ईरान में मुस्लिम औरतों के लिए मात्र अनिवार्य हिजाब तक ही मामला सीमित नहीं रह गया है, बल्कि अब मुस्लिम औरतों का वहां पर विज्ञापन आदि में आना भी प्रतिबंधित कर दिया है। ईरान में आइसक्रीम के एक विज्ञापन के आने से वहां के मौलाना भड़क गए हैं और अब देश के सांस्कृतिक मामलों के मंत्रालय ने यह घोषणा की कि महिलाएं अब से विज्ञापनों में दिखाई नहीं देंगी।
ईरान के नेताओं के अनुसार विज्ञापन बहुत ही भड़काऊ है, अश्लील है और महिलाओं की पवित्रता को नुकसान पहुंचाने वाला है। ईरान में अनिवार्य हिजाब को लेकर भी महिलाएं आन्दोलन कर रही हैं और अभी हाल ही में निर्वासित ईरानी पत्रकार एवं महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली लेखिका मसिह अलिनेजाद, जो अभी अमेरिका में रह रही है, के घर पर एके 47 राइफल लेकर हमला करने पहुंच गया था। उन्होंने वीडियो साझा करते हुए लिखा था कि उनकी हत्या करने की मंशा से एक आदमी भरी हुई राइफल लेकर उनके घर पर पहुंच गया था।
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हाल तक ईरान में उन महिलाओं का गिरफ्तार होना जारी है, जो अनिवार्य हिजाब को लेकर आंदोलन कर रही हैं और यह तक कहा जा रहा है कि कई लड़कियां जबरन माफी कुबूल कर रही हैं। ईरान में अनिवार्य हिजाब को लेकर महिलाएं सड़कों पर आती रहती हैं। लड़कियां हिरासत में ली जाती हैं, मसिह अलीनेजाद के अनुसार 12 जुलाई के बाद से अब तक कई महिलाओं को गिरफ्तार किया जा चुका है। परन्तु जिस विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, उसमें तो लड़की ने अर्थात मॉडल ने हिजाब पहना हुआ है और फिर भी इस विज्ञापन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। ऐसा क्यों? क्या धीरे-धीरे यह अफगानिस्तानीकरण की ओर बढ़ते हुए कदम हैं क्योंकि देश की सत्ता इस असंतोष को पहचानने से ही इंकार कर रही है।
अली खमैनी ने हिजाब को लेकर हो रहे आन्दोलन को पश्चिम के दिमाग की उपज कहा है। खमैनी के अनुसार ईरान में हो रहे इस आन्दोलन के पीछे ब्रिटेन और विशेषकर अमेरिका है, जिन्होंने अपनी मीडिया को यह आदेश दिया है कि वह ईरान में महिलाओं के लिए निर्धारित किए गए ड्रेस कोड पर हमला करें। उनका कहना है कि दुश्मन चाहता है कि लोगों का यकीन हिल जाए जो इस्लामी शासन का आधार है। अर्थात हिजाब और विज्ञापन दोनों को लेकर सरकार का दृष्टिकोण महिला विरोधी ही है। परन्तु बात मात्र ईरान तक ही सीमित नहीं है ऐसा नहीं है कि बात मात्र ईरान तक सीमित हो। हिजाब को लेकर भारत में जो हो हल्ला मचा था, वह भी देखने योग्य ही था। विश्व में सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया में भी हिजाब को लेकर कट्टरता बढ़ रही है और अब वहां पर गैर-मुस्लिम लड़कियों को भी हिजाब के दायरे में लाया जा रहा है।
यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि हिजाब एक इस्लामी परम्परा है और इसे गैर मुस्लिमों पर सहज नहीं थोपा जा सकता है, परन्तु इंडोनेशिया में कुछ ईसाई महिलाओं को भी हिजाब पहनने के लिए या फिर नौकरी छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। क्रिस्चियनपोस्ट के अनुसार मुस्लिम बाहुल्य इंडोनेशिया में 34 राज्यों में से 24 राज्यों में महिलाओं एवं बच्चियों के लिए बहुत कठोर ड्रेस कोड बना दिया गया है और इनमें ईसाई महिलाएं भी सम्मिलित हैं। जो लोग इनका पालन नहीं करेंगी उन्हें दंड भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

