देहरादून। कुछ समय पहले “पाञ्चजन्य” ने उत्तराखंड में वन भूमि पर अवैध मजारों की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कार्रवाई करते हुए वन विभाग के उच्च अधिकारियों से इस बारे में रिपोर्ट तलब की थी। वन विभाग ने अपनी जमीन पर बनी अवैध मजारों को हटाने का अभियान शुरू कर दिया है।
“पाञ्चजन्य” ने अपने एक कार्यक्रम में उत्तराखंड में अवैध मजारों के बारे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सवाल किया था, जिस पर उन्होंने कहा था कि वे इस मामले को खुद संज्ञान ले रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि वे बोलने में कम और काम में ज्यादा विश्वास करते हैं। “पाञ्चजन्य” ने आज अपनी खबर का और मुख्यमंत्री धामी के कहे का असर साफ तौर पर देखा। नैनीताल और उधम सिंह नगर जिले के बीच कालाढूंगी और बाजपुर के बीच बनी अवैध मजार, उनके बोर्ड, गोलक वहां नहीं दिखे। इन सभी को वन विभाग के अधिकारियों ने वहां से हटा दिया है। अब न तो वहां कोई मजार है और न ही वहां अवैध रूप से काबिज लोग नजर आए।
जानकारी के मुताबिक वन विभाग के उच्च अधिकारियों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यालय से ये निर्देश मिले थे कि वे अपने अपने क्षेत्रों या जंगलों के भीतर बनी अवैध मजारों और धार्मिक स्थलों के बारे रिपोर्ट दें। इसके बाद से इस मामले में सोया हुआ वन विभाग जागा और आनन-फानन इन अवैध कब्जों को हटाया गया। ऐसा इसलिए भी किया गया कि अवैध मजारों की खबर वायरल होने के बाद सबसे ज्यादा किरकिरी वन विभाग की ही हो रही थी और सीएम कार्यालय से रिपोर्ट मांगे जाने के बाद विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को ये भय था कि कहीं उनके खिलाफ जांच न बिठा दी जाए।
इसलिए वन विभाग ने अवैध मजारों को साफ करना शुरू कर दिया। “पाञ्चजन्य” ने स्वयं मौके पर जाकर ये पाया कि बहुत से स्थानों से मजारें गायब हैं। यानी खबर का असर साफ दिखाई दिया और मुख्यमंत्री धामी ने इस मामले को गंभीरता से लिया।
मुस्लिम बरेलवी समुदाय बनवाता है मजारें
मजारें और दरगाह के मामलों को लेकर मुस्लिम समुदाय दो फाड़ है। सुन्नी मुसलमान बिरादरी देवबंद से ताल्लुक रखती है। देवबंद से 1968 में एक फतवा जारी किया गया था कि किसी भी मौलवी, मुफ्ती या किसी भी विशेष मुस्लिम व्यक्ति की अलग से कोई कब्र या मजार नहीं बनाई जाएगी। ऐसा करना मजहब के खिलाफ माना जाएगा।
मुस्लिमों का एक और तबका जिन्हें बरेलवी कहा जाता है, दरगाह मजार को मानता है और देश भर में इन्हें अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार भी माना जाता है। उत्तराखंड में हरी पगड़ी पहने इसी तबके से जुड़े लोग ही अवैध मजारों के जरिए वन विभाग की जमीन पर कब्जा करने में लगे हुए हैं।
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