भूषणलाल पाराशर
शूजाबाद, मुल्तान, पाकिस्तान
देश विभाजन के समय मैं लगभग 10 साल का था। मेरा परिवार मुल्तान जिले की तहसील शूजाबाद में रहता था। मैंने कई ऐसी ह्दय-विदारक घटनाएं देखीं, जो आज भी मुझे डरा देती हैं।
शूजाबाद नगर के चारों ओर पक्की दीवारें थीं और आने-जाने के लिए चार दरवाजे। हिंदू परिवार नगर के अंदर रहते थे और मुस्लिम परिवार नगर से बाहर गांवों में। विभाजन से पूर्व बड़ों से ऐसा सुनने में आता था कि पाकिस्तान कभी नहीं बनेगा, विभाजन असंभव है तथा हम सभी यहीं रहेंगे।
यानी लोगों को भरोसा था कि हम यह देश, शहर, घर आदि छोड़कर कहीं जाने वाले नहीं हैं। लेकिन 1947 प्रारंभ होते ही मार-काट और हिंसा प्रारंभ हो गई। नगर के बाहर से मारने-काटने के समाचार आने लगे।
मरे हुए लोगों की लाशों के घरों में आते ही कोहराम मच जाता था। किसी की गर्दन कटी होती थी, किसी के हाथ-पैर कटे हुए होते थे। उन्हीं दिनों एक ऐसी घटना घटी, जिसने हिंदुओं को झकझोर कर रख दिया। शूजाबाद से एक बारात जलालाबाद गई थी। वहां विवाह संपन्न होने के बाद बारातियों की बस वापस शूजाबाद लौट रही थी।
रास्ते में मुसलमानों ने उस बस को रोककर सभी लोगों को उतार लिया। उनमें महिलाएं भी थीं। महिलाओं को तो वे लोग अपने साथ ले गए और पुरुषों को बहुत ही बेदर्दी के साथ मार दिया। इसके बाद एक शरारती सोच के साथ चालक को खाली बस लेकर शूजाबाद भेजा गया। संयोग से उस बस में एक व्यक्ति छिपा रह गया।
उन दोनों ने घटना की जानकारी शूजाबाद के लोगों को दी। कोई सुनने या सहायता करने वाला नहीं था। उन्हीं दिनों रेडियो से घोषणा हुई कि भारत का विभाजन होगा। इसके बाद तो वातावरण एकदम बदल गया।
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