ह्यूमेन राईट वाच से एक हालिया रिपोर्ट यह कहती है कि इंडोनेशिया के 24 मुस्लिम बहुल प्रांतों में लगभग 150,000 स्कूल वर्तमान में स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों नियमों के आधार पर अनिवार्य जिलबाब (हिजाब) नियम लागू करते हैं। कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम क्षेत्रों जैसे आचे और पश्चिम सुमात्रा में तो गैर-मुस्लिम लड़कियों को भी हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया गया है। वहीं, मीडिया के अनुसार इंडोनेशिया में तेजी से मजहबी पहनावा अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि इसके कारण कुछ महिलाओं और बच्चियों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ा है क्योंकि उन्हें वह पहनने के लिए बाध्य किया जा रहा है।
यह भी कहा जा रहा है कि सरकार की नीति के कारण इस समय इंडोनेशिया की 75प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या हिजाब पहन रही है, जबकि मात्र 5 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या ही 1990 के दशक के अंत तक हिजाब पहनती थी। तो क्या यह माना जाए कि दिनों दिन मुस्लिम समाज में महिलाओं को लेकर कट्टरता बढ़ती जा रही है? क्या यह माना जाए कि अब हर देश में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब में ही कैद रहना होगा? या फिर यह पहला कदम है? यह प्रश्न इसलिए उठ रहा है क्योंकि ईरान में भी पहले हिजाब को अनिवार्य किया गया था और अब विज्ञापनों में भी महिलाओं के आने पर रोक लगा दी गयी है। ऐसा लग रहा है जैसे सार्वजनिक विमर्श से महिलाओं को विलुप्त करने का कार्य किया जा रहा है, जैसा अफगानिस्तान में हो चुका है और अब वहां पर लड़कियों को मात्र इसलिए ही दंड दे दिया जाता है क्योंकि उन्होंने मुस्करा भर दिया है।
क्या दुनिया का कोई भी देश, कोई भी मुल्क इस बात की कल्पना भी कर सकता है कि वहां की महिलाओं को मात्र इसलिए दंड दिया जाएगा कि वह मुस्करा रही हैं? परन्तु एक देश ऐसा है जहां पर औरतों और बच्चियों को मात्र इसलिए दंड मिलता है कि वह मुस्करा रही हैं, जहां दुनिया भर की बच्चियां अपने स्कूल में पढ़ना चाहती है आगे बढ़ना चाहती हैं, वहीं एक मुल्क ऐसा है जहां पर लड़कियां इसलिए फेल होना चाहती हैं, जिससे वह कक्षा 6 को दोबारा पढ़ सकें क्योंकि वहां पर कक्षा 6 के बाद लड़कियां स्कूल नहीं जा पाएंगी। सोचिये ऐसा हो रहा है! ईरान से लेकर अफगानिस्तान तक हिजाब के मामले पर विज्ञापनों में न आने को लेकर और अब अफगानिस्तान में लड़कियों को तालिबानियों द्वारा बाजार में पीटा भी जाता है क्योंकि उन्होंने कपड़े उनके अनुसार नहीं पहने थे।
सोलह वर्षीय एक लड़की के गार्जियन को बताया कि मैंने औरतों को सरे बाजार में पिटते हुए देखा है और आप सोच भी नहीं सकते कि ऐसी घटनाओं के बाद वह कितनी टूट गईं थीं! उसने बताया कि वह लड़कियों को केवल मुस्कराने और तेज बोलने तक पर पीटते हैं। मुस्लिम महिलाओं की कहानी ईरान, इंडोनेशिया से लेकर अफगानिस्तान तक हिजाब और तमाम प्रतिबंधों में सिमट रही है, परन्तु दुर्भाग्य की बात यही है कि यही मीडिया जो पूरे विश्व में या कहें ईरान, इंडोनेशिया और अफगानिस्तान में कथित मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न पर रोता है। वही मीडिया भारत में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब का समर्थन करता है और भारत सरकार और भाजपा को कोसता है! जिस कथित शोषण का विरोध करता है, उसी में भारत में मुस्लिम महिलाओं को धकेलना चाहता है जैसा हमने कर्नाटक में हिजाब आन्दोलन में देखा था।
लेखिका और अनुवादक, दिल्ली फिल्म सेंसर बोर्ड की सलाहकार सदस्य, पुस्तकें- महानायक शिवाजी, नेहा की लव स्टोरी
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