आईटी शक्ति के लिए जरूरी है कि वह आईटी के आधारभूत ढांचे, सॉफ्टवेयर विकास, हार्डवेयर विनिर्माण, क्लाउड कंप्यूटिंग, आउटसोंर्सिग, नवाचार तथा शोध, आईटी स्टार्टअप्स, कौशल की उपलब्धता, घरेलू स्तर पर डिजिटल तकनीकों के प्रसार आदि क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका रखती हो। इन क्षेत्रों में बढ़त बनाए रखने के लिए नीतिगत समर्थन सहित जरूरी पारिस्थितिकी मौजूद हों और विकास का स्वस्थ सिलसिला चला आ रहा हो। आज का भारत ऐसा ही है।
भारत सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व के अग्रणी देशों में बना हुआ है। हालांकि आईटी से जुड़े हर क्षेत्र में हम अनिवार्यत: सबसे आगे हों, ऐसा नहीं है और न ही ऐसा हो सकता है, किंतु अधिकांश क्षेत्रों में हमारी मजबूत उपस्थिति है। एक दमदार आईटी शक्ति के लिए जरूरी है कि वह आईटी के आधारभूत ढांचे, सॉफ्टवेयर विकास, हार्डवेयर विनिर्माण, क्लाउड कंप्यूटिंग, आउटसोंर्सिग, नवाचार तथा शोध, आईटी स्टार्टअप्स, कौशल की उपलब्धता, घरेलू स्तर पर डिजिटल तकनीकों के प्रसार आदि क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका रखती हो। इन क्षेत्रों में बढ़त बनाए रखने के लिए नीतिगत समर्थन सहित जरूरी पारिस्थितिकी मौजूद हों और विकास का स्वस्थ सिलसिला चला आ रहा हो। आज का भारत ऐसा ही है।
पिछले 75 साल में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हासिल की गई प्रगति को बरकरार रखने और आगे बढ़ाने के लिए जरूरी अधिकांश साधन देश में मौजूद हैं। जिन क्षेत्रों में कसर बाकी है, उनमें भी हालात को बदलने की इच्छा अवश्य दिखती है। इसे हम सरकारी सेवाओं के आईटी आधारित प्रसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर हमारे बढ़ते फोकस, सेमीकंडक्टरों के क्षेत्र में हुई नई पहलों, स्मार्टफोन विनिर्माण में बदलती परिस्थितियों, आईटी स्टार्टअप्स की स्वस्थ संख्या और तकनीकी शिक्षा को भारतीय भाषाओं तक पहुंचाने की मौजूदा जद्दोजहद के रूप में देख और महसूस कर सकते हैं।
कभी भारत को आईटी आउटसोर्सिंग की ही ताकत माना जाता था और आलोचकों ने हमारी इस मजबूती को हमारी सीमा के रूप में प्रचारित किया। भारत की आईटी दक्षता बाहरी कंपनियों के आर्डर पूरे करने और स्टाफिंग जैसे कामों तक सीमित है, यह तर्क दशकों तक दिया गया। लेकिन आज इसे इस रूप में कहा जाता है कि भारत उसी तरह आईटी सॉफ़्टवेयर और सेवाओं की ताकत है जैसे चीन हार्डवेयर विनिर्माण की। आईटी में हमारा विकास एक हकीकत है और वह बहुतरफा है- क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) भी और लंबवत (वर्टिकल) भी।
क्षैतिज से मतलब यह कि हमारा दखल विविध क्षेत्रों में बढ़ा है। लंबवत यानी जिन क्षेत्रों में हम सक्रिय हैं, उनमें हमारी गहनता बढ़ी है। इन दोनों के अलावा महत्वपूर्ण यह है कि हमारे आईटी तंत्र से उपभोक्ता के रूप में जुड़े लोगों की संख्या भी बेहद बढ़ चुकी है जो स्मार्टफोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया, मोबाइल एप्स आदि के विकास में र्ईंधन का काम कर रही है। न सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी कंपनियों के लिए भी भारत का बढ़ता आईटी संख्याबल कितना कीमती है, इसकी झलक यूट्यूब, व्हाट्सएप्प, गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि के प्रयोक्ताओं की तुलनात्मक संख्या से स्पष्ट होती है जहां भारत शीर्ष तीन-चार उपभोक्ताओं में से एक है। कोई भी देशी-विदेशी कंपनी इस संख्याबल को खोने की कल्पना नहीं कर सकती।
देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था एक हजार अरब डॉलर का स्तर छू लेगी, ऐसा माना जा रहा है। हमारा आत्मविश्वास इस वजह से भी आता है कि आईटी में घरेलू मांग बढ़ रही है जो विदेशी मांग पर हमारी निर्भरता को सीमित कर देगी। तीन साल पहले टीसीएस टाटा ने भारतीय रेलवे से भारत के सबसे बड़े नियोक्ता का खिताब छीन लिया था। आज देश में 50 लाख से ज्यादा आईटी पेशेवर मौजूद हैं जिनमें से
पांच लाख नौकरियां इसी
साल जुड़ी हैं।
आईटी में निर्बाध तरक्की हो रही है। सन् 2001 में भारत का सॉफ्टवेयर निर्यात 1 अरब डॉलर पर था जो इस साल 122 अरब डॉलर पर जा पहुंचा है। विकास की यह रेखा 30 डिग्री के कोण से ऊपर की ओर बढ़ती चली आई है और हमारी इस यात्रा में चुनौतियां तो अवश्य आई लेकिन नतीजे सदा सकारात्मक ही रहे। कोविड जैसे संकट के दौर में भी आईटी ने भारत का झंडा बुलंद रखा। इस 122 अरब डॉलर की सालाना रकम में अगर विदेशों में कार्यरत भारतीय आईटी विशेषज्ञों और कर्मचारियों द्वारा प्रेषित विदेशी मुद्रा जोड़ दी जाए तो आंकड़ा 200 डॉलर सालाना से भी आगे चला जाता है।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के लगभग 150 देशों का पूरा का पूरा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) इतना या इससे कम है। हमारी जीडीपी में आईटी का योगदान सन् 2013 से आज तक आठ प्रतिशत या उससे ज्यादा रहा है। जिस तरह से हम नए क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं और जिस तरह भारत की आबादी में युवाओं का बहुमत है, आईटी क्षेत्र में हमारी तरक्की का सिलसिला आगामी कुछ दशकों तक जारी रहना चाहिए।
सन् 2025 तक देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था एक हजार अरब डॉलर का स्तर छू लेगी, ऐसा माना जा रहा है। हमारा आत्मविश्वास इस वजह से भी आता है कि आईटी में घरेलू मांग बढ़ रही है जो विदेशी मांग पर हमारी निर्भरता को सीमित कर देगी। तीन साल पहले टीसीएस टाटा ने भारतीय रेलवे से भारत के सबसे बड़े नियोक्ता का खिताब छीन लिया था। आज देश में 50 लाख से ज्यादा आईटी पेशेवर मौजूद हैं जिनमें से पांच लाख नौकरियां इसी साल जुड़ी हैं।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-स्थानीय भाषाएंऔर सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)
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