भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-चीन सीमा विवाद की कलई क्या खोली, चीन का सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स आगबबूला हो गया है। उसके तेवर इस हद तक बिगड़े हैं कि अपने संपादकीय में तमाम तरह के तथ्यों को झुठलाते हुए चीन को ‘मासूम’ बता रहा है।
अभी 21 अगस्त को ब्राजील की राजधानी साओ पाउलो में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने एक कार्यक्रम में भाषण दिया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इस वक्त हम एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। भारत तथा चीन के बीच 1990 के दशक से कई समझौते हुए हैं। जयशंकर ने यह भी कहा कि चीन ने सदा उनको अनदेखा ही किया है। गलवान संघर्ष के संदर्भ में उन्होंने कहा कि अभी दो साल पहले ही, गलवान घाटी में क्या हुआ था, उसे आप सब जानते हैं। उस समस्या का हल नहीं निकला है।
भारतीय विदेश मंत्री के सीमा विवाद को लेकर दिया यह तथ्यात्मक वक्तव्य अक्खड़ चीन को रास नहीं आया और उसके सरकारी भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में अपने अंदर का विष उड़ेल दिया। सब जानते हैं यह समाचार पत्र चीन सरकार का मुखपत्र माना जाता है। ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय काॅलम में जयशंकर के वक्तव्य की आड़ में भारत पर निशाना साधने की जुर्रत की है। इसने तथ्यों को घुमाने और सच को छिपाने की असफल कोशिश की है।
चीनी भोंपू ने यह दावा किया कि द्विपक्षीय समझौते की अवहेलना चीन ने नहीं बल्कि भारत ने की है। भारत ने ही चीन की सीमा को लांघा है। ग्लोबल टाइम्स ने अपने झूठ को और बढ़ाते हुए यहां तक लिखा है कि यह भारत ही है जिसने चीन के क्षेत्र पर अतिक्रमण किया है। उल्लेखनीय है कि दुनिया इस सच को अच्छे से जानती है कि चीन ने भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा रखी है।
ग्लोबल टाइम्स यहीं नहीं रुका, उसने लिखा कि भारत के विदेश मंत्री की हाल की टिप्पणी दोनों देशों के बीच आपसी भरोसे को कम कर सकती है। इससे द्विपक्षीय संबंधों के आगे बढ़ने पर असर पड़ सकता है। चीनी विश्लेषकों को उद्धृत करते हुए अखबार लिखता है कि ‘17 जुलाई को चीन और भारत के मध्य कोर कमांडर स्तर की 16वें दौर की बैठक में स्थिरता तथा शांति बनाए रखने पर रजामंदी हुई थी। दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत थे कि उकसावे की कार्रवाई न हो। इस बातचीत को आगे जारी रखने की भी बात हुई थी। लेकिन यह भारत ही है जिसने 1990 के दशक में दोनों देशों के बीच हुए दो समझौतों का घोर उल्लंघन किया है’।
‘इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज बॉर्डरलैंड स्टडीज’ के रिसर्च फेलो झांग यांगपेन ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि ‘चीन और भारत ने 1993 और 1996 में सीमा से जुड़े मुद्दे पर दो समझौतों पर दस्तखत किए थे। 1993 में हुए सीमा समझौते के अंतर्गत दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति तथा स्थिरता बनाने पर सहमति हुई थी’।
झांग ने तथ्य को घुमाते हुए कहा कि एलएसी को भारत ने लांघा है। भारत ने गत 20 सालों में न सिर्फ डोकलाम में, बल्कि पैंगोंग त्सो झील और गलवान घाटी में भी चीन की जमीन पर अतिक्रमण किया है। उसने जोर देकर कहा कि भारत ने उस समझौते का भी गंभीर उल्लंघन किया है जिसमें कहा गया था कि दोनों पक्ष एलएसी को पार नहीं करेंगे। झांग ने आगे फिर झूठ बोला कि दोस्ती के संबंध बनाए रखने के लिए चीन ने एलएसी पर बड़ी तादाद में सैनिक तैनात नहीं किए हैं, लेकिन इसके उलट भारत पिछली सदी के आखिर से ही एलएसी पर अपनी सैन्य ताकत को तेजी से बढ़ाता जा रहा है।
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