इंदौर में आनंदम बाल गोकुलम संस्कार केन्द्र नौनिहालों के बीच संस्कार के बीज बोने में जुटा। यहां संस्कार और नैतिक मूल्यों के साथ राष्ट्र स्वाभिमान की शिक्षा देने के साथ बच्चों में रचनात्मक गुण विकसित किए जाते हैं
आजकल जिस उम्र के नौनिहाल मोबाइल में कार्टून और गेम खेल कर अपना समय गुजारते हैं, वहीं इंदौर में उसी उम्र में कुछ बच्चे संस्कृत के श्लोक, रामचरितमानस की चौपाइयां और दोहे न सिर्फ बोलते और सुनाते हैं, बल्कि उनका भावार्थ भी समझाते हैं। बच्चों के इस बौद्धिक विकास के पीछे आनंदम बाल गोकुलम संस्कार केंद्र का बहुत बड़ा योगदान है।
आज के दौर में हजारों रुपये बतौर फीस वसूलने वाले प्ले स्कूल भी बच्चों के अंदर संस्कार विकसित नहीं कर पा रहे। वहीं, इंदौर के दत्त नगर कैंट रोड पर संचालित आनंदम बाल गोकुलम संस्कार केंद्र बच्चों को ना सिर्फ निशुल्क शिक्षा उपलब्ध करा रहा है, बल्कि उनके अंदर संस्कार भी विकसित कर रहा है। इस संस्कार केंद्र में प्रतिदिन 1 घंटे की पाठशाला में बच्चों के अंदर संस्कार के बीज बोए जाते हैं एवं हिंदू रीति-रिवाजों, परंपराओं, त्यौहार और योगासनों का महत्व भी बताया जाता है। बच्चों को वीर अमर बलिदानियों की कहानी सुना कर उनके अंदर राष्ट्रवाद की ज्योति जलाई जाती है।
आनंदम बाल गोकुलम में लगभग 70 से अधिक नौनिहाल संस्कार और नैतिक मूल्यों के साथ-साथ शैक्षिक ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। इन बच्चों के मार्गदर्शन के लिए इस केंद्र में लगभग 18 शिक्षक और शिक्षिकाएं हैं।
‘देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें’
आनंदम बाल गोकुलम संस्कार केंद्र की संस्थापिका मीनाक्षी नवाथे ने बताया कि इस केंद्र की स्थापना 4 वर्ष पूर्व की गई थी जिसका मूल उद्देश्य बच्चों को वैभवशाली भारतीय संस्कृति से परिचित कराना है। बच्चों के लिए संस्कार केंद्र की स्थापना की प्रेरणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन राव जी भागवत से मिली। उनके विचारों को सुनकर लगा कि मैं भी देश के लिए कुछ कर सकती हूं और फिर मैंने आनंदम बाल गोकुलम के रूप में बाल संस्कार केंद्र की स्थापना की।
मीनाक्षी नवाथे के अनुसार सरसंघचालक जी ने कहा था कि जीवन में कुछ ऐसा काम करो, जिससे सभी को प्रेरणा मिले। मैंने यही विचार मन में ठान कर बाल संस्कार केंद्र की स्थापना की और नाम रखा आनंदम बाल गोकुलम। यह बाल संस्कार केंद्र मात्र संस्कार केंद्र नहीं है, अपितु एक परिवार है जिसमें दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता सभी मिलकर दूसरों से परिचित करवाते हैं। केंद्र में हम सभी मिलकर सभी भारतीय त्यौहार मनाते हैं। इस व्यस्ततम जीवन में भी बच्चे बहुत ही उत्साह से सभी कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। वे गुड़ी पड़वा, होली, रामनवमी जैसे पर्वों के साथ-साथ रक्षाबंधन, जन्माष्टमी एवं गणेश उत्सव में भी सानंद भाग लेते हैं। संस्कार केंद्र में, त्यौहार क्यों मनाए जाते हैं, बच्चों को इसके कारणों से परिचित कराया जाता है।
