दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एस.एन. धींगरा ने नूपुर शर्मा पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों को निरर्थक बताते हुए पीठ को आड़े हाथ लिया है और कई सवाल उठाए हैं
अलग-अलग राज्यों में दायर प्राथमिकियों को एक जगह करने की याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय की पीठ द्वारा भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा को उदयपुर हत्याकांड के लिए जिम्मेदार ठहरा देने की टिप्पणी की दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एस.एन. धींगरा ने आलोचना की है। मीडिया से एक बातचीत में उन्होंने कहा कि यदि कोई न्यायाधीश भाषण देना चाहता है तो उसे राजनेता बन जाना चाहिए। उन्होंने यह भी पूछा कि पीठ ने अपनी मौखिक टिप्पणियों को लिखित आदेश में शामिल क्यों नहीं किया?
न्यायमूर्ति धींगरा के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नूपुर शर्मा को सत्तारूढ़ दल की सदस्य होने के नाते अपनी ताकत का अहंकार था और उन्होंने लापरवाही के साथ वे टिप्पणियां कीं। मेरे विचार से सर्वोच्च न्यायालय पर भी यही बात लागू होती है। सर्वोच्च न्यायालय स्वयं बिना जांच के किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता। सर्वोच्च न्यायालय के सामने केवल प्राथमिकियों के स्थानांतरण का मामला था न कि नूपुर के विरुद्ध कोई आरोप साबित करने का। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सर्वोच्च न्यायालय ऐसी मौखिक टिप्पणियां कैसे कर सकता है? यदि सर्वोच्च न्यायालय में माद्दा होता तो वह उन टिप्पणियों को अपने लिखित आदेश में देता।
न्यायमूर्ति धींगरा ने कहा कि इससे देश में बहुत गलत संदेश गया है कि सर्वोच्च न्यायालय स्वयं अपनी शक्ति के मद में चूर है और उसे अपनी इच्छा से कुछ भी बोलने से कोई रोक नहीं सकता। पीठ ने यह भी कहा है कि याचिकाकर्चा मजिस्ट्रेट न्यायालय में क्यों नहीं गई? ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब सर्वोच्च न्यायालय ने अमीरों की याचिका पर सुनवाई के लिए मजिस्ट्रेट न्यायालय और उच्च न्यायालयों को दरकिनार किया है। यहां तक कि आधी रात को भी सुनवाई की है। सर्वोच्च न्यायालय बिना किसी तथ्य को देखे और जाने ऐसी टिप्पणी कैसे कर सकता है?
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों से जनता में काफी रोष है। पीठ के दोनों न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग चलाने के लिए चेंज.ऑर्ग वेबसाइट पर याचिका डाली गई है जिस पर एक दिन में 35
हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए।
न्यायमूर्ति धींगरा ने कहा कि यदि नूपुर शर्मा ने कोई आपत्तिजनक बात कही है तो यह जांचना निचले परीक्षण न्यायालयों का काम है कि उनकी टिप्पणियों का कोई आधार है या वे किसी अन्य चीज से प्रेरित हैं। यदि टिप्पणी गलत साबित होती है तो परीक्षण न्यायालय उन्हें सजा सुनाएगा। परंतु इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणियों से परीक्षण न्यायालयों के सामने दिशानिर्देश प्रस्तुत कर दिया है कि यदि कोई टीवी चर्चा में कुछ कहता है तो वह दोषी है और उसे, सभी एंकरों व अन्य प्रतिभागियों को देश से माफी मांगनी होगी। ऐसी चचार्एं आगे से नहीं होनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी मौखिक टिप्पणियां क्यों कीं जो निर्रथक हैं, कहीं भी दर्ज नहीं हैं और कोई भी ऐसी टिप्पणियां करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पर कार्रवाई नहीं कर सकता। ये टिप्पणियां बताती हैं कि सर्वोच्च न्यायालय नूपुर से ज्यादा शक्ति के मद में है।
पीठ की टिप्पणियों के विरुद्ध 15 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, 77 नौकरशाहों और 25 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारियों ने देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना को एक खुला पत्र लिखा है। बयान में लिखा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीय दो न्यायाधीशों ने हाल की टिप्पणियों में लक्ष्मण रेखा को पार किया है और हमें एक बयान जारी करने के लिए मजबूर किया है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों से जनता में काफी रोष है। पीठ के दोनों न्यायाधीशों के विरुद्ध महाभियोग चलाने के लिए चेंज.ऑर्ग वेबसाइट पर याचिका डाली गई है जिस पर एक दिन में 35 हजार लोगों ने हस्ताक्षर किए।
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