गत 18 जुलाई को पुणे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और भारतीय शिक्षण मंडल के संस्थापक सदस्य श्री विनायक विश्वनाथ कानिटकर का निधन हो गया। 83 वर्षीय श्री कानिटकर कुछ दिनों से अस्वस्थ थे। श्री कानिटकर ने संघ में अनेक दायित्वों को निभाया था। कुछ समय से वे पुणे के कौशिक आश्रम में रहते थे।
श्री कानिटकर का जन्म 5 सितंबर, 1939 को हुआ था। उन्होंने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर किया था।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) के कार्यकर्ता के नाते 1961 से 1963 तक कार्य करने के बाद वे संघ के प्रचारक बने थे। कुछ समय तक कोल्हापुर जिले के करवीर और पन्हाला में संघ कार्य करने के बाद 1965 में वे असम चले गए। वहां उन्होंने कामरूप जिला, गुवाहाटी नगर, तेजपुर संभाग आदि स्थानों पर कई वर्ष तक कार्य किया।
श्री कानिटकर ने 1984 से 12 वर्ष तक असम के प्रांत सह-बौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद उन्होंने 1996 से 2003 तक इतिहास संकलन योजना में कार्य किया। फिर 2003 से 2007 तक भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संयुक्त संगठन मंत्री और 2007 से 2016 तक संगठन मंत्री के रूप में कार्य किया। लगभग पांच दशक से अधिक समय तक संघ कार्य करने के पश्चात् 2016 में श्री कानिटकर सभी दायित्वों से मुक्त हो गए थे।
श्री कानिटकर अंतिम सांस तक संघ कार्य करते रहे। अस्वस्थ होने के बावजूद वे हर कार्य में दिलचस्पी लेते थे। उन्होंने शैक्षिक संगठन भारतीय शिक्षण प्रसारक मंडली में बहुमूल्य योगदान दिया। उनके निधन पर संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य प्रो. अनिरुद्ध देशपांडे ने कहा, ‘‘विनायकराव कानिटकर जी उन कुछ आरंभिक स्वयंसेवकों में से थे, जो संघ कार्य के लिए पूर्वांचल गए थे।
आज हम असम से अरुणाचल प्रदेश तक संघ का जो कार्य देखते हैं, उसकी नींव रखने वाले लोगों में से वे एक थे। उन्होंने बहुत प्रतिकूल परिस्थितियों में कार्य किया। श्री कानिटकर एक असाधारण और बहुत ही सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे। उनका स्वास्थ्य पिछले कुछ वर्षों से ठीक नहीं था। हालांकि, वे शाखा में आकर सभी का मार्गदर्शन करते थे। उनके जाने से हमने एक वरिष्ठ कार्यकर्ता खो दिया है।’’
पाञ्चजन्य परिवार की ओर से स्व. कानिटकर को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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