जिम कॉर्बेट पार्क । देश में बाघों की आबादी बढ़ रही है, वहीं बाघों की मौत भी चिंता का कारण बन रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में बाघों की संख्या तीन हजार के आसपास है, जबकि पिछले छह महीने में विभिन्न कारणों से 74 बाघों की मौत हुई है।
विश्व बाघ दिवस के दिन भारत में बाघों के संरक्षण की चर्चा जरूर होती है। वर्ष 2018 के बाद अब 2022 में बाघों की संख्या का आंकड़ा आने वाला है। संभवतः इस बार संख्या तीन हजार के पार हो जाएगी। देश में गिनती के बाघ रह गए हैं, इस बात की चिंता करते हुए देश में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के 53 जंगलों को टाइगर रिजर्व बनाया गया और बाघों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का भी गठन किया गया। एनटीसीए देश के सभी टाइगर रिजर्व पर निगरानी रखती है और उन्हे प्रबंधन में सहायता करती है।
यही वजह है कि भारत में 2010 साल में 1706 बाघ थे, 2014 में इनकी संख्या 2226 हो गई थी और 2018 में ये संख्या बढ़कर 2967 तक जा पहुंची, वर्तमान में बाघों की संख्या तीन हजार से अधिक बताई जा रही है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि 2018 में हुई बाघों की गिनती में एक साल से छोटे बाघों को गिना नहीं जाता जो अब बड़े हो चुके हैं।
एनटीसीए के पास पिछले बीस सालों का हर दिन का आंकड़ा है कि कहां बाघ की मौत हुई कहां बाघिन ने बच्चों को जन्म दिया। बाघ प्राधिकरण के द्वारा हर टाइगर रिजर्व में सीसीटीवी के जरिए निगरानी की जाती रही है। पिछले तीन सालो में देश में 329 बाघों की मौत हुई है यानि हर तीसरे दिन एक बाघ का शव मिला है। सबसे ज्यादा मौतें टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में हुई हैं। पिछले छह सालों में मध्य प्रदेश में 170 बाघों की मौत हुई है और पिछले छह महीने में इस राज्य में 27 बाघों की मौत का रिकॉर्ड एनटीसीए ने दर्ज किया और मध्य प्रदेश सरकार से अपनी नाराजगी भी जाहिर की है। बाघों की उम्र जंगल में दस से बारह साल तक की होती है। जब पांच से सात साल के बाघों की मौत होती है तो राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण अपनी नाराजगी जरूर जाहिर करता है, एमपी में हुई बाघों की मौतों पर भी प्राधिकरण की नाराजगी इस वजह से थी।
उत्तराखंड में पिछले 21 सालों में 144 बाघों की मौत हुई, लेकिन यहां बाघों की संख्या में खासी वृद्धि भी हुई। 2018 में उत्तराखंड के टाइगर रिजर्व में 442 बाघों की संख्या दर्ज हुई, यहां टाइगर रिजर्व से लगे हुए वेस्टर्न सर्कल में भी दो दर्जन से ज्यादा बाघ दिखाई दिए। माना जाता है कि बाघों का भी अपना-अपना क्षेत्र होता है। जवान बाघ, बूढ़े बाघ को अपने इलाके में आने नहीं देता, लिहाजा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से जवान बाघों ने उम्रदराज बाघों को अपने जंगल से बाहर कर दिया है। यही वजह है कि इस वक्त बाघ तराई, वेस्टर्न सर्किल और पहाड़ों के जंगलों तक पहुंच गए हैं।
वर्तमान में उत्तराखंड में हर साल 26 बाघ औसतन बढ़ रहे हैं। अकेले कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में ही बाघों की संख्या करीब 250 दर्ज की गई है। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसके सभी तेरह जिलों में बाघों की मौजूदगी सीसीटीवी में दर्ज हुई है। उत्तराखंड में राजा जी और कॉर्बेट, दो टाइगर रिजर्व हैं जिनकी निगरानी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण करता है। उत्तराखंड सरकार ने कई बार ये प्रस्ताव केंद्र और प्राधिकरण को भेजा है कि वो टाइगर रिजर्व से बाहर रहने वाले बाघों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए भी गाइड लाइन तैयार करे और फंड जारी करे, किंतु इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है और इन बाघों की सुरक्षा भगवान भरोसे चल रही है।
29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे मनाया जाता है
इस दिन देश दुनिया में बाघों की संख्या, संरक्षण, सुरक्षा पर चर्चा होती है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण अपनी घोषणाएं करता है और बाघों के संरक्षण के विषय में अपनी कार्य योजना भी पेश करता है।
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