सुविधाजनक व्याख्या का कड़वा सच
Friday, August 19, 2022
  • Circulation
  • Advertise
  • About Us
  • Contact Us
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
SUBSCRIBE
No Result
View All Result
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
No Result
View All Result
Panchjanya
No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • संघ
  • Subscribe
होम भारत

सुविधाजनक व्याख्या का कड़वा सच

संविधान हम भारतीयों के दैनिक जीवन का हिस्सा है। यह न आग्रह की विषय वस्तु है, न विज्ञापन की। यह सभ्यता की अक्षुण्णता की विषय-वस्तु है।

हितेश शंकर by हितेश शंकर
Jul 12, 2022, 11:34 am IST
in भारत, सम्पादकीय
Share on FacebookShare on TwitterTelegramEmail

संविधान हम भारतीयों के दैनिक जीवन का हिस्सा है। यह न आग्रह की विषय वस्तु है, न विज्ञापन की। यह सभ्यता की अक्षुण्णता की विषय-वस्तु है। न्याय और न्यायपूर्णता उसका अविभाज्य अंग है। कम से कम उस अक्षुण्णता का तो ध्यान रखा जाना चाहिए

जब ‘सच’ की बात होती है, तो कई बार ‘कड़वा’ शब्द उसके पहले विशेषण के तौर पर जुड़ जाता है- ‘कड़वा सच’। दुनिया के सबसे लंबे-चौड़े संविधानों में से एक भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार का भी उल्लेख है, और मौलिक कर्तव्यों का भी। दुनिया भर के जिन भी संविधानों से प्रावधान, विचार और बाकी चीजें हमने अपने संविधान के लिए उधार ली हैं-उनमें से भी कई में इस तरह की बातें हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने निश्चित रूप से बहुत श्रम और शोध करके इस संविधान का निर्माण किया है। लेकिन शायद कई प्रश्न उस समय तक ‘विजुअल रेंज’ में नहीं थे।

एक सभ्य समाज के लिए संविधान एक मधुर तत्व होना चाहिए। हम संविधान दिवस मनाते हैं, गणतंत्र दिवस पर मिठाई भी खाते-खिलाते हैं। फिर बात ‘कड़वा’ शब्द से शुरू क्यों हो रही है? क्या 72 वर्ष बाद, संविधान का गुब्बारा अब उन इलाकों से, प्रक्रियाओं से, परिस्थितियों और लोगों से गुजर रहा है, जिनकी संविधान का निर्माण करते समय कल्पना करना शायद असंभव ही था?

संविधान सभा में किसने क्या कहा था-इस बहस में पड़ना विषय नहीं है। एक प्रश्न यह है कि क्या हमारे संवैधानिक मौलिक अधिकारों में यह भी प्रावधान है कि हमें संविधान के किस बिन्दु को स्वीकार करना है और किसे स्वीकार करने से हम इनकार कर सकते हैं? जैसे, मान लीजिए कि चोरी करने को मौलिक अधिकार मानने का अधिकार हो, और उसकी सजा वाले प्रावधान को नकार देने-नहीं मानने, मानने से इनकार कर देने का भी अधिकार हो। फिर क्या होगा?

Download Panchjanya App

जो होगा, अंग्रेजी में होगा। शायद इसलिए कि देशज प्रजा को उसे न समझने का अधिकार होगा, न उस पर टिप्पणी करने का। जैसे एक बार अंग्रेजी में कहा गया था-संविधान के मूलभूत ढांचे को संविधान में संशोधन करके भी बदला नहीं जा सकता। और यह फैसला सुनाना, फैसला सुनाने वालों का मौलिक अधिकार है। माने यह संविधान का अपना मौलिक अधिकार हुआ। और संविधान के रखवालों ने एक और मौलिक अधिकार स्वयं को दे दिया। वह यह कि यह मूलभूत ढांचे वाला मौलिक अधिकार कब मानना है, और कब नहीं, यह भी उनका मौलिक अधिकार होगा। उदाहरण के लिए कॉलेजियम व्यवस्था किस तरह संविधान के मूलभूत ढांचे के अनुरूप है-यह सवाल खारिज करने का मौलिक अधिकार कॉलेजियम व्यवस्था ने स्वयं ही स्वयं को दिया हुआ है।