जहां रक्षाबंधन पर बच्चे अपने हाथों से बनी हुई राखियों का स्टॉल लगाते हैं, वहीं जन्माष्टमी पर मटकी की सजावट भी करते हैं। वे गणेश उत्सव में अपने छोटे-छोटे हाथों से माटी के गणेश बनाकर सुंदर रूप के साथ उन्हें स्थापित करते हैं एवं केंद्र में सहयोग हेतु गणपति जी बनाकर स्टाल में रखने हेतु भी देते हैं। बच्चों द्वारा बनाई गई वस्तुओं को स्टाल में रखने का उद्देश्य उनकी कलात्मकता को उभारना है। अब ये रचनात्मक क्रियाएं बच्चों का शौक बन चुकी हैं।
आज के बच्चों की दुनिया इंटरनेट तक ही सीमित है। ऐसे बच्चों का मनोरंजन, खेल, पढ़ाई सब कुछ मोबाइल पर ही होता है। वे आम घरों से जुड़ी सामान्य बातें नहीं जानते एवं उनका बौद्धिक स्तर बहुत अधिक विकसित नहीं हो पाता। बच्चों में संस्कार, राष्ट्रवाद एवं उनकी बौद्धिक क्षमता को बताना और सिखाना ही हमारा उद्देश्य है।
संघ प्रमुख बने प्रेरणा
इस केंद्र की संचालिका मीनाक्षी नवाथे ने इसके संचालन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत की प्रेरणा बताई। उन्होंने कहा कि मैं परम पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहन राव भागवत जी की बहुत आभारी हूं कि मुझे उनसे मिलकर अपने जीवन में कुछ नया करने की प्रेरणा मिली और अपने जीवन को सार्थक करने का उद्देश्य प्राप्त हुआ।
संस्कार, राष्ट्रवाद एवं बौद्धिक क्षमता
इस केंद्र को शुरू करने के उद्देश्य के बारे में मीनाक्षी नवाथे ने कहा कि आज के बच्चों की दुनिया इंटरनेट तक ही सीमित है। ऐसे बच्चों का मनोरंजन, खेल, पढ़ाई सब कुछ मोबाइल पर ही होता है। वे आम घरों से जुड़ी सामान्य बातें नहीं जानते एवं उनका बौद्धिक स्तर बहुत अधिक विकसित नहीं हो पाता। बच्चों में संस्कार, राष्ट्रवाद एवं उनकी बौद्धिक क्षमता को बताना और सिखाना ही हमारा उद्देश्य है। सोमवार से शनिवार तक शाम को 1 घंटे लगने वाली कक्षा में सोमवार को हिंदी का शुद्ध लेख, इंग्लिश डिक्टेशन, मंगलवार को चित्रकला, बुधवार को क्राफ्ट, गुरुवार को योग, शुक्रवार को श्लोक व राम रक्षा सूत्र एवं शनिवार को शतरंज की कक्षा लगती है।
लॉकडाउन में बनाईं स्वदेशी राखियां
कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन में नौनिहालों ने स्वदेशी राखी बनाकर प्रदर्शनी भी लगाई। इस पूरे रचनात्मक कार्य में लगभग 35 बच्चों ने भाग लिया जिसमें 4 वर्ष के अबीर देशपांडे, 6 वर्ष की अग्मय भोगे, 7 वर्षीय राहुल पाटिल, नौ वर्षीया आराधना जायसवाल सहित 13 साल के बच्चे भी शामिल हुए। इन सभी बच्चों ने मिलकर 300 से अधिक राखियां बनाईं। इनकी बिक्री की व्यवस्था केंद्र द्वारा की गई। इस रचनात्मक कार्य के दौरान एक चुनौती यह भी थी कि किसी भी राखी की कीमत 20 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए, इसलिए बच्चों द्वारा निर्मित राखियों की कीमत 2 रुपये से लेकर 20 रुपये तक रही।
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