भारतीय मूल के सलमान रुश्दी पर गत 12 अगस्त को न्यूयार्क, अमेरिका में जिहादी हमला हुआ। रुश्दी पर हुआ यह हमला न सिर्फ विश्व के साहित्य जगत को अपितु पूरे सभ्य समाज को हैरान और आक्रोशित कर गया है।
‘द मिडनाइट चिल्ड्रेन’, ‘द सैटेनिक वर्सेज’ आदि अनेक चर्चित उपन्यासों के लेखक, बुकर सम्मान से सम्मानित भारतीय मूल के सलमान रुश्दी पर गत 12 अगस्त को न्यूयार्क, अमेरिका में जिहादी हमला हुआ। रुश्दी पर हुआ यह हमला न सिर्फ विश्व के साहित्य जगत को अपितु पूरे सभ्य समाज को हैरान और आक्रोशित कर गया है। हमले को अंजाम देने वाले ईरानी मूल के मजहबी उन्मादी 24 साल के हादी मतार के पकड़े जाते ही गर्दन पर चाकुओं से रुश्दी की हत्या की इस कोशिश को ईरान से जोड़ा जाने लगा।
यह स्वाभाविक भी था। कारण, रुश्दी का उपन्यास द सैटेनिक वर्सेज वर्ष 1988 में प्रकाशित हुआ था। 1989 में ईरान के सर्वोच्च मजहबी नेता अयातुल्लाह अली खुमैनी ने रुश्दी के विरुद्ध मौत का फतवा जारी किया था। ‘द सैटेनिक वर्सेज’ को कट्टर इस्लामवादियों ने ईशनिंदा मानकर उनकी मौत के पैगाम भेजने शुरू कर दिए थे।
बेशक, उनका यह उपन्यास कई इस्लामिक देशों में प्रतिबंधित है। वैसे, कोई सोच नहीं सकता था कि करीब 33 साल से कट्टरपंथियों के निशाने पर बने रुश्दी पर तब जानलेवा हमला होगा जब उनके आसपास सुरक्षा का जबरदस्त घेरा बना हुआ होगा। कट्टरपंथी मुस्लिमों को इस उपन्यास द सैटेनिक वर्सेज से इतनी चिढ़ है कि इस उपन्यास के जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी तक को जिंदा नहीं छोड़ा गया। मजहबी कट्टरपंथियों ने किताब के प्रकाशक को भी निशाना बनाया था।
शायद यही वजह है कि बांग्लादेशी मूल की लेखिका और अपने उपन्यास ‘लज्जा’ से दुनिया में मशहूर हुर्इं तस्लीमा नसरीन ने कहा कि रुश्दी पर हुआ जानलेवा हमला उन्हें हैरान कर गया है। दरअसल ‘लज्जा’ की वजह से तस्लीमा भी मजहबी उन्मादियों के निशाने पर हैं। उन्हें भी अनेक बार धमकियां मिल चुकी हैं। उनका कहना है कि जब रुश्दी जैसे अतिसुरक्षा में रहने वाले व्यक्ति पर हमला हो सकता है तो बेशक, उन पर भी किसी दिन कोई वार कर सकता है। तसलीमा नसरीन ने 17 अगस्त को अपने ट्वीट में दावा किया कि एक पाकिस्तानी कट्टरपंथी अल्लामा खादिम हुसैन रिजवी उन्हें मारना चाहता था।
टीवी चैनलों की बहसों में जिहादी सोच को आड़े हाथों ले रहा है! क्यों? क्योंकि रुश्दी के लिए बोलना मतलब आकाओं को नाराज करना, मतलब तमाम अंतरराष्ट्रीय साहित्य पुरस्कारों के मिलने की संभावनाओं से हाथ धोना, मतलब सेकुलर लेखों के लिए मिलने वाला पारितोषिक बंद हो जाना!
रुश्दी पर हमले के बाद, जहां राजनीतिक-सामाजिक क्षेत्र की अनेक विभूतियों ने अपनी प्रतिक्रियाओं में जिहादी मानसिकता पर करारी चोट की, वहीं साहित्य जगत के अनेक प्रसिद्ध नामों ने भी सलमान रुश्दी जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के लेखक पर इस तरह के बर्बर हमले की जमकर निंदा की। लेकिन इसमें भी ‘हैरी पॉटर’ शृंखला की विश्व प्रसिद्ध लेखिका जेके रोलिंग जिहादियों के निशाने पर आ गई। रोलिंग ने अपने ट्वीट में रुश्दी पर हुए हमले की निंदा ही की थी, लेकिन वह भी उन्मादियों को रास नहीं आई।
संभवत: यही वजह है कि मजहब और उसके उन्मादी तत्वों के प्रति अपनी ‘अभिव्यक्ति’ में नरम ही रहे ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के तथाकथित पैरोकारों के कलम की स्याही ही सूख गई, रुश्दी पर हमले पर कैसी भी टिप्पणी करते हुए! किसी एक के मुंह से भी बोल नहीं फूटे। जाने वे कविता कृष्णन नाम की सेकुलर जेएनयू की कथित वामपंथी नेता कहां गई जिन्होंने दादरी में गोमांस के संदेह में मारपीट का शिकार हुए अखलाक पर बुक्के फाड़ते हुए एक लंबा लेख लिखा था? कहां गए तब इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखने वाले बीपी मेहता जिन्होंने अपने लेख में अखलाक के मरने पर एक सिरे राष्ट्रीय सोच रखने वालों पर तीखी टिप्पणियां की थीं?
लुटियन दिल्ली में सन्नाटा सा पसर गया, रुश्दी पर हमले को लेकर कोई सेकुलर लेखक, पत्रकार न कुछ बोल रहा है, न लिख रहा है, न छाप रहा है, न टीवी चैनलों की बहसों में जिहादी सोच को आड़े हाथों ले रहा है! क्यों? क्योंकि रुश्दी के लिए बोलना मतलब आकाओं को नाराज करना, मतलब तमाम अंतरराष्ट्रीय साहित्य पुरस्कारों के मिलने की संभावनाओं से हाथ धोना, मतलब सेकुलर लेखों के लिए मिलने वाला पारितोषिक बंद हो जाना!
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, रुश्दी की हालत गंभीर पर स्थिर है, एक आंख जाने का खतरा है और लीवर पर भी खतरा मंडरा रहा है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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