वाराणसी के संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे। 7 मार्च वर्ष 2006 की शाम को दस मिनट के अंतराल पर हुए उन बम धमाकों में 18 लोग मारे गए थे और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। ऐतिहासिक संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन आतंकियों के निशाने पर था। इस मुकदमे की सुनवाई के बाद आतंकी वली उल्लाह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। वली उल्लाह की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वली उल्लाह की ओर से दाखिल अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के रिकॉर्ड को भी तलब किया है।
वलीउल्लाह प्रयागराज जनपद के फूलपुर से गिरफ्तार किया गया था। घटना के बाद एक अभियुक्त को यूपी एसटीएफ ने मुठभेड़ में मार गिराया था। विवेचना के बाद साक्ष्य संकलित किया गया और इस मामले में आरोप पत्र जनपद न्यायालय में दाखिल किया गया। वाराणसी जनपद के अधिवक्ताओं ने इस मुकदमे को लड़ने से मना कर दिया था इसलिए इस मुकदमे के ट्रायल की कार्यवाही को गाज़ियाबाद के जनपद न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। 2012 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तब सरकार ने उन आतंकवादियों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेने का प्रयास किया था। इसके बाद वाराणसी के अधिवक्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर करते इस मामले में सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा था। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा था कि क्या कल इन आरोपियों को सरकार पद्मभूषण से भी नवाज देगी।
सामाजिक कार्यकर्ता याचिकाकर्ता नित्यानंद चौबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि “संदिग्ध आतंकियों पर से मुकदमा हटाने की पहल करके क्या सरकार आतंकवाद को बढ़ावा नहीं दे रही है? यह कौन तय करेगा कि आतंकवादी कौन है? जब मामला न्यायालय में है तो बेहतर होगा कि न्यायालय ही तय करे कि आतंकी कौन है।”
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