्या 6.82 लाख ही है जबकि प्रदेश की कुल जनसंख्या 84,580,777 है। यानी ईसाई हो चुके हिंदू जनगणना में स्वयं को हिंदू दर्ज कराते हैं जिन्हें क्रिप्टो ईसाई कहते हैं। ऐसे क्रिप्टो ईसाइयों ने अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए नौकरियों, शिक्षा और विभिन्न आर्थिक विकास योजनाओं में लागू संवैधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण योजना का लाभ उठाने की जालसाजी रची है। इसके परिणामस्वरूप एक दयनीय स्थिति पैदा हो गई है जिसमें अधिकारियों और आम आदमी ने यही निष्कर्ष निकाला है कि ‘अनुसूचित जाति के सभी लोग ईसाई हैं जब तक कि वे अपनी वास्तविक श्रेणी साबित न कर दें’।
‘इंजीलवादियों’ की आंधी में अनुसूचित जाति के लोगों की हिंदू पहचान पर धूल की चादर बिछ गई है। हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत, सभ्यतागत उपलब्धियों और गहरी धार्मिक प्रथाओं का पोषण करने वाला आंध्र प्रदेश का अनुसूचित जाति समुदाय अब विलुप्त होने के कगार पर है। उनकी जीवन शैली, उनकी दैनिक पूजा, त्योहारों का उत्सव – सभी उनकी आंखों के सामने नष्ट होता जा रहा है और बरबादी की इस आंधी को सरकारों से लगातार वित्तीय और प्रशासनिक समर्थन मिल रहा है। इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट ‘वैनिशिंग क्रिश्चियन्स आफ एपी’ में पेश की गई है।
आंध्र प्रदेश में ईसाइयों की आधिकारिक आबादी प्रत्येक जनगणना में जहां घट रही है, ईसाई प्रार्थना घरों में उपस्थिति, पादरियों की संख्या में दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ोतरी देखी जा रही है। दोहरी पांथिक पहचान रखने की यह प्रवृत्ति-व्यक्तिगत तौर पर ईसाई मत का पालन और सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के हिंदू अनुसूचित जाति की पहचान ओढ़ना एक हास्यास्पद स्थिति पैदा कर रही है। कई गांवों में ईसाइयों की संख्या शून्य है, लेकिन दिलचस्प बात यह कि वहां बड़ी संख्या में चर्च मौजूद हैं। उदाहरणार्थ, कृष्णा जिले में रेड्डीगुडेम मंडल के मददुलापर्व गांव में एक भी ईसाई नहीं है, लेकिन वहां 11 चर्च हैं। यह सभी जनसांख्यिकीय रुझानों के विपरीत है और इसकी बारीकी से जांच बहुत जरूरी है।
अनुसूचित जनजातियों को धमकी
पूरे राज्य में मिशनरियों द्वारा एससी परिवारों पर कन्वर्ट होने के लिए लगातार और गंभीर दबाव बनाया जा रहा है। मिशनरियों को राज्य सरकार के समर्थन का एक हालिया उदाहरण है जिसमें राष्ट्रीय एसटी आयोग में दर्ज शिकायत के बाद पुलिस और सरकारी अधिकारियों ने चेंचू जनजातीय समाज की मदद के बजाय उन्हें डराया-धमकाया। 28 जुलाई, 2021 को प्रदेश के प्रकाशम जिले के बालीजेपल्ली गांव में मिशनरियों का एक बड़ा समूह खानाबदोश चेंचू जनजाति के गांव ‘चेंचू कॉलोनी’ में आया। उन्होंने उनके बीच जबरदस्ती ‘ईशु के संदेश’ का प्रचार शुरू कर दिया।
जनजाति के लोगों ने उन्हें चेतावनी देकर भेज दिया। पर 4 अगस्त, 2021 को वे फिर बड़ी संख्या में आए और समुदाय को परोक्ष रूप से धमकियां दीं। फिर वे चेंचू समुदाय के बीच जबरदस्ती ईसोपदेश का प्रचार करने लगे और उसका एक वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया। पुलिस ने जांच की खानापूर्ति करते हुए एक पूर्व-लिखित कागज पर समुदाय से हस्ताक्षर करा लिए और राष्ट्रीय एसटी आयोग के पास दर्ज रिपोर्ट में मिशनरियों को दोषमुक्त कर दिया। इस मामले में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।
नेताओं के बारे में शिकायतें
कई मंत्रियों, अधिकारियों और अन्य राजनेताओं की अनुसूचित जाति स्थिति के बारे में राज्य सरकार को कई शिकायतें दी गईं। ये साक्ष्य भी पेश किए गए हैं कि इन मंत्रियों के सभी पारिवारिक समारोह, विवाह ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुए।
पूर्व गृह मंत्री मेकाथोती सुचरिता की बेटी का विवाह पूरी तरह से ईसाई रीति-रिवाज से संपन्न हुआ। अधिकारियों ने कथित निष्पक्ष जांच तो की, लेकिन उन्होंने उन्हीं सबूतों पर गौर किया जो नेताओं और अधिकारियों के पक्ष में जाते थे। सभी मामलों में निर्णय हमेशा की तरह मंत्रियों और अधिकारियों के पक्ष में गया।
