विभाजन : गांव को घेरकर करते थे हमला

बंटवारे की पीड़ा को कभी भूल ही नहीं सकता। मुुझे आज भी अपनी माटी की सुंगध आती है। उसे चूमने का मन करता है। वह घर, गलियारा, खेत ऐसा लगता है कि बुलाते हैं

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पाञ्चजन्य वेब डेस्क

सरदार हरबख्श सिंह बक्शी

पाकिस्तान

 

बंटवारे की पीड़ा को कभी भूल ही नहीं सकता। मुुझे आज भी अपनी माटी की सुंगध आती है। उसे चूमने का मन करता है। वह घर, गलियारा, खेत ऐसा लगता है कि बुलाते हैं। लेकिन…

विभाजन के समय मैं नौ साल था। मेरे पिताजी सेना में थे। मैं वहीं के बब्बर खालसा स्कूल में पढ़ता था। तब माहौल खराब हो चुुका था। जगह-जगह से मार-काट की खबरें आती थीं।

परिवार के लोग जब बाहर से आते थे तो घर में इसी सबकी चर्चा होती थी कि फलां जगह मुसलमानों ने हमला किया, उस गांव में आग लगाई, वहां से लोग पलानन करके हिन्दुस्थान जा रहे हैं, आदि, आदि।

इसी दरम्यान एक दिन मुसलमानों ने हमारे गांव पर भी धावा बोल दिया। गांव के लोग भी पहले से तैयार थे। मुसलमानों ने माहौल भांपा और बिना कुछ किए लौट गए। लेकिन लोगों में डर भर चुका था। पलायन शुरू हो गया, लोग घरों को छोड़कर चले गए।

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