सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2007 में गोरखपुर में भड़काऊ भाषण देने के मामले में मुकदमे की इजाज़त न देने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है। 24 अगस्त को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि सबूत नाकाफी हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले में दखल देने से मना कर दिया था। हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी। 14 मई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता रशीद खान को आदित्यनाथ समेत सभी अभियुक्तों को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील फुजैल अय्युबी से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि आपने बाकी अभियुक्तों को पक्षकार क्यों नहीं बनाया है तो उन्होंने कहा कि चूंकि हाई कोर्ट में रिवीजन पिटीशन अभियुक्त नंबर दो महेश खेमका ने दाखिल की थी, इसलिए हमने उन्हें पक्षकार नहीं बनाया लेकिन अभियुक्त सभी हैं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत देते हुए गोरखपुर दंगों में उनकी भूमिका की जांच की मांग को खारिज कर दिया था। याचिका में साल 2007 में हुए गोरखपुर दंगों में आदित्यनाथ की भूमिका की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से दोबारा जांच करवाने की मांग की गई थी। हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।
ज्ञातव्य है कि 2007 में आदित्यनाथ को शांतिभंग करने और हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि उन्होंने समर्थकों के साथ मिलकर दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प में एक युवक की मौत के बाद जुलूस निकाला था।
आरोप था कि 27 जनवरी, 2007 को गोरखपुर में आयोजित एक बैठक में हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुस्लिम विरोधी टिप्पणी की थी। योगी के भाषण के बाद गोरखपुर में 2007 में दंगा हुआ। इसमें कई लोगों की जानें गईं। 2008 में दर्ज एफआईआर की उत्तर प्रदेश सीआईडी ने कई साल तक जांच की। राज्य सीआईडी ने 2015 में राज्य सरकार से मामला चलाने की अनुमति मांगी।
मई 2017 में उत्तर प्रदेश के कानून विभाग और गृह विभाग ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। कानून विभाग ने वजह बताई थी कि मुकदमे के लायक पर्याप्त सबूत नहीं हैं। ट्रायल कोर्ट ने भी मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया था। उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी 22 फरवरी, 2018 में मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने 20 अगस्त, 2018 को उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि इस मामले में कुछ नहीं बचा था, क्योंकि फोरेंसिक रिपोर्ट में कहा गया था कि जिस सीडी पर आपत्तिजनक भाषण की रिकार्डिंग थी उससे छेड़छाड़ की गई थी और वो नकली थी। उन्होंने कहा था कि इस संबंध में क्लोजर रिपोर्ट भी थी जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। इस मामले में कानून विभाग की राय थी कि अगर सीडी से छेड़छाड़ की गई थी और फर्जीवाड़ा किया गया था तो किसी तरह की मंजूरी का सवाल ही नहीं उठता है और गृह विभाग ने इस पर सहमति जताई थी। इस मामले में आदित्यनाथ के अलावा गोरखपुर नगर के तत्कालीन विधायक डॉ. राधामोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी पर भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने का आरोप लगा था।
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