लाभ के पद के मामले में ही शिबू सोरेन को राज्यसभा से त्यागपत्र देना पड़ा था। अब उनके पुत्र हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ रहा है। सोरेन परिवार पर घोटाले के अनेक आरोप हैं और कई में सजा भी मिल चुकी है।
लाभ के पद मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द होने के कगार पर है। अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कभी भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। हेमंत सोरेन पर आरोप है कि खुद खान मंत्री रहते हुए अपने नाम पर खनन पट्टा आवंटित करवा लिया था। इसे लेकर झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस का आदेश आना बाकी है। राजभवन द्वारा हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने को लेकर राज्यपाल का आदेश भारत निर्वाचन आयोग को भेजा जाएगा, जिसकी सूचना मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष को देंगे। इसके बाद ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि हेमंत सोरेन को खुद ही इस्तीफा देना पड़ जाएगा।
हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होने और मुख्यमंत्री पद छोड़ने की खबरों के बाद से ही हेमंत सोरेन और उनकी पूरी पार्टी अपने अध्यक्ष के बचाव में खड़ी दिखाई दे रही है। खुद हेमंत सोरेन अब जनजातीय कार्ड निकाल चुके हैं। एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, “मैं आदिवासी का बेटा हूं, इनकी चाल से हमारा न कभी रास्ता रुका है, न हम लोग इन लोगों से डरे हैं. हम आदिवासियों के डीएनए में डर और भय के लिए कोई जगह नहीं है, जो संघर्ष और राज्य के प्रति समर्पण का भाव आदरणीय गुरु जी (शिबू सोरेन) में है, वही समर्पण का भाव हम लोगों के बीच में भी है।”
इस पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, ‘ हम भी आदिवासी हैं, लेकिन लुटेरे नहीं हैं, आदिवासी के डीएनए में देशभक्ति है, लुटेरागिरी नहीं। झारखंडी जनजाति होने का जाति प्रमाणपत्र डकैती का लाइसेंस नहीं है।”
यह सच है कि झारखंड का जनजातीय समाज इस देश के लिए सदैव समर्पित रहा है, वहीँ अगर सोरेन परिवार की बात करें तो इन पर झारखंड को लूटने और जनजातीय समाज का हक मारने का कई बार आरोप लगता रहा है।
बता दें कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी के साथ साथ उनके भाई बसंत सोरेन की विधायकी भी खनन लीज मामले को लेकर खतरे में बताया जा रहा है। उनके विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध खनन के आरोप में ईडी की गिरफ्त में हैं।
आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा कि सोरेन परिवार में सदस्यता रद्द होने की यह घटना पहली बार नहीं होने वाली है। इससे पहले उनके पिता शिबू सोरेन की भी सदस्यता ‘लाभ के पद’ मामले में जा चुकी है। ‘लाभ के पद’ को लेकर पहला मामला वर्ष 2001 में आया था। उस वक्त झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन की राज्यसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी। उन पर आरोप था कि राज्यसभा के नामांकन के दौरान उन्होंने अपने किसी लाभ के पद पर होने की बात छुपाई थी, जबकि शिबू सोरेन उस समय झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे। इसे लेकर काफी हंगामा हुआ और जब मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा तो उसने इसे रद्द करने का आदेश दिया था।
सोरेन परिवार में घोटाले के भी कई आरोप लग चुके हैं। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में शिबू सोरेन पर कोयला घोटाला को लेकर आरोप लगा था। इसके बाद वर्ष 2004 में चिरुडीह कांड में 11 लोगों की हत्या हुई थी, इसी सिलसिले में गिरफ्तारी का वारंट जारी होने के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से 24 जुलाई, 2004 को इस्तीफा देना पड़ा था। मनमोहन सरकार के दौरान शिबू सोरेन के पास कोयला मंत्रालय था. उस वक्त तत्कालीन कोयला सचिव पीसी परख ने कोयला मंत्रालय के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि कोयला मंत्रालय को माफिया चला रहे हैं। इसके साथ ही केंद्र सरकार के नाम एक पत्र में उन्होंने यह भी लिखा था कि संविधान की शपथ लेने वाले सांसद अधिकारियों को अपनी जरूरत के लिए ब्लैकमेल करने का काम कर रहे हैं।
बाबूलाल मरांडी झामुमो और शिबू सोरेन को लेकर कहते हैं कि जो परिवार अपने आपको जनजातीय समाज का हितैषी कहते नहीं थकता है वह अलग झारखंड के आंदोलन में खुद कांग्रेस से पैसा लेता रहा और आंदोलन को बेचने का काम करता रहा है।
इन बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सोरेन परिवार के लिए न तो घोटाला करना नई बात है और न ही किसी की सदस्यता का रद्द होना। परिणाम यह है कि आज पूरे झारखंड में बालू माफिया और पत्थर माफिया खुलेआम अपना अवैध कारोबार कर रहे हैं, लेकिन उन पर नकेल कसने वाला कोई नहीं दिखाई दे रहा है। प्रवर्तन निदेशालय और कई सरकारी संस्थाएं इन पर नकेल कसने का काम करती हैं और करोड़ों की बेनामी संपत्ति बरामद होने के बाद भी यही लोग इन संस्थाओं की कार्यशैली पर सवाल खड़े करके अपने आपको निर्दोष साबित करने में लग जाते हैं। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?
इधर हेमंत सोरेन की सदस्यता और मुख्यमंत्री पद जाने की खबर के बाद ही सियासी तूफान मचा हुआ है। अपनी सरकार को बचाने के लिए हेमंत सोरेन अपने सभी विधायकों को एक बस में बैठा कर खूंटी के लतरातू रिसोर्ट के लिए निकल गए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वहां से हेमंत सोरेन अपने सभी विधायकों को छत्तीसगढ़ लेकर चले जाएंगे। इन सब में एक बात और पता चली है कि हेमंत सोरेन के साथ मात्र 33 विधायक ही उनकी बस में सवार हैं। इसके साथ ही कई विधायकों से संपर्क भी नहीं हो पाया। अगर यही स्थिति आगे भी बरकरार रह गई तो यह कहा जा सकता है कि सरकार पर भी संकट है। यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि झारखंड में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 42 सीटों की आवश्यकता पड़ती है लेकिन हेमंत सोरेन के पास अभी मात्र 33 विधायक ही मौजूद हैं।
अब देखना यह है कि हेमंत सोरेन की विधायकी के साथ अपनी सरकार भी बचा पाते हैं या नहीं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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