नैनी सरोवर में प्राकृतिक रूप से जल शोधन के लिए डाली गई कॉमन कॉर्प मछली अब समस्या पैदा करने लगी है। नैनी झील पर लगातार शोध कर रहे पंत विश्वविद्यालय के मत्स्य वैज्ञानिकों ने इस बारे में जिलाधिकारी और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर हालात को समझाया है।
नैनीझील में कुछ साल पहले महाशीर ,सिल्वर कॉर्प और कॉमन कॉर्प मछलियों के साथ साथ घोंघे कछुए आदि जीव जल शोधन के लिए डाले गए थे और यहां मछलियों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
नैनी झील में गाद कीचड़ और काई की वजह से झील के जीवन को लेकर सवाल उठने लगे थे,करीब पन्द्रह साल पहले झील के पैंदे तक ऑक्सीजन ,एक प्लांट के जरिए पहुंचाया गया और ये प्रक्रिया आज भी चल रही है। ये सब पंत विश्व विद्यालय के मत्स्य वैज्ञानिकों की सिफारिश पर किया गया। वैज्ञानिकों ने शीतल जल की मछलियों के प्रजातियों को भी यहां अपनी हैचरी से तैयार कर लाया गया, ये मछलियां प्राकृतिक रूप से जल को साफ रखती है।
पंत विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने हाल ही में एक शोध के बाद अपनी रिपोर्ट में बताया कि झील में कॉमन क्रॉप मछली जिनका आकार बड़ा हो चुका है इस समय झील की दीवारों को कुरेद कर अपना भोजन ले रही है,जिससे भविष्य में नुकसान हो सकता है।
वैज्ञानिक प्रो आशुतोष मिश्र अपने सहयोगियों के साथ अपने साक्ष्य डीएम नैनीताल के सम्मुख रखे जिसके बाद डीएम धीराज गर्बयाल ने अन्य अधिकारियों को बुलाकर विचार विमर्श किया।
प्रो मिश्र ने बताया कि अब समय आगया है कि झील से कॉमन कॉर्प मछली को बाहर निकाल लिया जाए इसके पीछे उन्होंने ये भी तर्क दिया कि एक समय के बाद ये प्रजाति दूसरी प्रजाति को अपने साथ पनपने भी नही देती, उन्होंने इस बारे में कश्मीर डल झील और मणिपुर लोकटस लेख का उदहारण भी दिया, जहां इस मछली ने स्नो टाउड को खत्म कर दिया था।
प्रो मिश्र के मुताबिक बड़ी हो चुकी कॉमन कॉर्प प्रजाति की वजह से नैनी झील में कार्बन, नाइट्रोजन और फास्फोरस भी बढ़ रहा है।जो कि झील की सेहत के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता।
डीएम ने मत्स्य वैज्ञानिकों के रिपोर्ट पर गौर करते हुए वे कॉमन कॉर्प मछली को बाहर निकालने की अनुमति देने को तैयार है,लेकिन मत्स्य वैज्ञानिकों को ये भी राय देनी होगी कि हम ऐसा कैसे करें? उन्होंने कहा ये बात बेहद जरूरी है कि अन्य प्रजाति की मछलियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचे
उन्होंने कहा कि इस बारे में मछली पकड़ने वाले मछुआरों से पहले चर्चा कर ली जाए,क्योंकि ये आसान काम नही है।
बरहाल जिला प्रशासन ने झील के भविष्य की सुध लेते हुए इस बारे में एक कार्य योजना बनाने के लिए मत्स्य वैज्ञानिकों और जिला प्रशासन, नगर परिषद के अधिकारियों की एक समिति बनाने का फैसला लिया है, जोकि जल्द ही इस समस्या के समाधन के उपाय सुझाएगी।
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