हाल के दिनों में सबसे चौंकाने वाला मामला बिशप कठेरा सुरेश कुमार और उनकी पत्नी हेनी क्रिस्टीना का है। बिशप सुरेश कुमार हार्वेस्ट इंडिया नामक एक बड़ा ‘इंजीलवादी’ संगठन चलाते हैं और इसके परिसर में एक बड़ा चर्च स्थित है। उन्होंने विदेशी मिशनरियों की सक्रिय भागीदारी के साथ कई ईसाई प्रचार कार्यक्रम आयोजित किए हैं। उनके संगठन को विदेशी इंजीलवादी संगठनों से वित्त पोषण मिलता है। बार-बार शिकायत के बावजूद अधिकारियों ने पत्नी-पति को कट्टर ‘शिव भक्त’ बताकर उन्हें हिंदू प्रमाणित कर दिया है। कभी इन अधिकारियों ने ही सुरेश कुमार को ‘बिशप’ कहकर प्रशस्ति पत्र दिया था।
हेनी क्रिस्टियाना को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित एक पद, गुंटूर जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। बिशप सुरेश कुमार ने कई बार हिंदू धर्म को ‘अंधेरे, शैतान’ की पूजा करने वाला पंथ बताया है। उन्होंने अमेरिका के दौरे में ईसाई सभाओं में अपने भाषणों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी अपशब्द कहे थे। उनके हार्वेस्ट इंडिया एनजीओ को विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 के तहत मिली अनुमति पर हाल ही में रोक लगा दी गई थी।
हिंदू मंदिर ट्रस्ट बोर्ड में क्रिप्टो ईसाई
अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र रखने वाले क्रिप्टो ईसाइयों ने राजनीतिक एवं सरकारी समर्थन के जरिए अधिकतम नियुक्तियां हासिल की हैं। जनवरी, 2020 में कई मंदिरों के न्यासों पर इस आधार पर रोक लगा दी गई कि उन्होंने बोर्ड की सदस्यता शर्तों के तहत 50 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को नहीं दिया था। इन न्यासों में बाद में एससी/ एसटी / महिला कोटे के तहत कई क्रिप्टो ईसाइयों को नियुक्त कर दिया गया। ये क्रिप्टो ईसाई हिंदू धर्म का पालन नहीं करते, मंदिर नहीं जाते जिसके ट्रस्ट के वे सदस्य हैं और शायद ही कभी मंदिर समारोहों में भाग लेते हैं। उनका प्राथमिक हित मंदिर की आय और संपत्ति से प्राप्त होने वाले लाभों का दोहन करना है।
एनसीपीसीआर /राष्ट्रीय एसटी आयोग के निर्देशों की अनदेखी
हैदराबाद के कानूनी अधिकार संरक्षण फोरम जैसे कई संगठनों ने आंध्र में अवैध और अनैतिक मिशनरी गतिविधियों के संबंध में राष्ट्रीय एसटी आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पास कई शिकायतें दर्ज की हैं। इनमें सार्वजनिक भूमि पर चर्च निर्माण, नाबालिगों और चाइल्ड केयर होम के कैदियों को अनिवार्य ईसाई उपदेश शामिल हैं। विस्तृत जांच, कार्रवाई आदि के लिए राज्य सरकार को भेजी गई इन शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया है।
आंध्र प्रदेश के लोकसभा सांसद रघुराम कृष्ण राजू द्वारा राज्य प्रायोजित ईसाई प्रचार गतिविधि पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रधानमंत्री को दी गई थी। आंध्र प्रदेश के तेजी से ईसाईकरण और उसे राज्य सरकार के मौन समर्थन का हिंदू समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। परिवार टूट गए हैं, माता-पिता और बच्चे अलग-अलग मतों में हैं। ईसाई बनने वाले बच्चों ने माता-पिता का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया जो अभी भी अपने पैतृक धर्म का पालन कर रहे थे। गांवों में अनधिकृत लाउड स्पीकर और माइक के साथ लगातार सड़क पर ईसाई प्रचार के लिए निकले लोगों और दूसरे पक्षों में अक्सर झगड़े होते हैं और कुछ मामलों में दोनों ओर से पुलिस में मामला दर्ज भी होता है। स्थिति गंभीर हो चुकी है। जरूरत है कि उन मामलों की जल्दी जांच हो जिसमें ईसाई बन चुके लोग हिंदू समुदाय प्रमाणपत्र का आवरण ओढ़कर स्वार्थ सिद्धि कर रहे हैं या अनधिकृत तरीके से चर्च के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर सार्वजनिक भूमि या क्रॉस लगाने के लिए पहाड़ियों की जमीन हड़प रहे हैं।
(लेखक हैदराबाद स्थित दक्षिण भारतीय अध्ययन केंद्र में एसोसिएट फैलो हैं।)
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