झारखंड की उप राजधानी दुमका में शाहरुख हुसैन के द्वारा 23 अगस्त को पेट्रोल डालकर जलाई गई अंकिता की मौत 28 अगस्त की सुबह हो गई थी। इसकी खबर मिलते ही पूरे झारखंड में जगह-जगह हेमंत सोरेन का पुतला फूंका जा रहा है, हेमंत सोरेन पर तुष्टीकरण के आरोप लग रहे हैं।
आपको बता दें कि 17 वर्ष की स्व अंकिता का 29 अगस्त को कड़ी सुरक्षा के बीच अंतिम संस्कार कर दिया गया है। इस घटना की जानकारी मिलते ही पूरे दुमका में धारा 144 लगा दी गई है। गुस्साए लोग सड़कों पर उतर गए हैं और जिला प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों का मानना है कि स्थानीय डीएसपी नूर मुस्तफा आरोपी शाहरुख को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इसी को लेकर लोगों का विरोध और भी तेज होता दिखाई दे रहा है।
विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि अंकिता हत्याकांड में जिस डीएसपी नूर मुस्तफा पर अभियुक्त शाहरुख को बचाने का आरोप लग रहा है, वह जनजातीय समाज का घोर विरोधी है। उन्होंने नूर मुस्तफा पर कोयला, बालू, पत्थर चोरी के सरगनाओं का संरक्षक व हिस्सेदार भी बताया है। अंत में उन्होंने कहा है कि इसका खुलासा भी किया है।
अंकिता हत्या कांड में अभियुक्त शाहरुख़ को बचाने के प्रयास में निशाने पर आये डीएसपी नूर मुस्तफ़ा के आदिवासी विरोधी एवं कम्यूनल होने का यह एक प्रमाण है।
आदिवासियों के एक शोषक ज़ुल्फ़िकार पर एसटी एक्ट का मामला दर्ज हुआ।वह जेल गया।
मुस्तफ़ा ने 90 दिनों में चार्जशीट नहीं की।1/2 pic.twitter.com/CCj7wlhwvC
— Babulal Marandi (@yourBabulal) August 29, 2022
इस जन दबाव को देखते हुए डीएसपी नूर मुस्तफा को फिलहाल पद से हटा दिया गया है।
अंकिता की मौत के बाद लोगों का विरोध प्रदर्शन पूरे झारखंड में देखने को मिला है। इस बीच अंकिता का एक वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें वह बता रही है कि शाहरुख हुसैन के साथ एक और छोटू नाम का लड़का साथ में था। प्रशासन की ओर से दावा किया जा रहा है कि शाहरुख हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन पीड़िता के बयान के अनुसार छोटू की गिरफ्तारी अब तक नहीं हो पाई है। यही वजह है कि लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लोगों का कहना है कि आरोपी शाहरुख हुसैन को गिरफ्तार तो कर लिया गया है लेकिन उसे छुड़ाने के लिए जल्दी से जल्दी किसी बड़े वकील को बुला लिया जाएगा या फिर शाहरुख हुसैन को मानसिक रोगी बताकर उसे बचाने का प्रयास किया जाएगा।
आप खुद सुनिए झारखंड की बेटी अंकिता की आपबीती, रूह कांप जाएगी.
लेकिन हेमंत सरकार की चुप्पी टूटने का नाम ही नहीं ले रही.
आखिर वोटबैंक के लिए कितना नीचे गिरेगी ये सरकार.#JusticeForAnkita pic.twitter.com/5A25tBgwSz
— Deepak Prakash (@dprakashbjp) August 28, 2022
बता दें कि शाहरुख हुसैन का एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उसे पुलिस गिरफ्तार करके जेल ले जा रही है। उस वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि शाहरुख को अंकिता की हत्या का कोई दुख नहीं है, उल्टे वहां पर कई लोगों ने उसे बेशर्म की तरह मुस्कुराते हुए देखा। इसी वीडियो के वायरल होने के बाद लोगों में और भी आक्रोश देखा जा रहा है।
झारखंड यह हंसी नहीं भूलेगा।
जिहादियों को बढ़ावा और हिंदु समाज प्रताडित कर रही हेमंत सरकार को करारा जवाब मिलेगा।#JusticeForAnkitaSingh pic.twitter.com/SkkD97MAGO
— Raghubar Das (@dasraghubar) August 29, 2022
इस पूरे प्रकरण में सिर्फ डीएसपी की भूमिका ही संदेह के घेरे में नहीं है, बल्कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा अंकिता की मृत्यु पर संवेदना तक प्रकट ना करने से लोगों में काफी गुस्सा है।
अंकिता की दादी विमला देवी ने अपना दुख प्रकट करते हुए कहा कि अंकिता की मां का निधन डेढ़ साल पहले हो गया था। कुछ समय पहले उसकी बहन की शादी हो चुकी है। अब घर में सिर्फ वही थी जो पढ़-लिख कर शिक्षक बनना चाहती थी। लेकिन अब वह भी इन जिहादियों का शिकार बन गई। उन्होंने सरकार से शाहरुख हुसैन और उसके साथियों के लिए कठोर दंड की मांग की है।
इस पूरी घटना पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने अपना रटा-रटाया बयान देते हुए कहा कि इस मामले पर सरकार गंभीर है जो दोषी है उसे बख्शा नहीं जाएगा।
अब यहां पर बन्ना गुप्ता के द्वारा दोषियों को कड़ी सजा दिलाने की बात कही जा रही है लेकिन यह घटना 23 अगस्त की थी जब अंकिता को जिंदा जलाने का प्रयास किया गया था। वहां से अंकिता को अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए रांची के अस्पताल रिम्स में लाया गया था। लेकिन इन 5 दिनों में झारखंड के मुख्यमंत्री या कोई प्रतिनिधि अंकिता से मिलने तक नहीं आया। इसीलिए यह भी कहा जा रहा है कि अंकिता का अगर बेहतर इलाज होता तो शायद आज अंकिता जीवित रहती।
बाबूलाल मरांडी ने भी सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ समय पहले रांची में हुई हिंसा और उपद्रव में घायल नदीम को बेहतर इलाज के लिए सरकारी खर्च पर दिल्ली तो भेजा गया था, लेकिन दूसरी ओर अंकिता को रांची भेजने तक की उचित व्यवस्था सरकार नहीं करा पाई।
बाबूलाल की इन बातों से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि झारखंड सरकार की नजरों में कौन महत्वपूर्ण है और कौन नहीं, इसलिए कहा जा रहा है कि बन्ना गुप्ता का अंकिता के लिए संवेदना भरे बयान सिर्फ राजनीतिक बयान है, और कुछ नहीं।
इन सब में सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि आखिर इन जिहादियों को इस तरह के अपराध करने की हिम्मत कहां से मिल रही है? कहीं यह तुष्टीकरण की नीति ही तो नहीं, जहां राज्य के मुखिया और राज्य की न्याय प्रणाली एक बेटी को न्याय दिलाने में भी सक्षम नहीं हो पा रही है।
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