‘हमें नवाचार करते हुए बच्चों के साथ गतिविधि आधारित शिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। बच्चा कोई भी हो, उसे आगे बढ़ने और शिक्षा पाने का पूर्ण अधिकार है और शिक्षक होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि उनके अंदर छिपी योग्यता को समाज के सामने लाएं।’
बीकानेर के राजकीय उच्च माध्यमिक मूक बधिर विद्यालय की अध्यापिका सुनीता गुलाटी की सृजनात्मक क्षमता और रचनात्मक दृष्टिकोण ने मूक-बधिर बच्चों को भी नए मुकाम पर ला दिया है। सुनीता ने गूंगे व बहरे बच्चों को इतने मनोयोग से तैयार किया कि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान प्रतियोगिता में तीन पुरस्कार जीते। बड़ी बात यह है कि ये पुरस्कार सामान्य छात्रों को प्रतिस्पर्धा में पछाड़ते हुए जीते गए। विद्यालय के चार छात्र इंस्पायर अवार्ड जीत चुके हैं। विद्यालय की एक छात्रा ने ओलंपियाड में जगह बनाई और रजत पदक प्राप्त कर देश को गौरवान्वित किया है।
इन बच्चों को गढ़ने वाली सुनीता गुलाटी बीकानेर की रहने वाली हैं। वे अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल में एमए के साथ ही रसायन विज्ञान में एमएससी हैं। विशेष और सामान्य शिक्षा में बीएड हैं। सुनीता ने 26 जुलाई, 2005 में बतौर शिक्षका के रूप में नौकरी प्रारंभ की। सुनीता बताती हैं- ‘03 नवम्बर, 2017 मेरे जीवन का सबसे अविस्मरणीय दिन था। इसी दिन मुझे राजकीय उच्च माध्यमिक मूक-बधिर विद्यालय बीकानेर में शामिल होने का अवसर मिला। मैंने सामान्य अध्यापिका के रूप में स्कूल ज्वाइन किया। फिर बच्चों के साथ रहते हुए स्पेशल टीचर के रूप में ट्रेनिंग ली और अब रिहेब्लिटेशन काउंसिल ऑफ इंडिया में रजिस्ट्रेशन करवाया है।’
सुनीता ने विशेष योग्यजन छात्रों के लिए कई अन्य प्रयोग किए हैं। इनमें मूक-बधिर बच्चों के लिए नवाचार युक्त ऑनलाइन वीडियो, अतिरिक्त शिक्षण मॉड्यूल, दीक्षा पोर्टल पर ई-कंटेंट एवं अंधे बच्चों के लिए ऑडियो पुस्तक का निर्माण शामिल है।
विशेष योग्यजन बच्चों के शिक्षण में शुरुआत में क्या कठिनाइयां आई थीं। इस पर सुनीता कहती हैं ‘सबसे पहली समस्या बच्चों के साथ बातचीत करने में हुई। लेकिन हर्ष की बात यह रही कि बच्चे चार-पांच दिन में ही अपनी सांकेतिक भाषा के जरिए अपनी बात मुझ तक पहुंचाने में समर्थ रहे। धीरे-धीरे मुझे लगा कि मैं इन बच्चों के साथ विज्ञान के नवाचार कर सकती हूं।
बच्चों में शारीरिक अक्षमता के बावजूद एक विशेष योग्यता है। एक अध्यापिका होने के नाते मैंने इस योग्यता को सामने लाकर दिखाया है। कड़ी मेहनत के बाद छात्र जब सफल होते है तो मुझे बहुत गर्व का अनुभव होता है। वैसा ही अनुभव, जो एक मां को अपने बच्चे के सफल होने पर होता है।’
सुनीता गुलाटी को राज्य स्तर पर कई पुरस्कार मिले हैं। हाल ही में शिक्षा के राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए उनका चयन हुआ है। इस पायदान पर पहुंचने पर सुनीता कहती हैं- ‘मेरा पुरस्कार सिर्फ और सिर्फ मेरे बच्चों के आत्मविश्वास, उनके सहयोग और कार्य का ही नतीजा है। मुझे बच्चों का सहयोग नहीं मिलता तो मैं आज इस मुकाम पर नहीं होती।’
गुलाटी कहती हैं, ‘हमें नवाचार करते हुए बच्चों के साथ गतिविधि आधारित शिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। बच्चा कोई भी हो, उसे आगे बढ़ने और शिक्षा पाने का पूर्ण अधिकार है और शिक्षक होने के नाते यह हमारा दायित्व है कि उनके अंदर छिपी योग्यता को समाज के सामने लाएं।’
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