एक और उदाहरण देखिए। हम यह तो अपेक्षा रखते हैं कि लोग संविधान के प्रति, न्यायपालिका के प्रति आस्था का भाव रखें, उसे ईश्वर तुल्य सम्मान दें। यह एक मौलिक अधिकार है। लेकिन साथ ही हम कोई ऐसा काम करना जरूरी न समझें, जिससे जन में विश्वास पैदा हो सकता हो, यह भी हमारा मौलिक अधिकार हो।

हम तर्क की जगह कुतर्ककरें-यह एक मौलिक अधिकार होना चाहिए। और हमारे कुतर्कको तर्क की तरह सम्मान दिया जाए- यह भी मौलिक अधिकार होना चाहिए।

हम दुनिया भर से पारदर्शिता की अपेक्षा रखें-यह एक मौलिक अधिकार होना चाहिए।
लेकिन जब हमारे गंदे कपड़ों की सार्वजनिक धुलाई हो, तो लोग नाक-कान-मुख और आंखें बंद कर लिया करें- यह भी मौलिक अधिकार होना चाहिए।

हमारी हर बात को जनता देववाणी माने-यह एक मौलिक अधिकार होना चाहिए। और हम सिर्फ उलझी अंग्रेजी के ऐसे साहित्य की रचना करें, जो किसी के अनुरूप न हो-यह भी मौलिक अधिकार होना चाहिए।

लेकिन समस्या यह है कि अब अनुवाद होने लगा है। जन की भाषा में। सिर्फ भाषा का नहीं, मन्तव्य का भी। संविधान हम भारतीयों के दैनिक जीवन का हिस्सा है। यह न आग्रह की विषय-वस्तु है, न विज्ञापन की। यह सभ्यता की अक्षुण्णता की विषय-वस्तु है। न्याय और न्यायपूर्णता उसका अविभाज्य अंग है। कम से कम उस अक्षुण्णता का तो ध्यान रखा जाना चाहिए। ‘सच’ के साथ ‘कड़वा’ शब्द विशेषण के तौर पर अकारण नहीं जुड़ता है।
@hiteshshankar 

Topics: कड़वा सचसंविधानमौलिक अधिकार
Share1TweetSendShareSend
Previous News

हामिद अंसारी के न्योते पर आया भारत, लौटकर ISI को दी सूचनाएं, पाकिस्तान के पत्रकार का बड़ा दावा

Next News

सुरक्षा बलों ने अवंतीपोरा में जिन आतंकियों को मार गिराया, उनके पास से अमेरिका में बनी राइफल बरामद

संबंधित समाचार

संविधान की मूल आत्मा को विपक्ष ने दी चुनौती

संविधान की मूल आत्मा को विपक्ष ने दी चुनौती

संविधान पर भरोसा करें मुसलमान

संविधान पर भरोसा करें मुसलमान

देश संविधान से चलेगा, शरीयत से नहीं

देश संविधान से चलेगा, शरीयत से नहीं

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

वह संत, जिनकी वाणी का आधार बनी गाय

वह संत, जिनकी वाणी का आधार बनी गाय

POJK की सड़कों पर उतरे लोगों की एक ही मांग, बंद करो Kashmir से काटने की चाल

POJK की सड़कों पर उतरे लोगों की एक ही मांग, बंद करो Kashmir से काटने की चाल

विभाजन: गोलियों की तड़तड़ाहट

विभाजन: गोलियों की तड़तड़ाहट

गंदा तालाब, सपा की सोच का प्रतीक था, अमृत सरोवर भाजपा की सोच को दर्शाता है : सीएम योगी

वो लोगों को बांटते थे, हम जोड़ते हैं : सीएम योगी

मदरसा शिक्षकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने से हाई कोर्ट का इंकार

ज्ञानवापी : मुकदमे में देरी करने पर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी पर जुर्माना

विभाजन : मकान में लगा दी आग

विभाजन : मकान में लगा दी आग

Israel ने रामल्लाह में की जबरदस्त कार्रवाई, 7 फिलिस्तीनी NGO कार्यालयों पर ताले ठोके

Israel ने रामल्लाह में की जबरदस्त कार्रवाई, 7 फिलिस्तीनी NGO कार्यालयों पर ताले ठोके

10 से 10 तक : मोरबी में 108 फीट ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा का अनावरण करेंगे प्रधानमंत्री

ओडिशा : मुखबिरी के शक में माओवादियों ने की युवक की हत्या

विभाजन : मुस्लिम तरेरने लगे थे आंखें

विभाजन : मुस्लिम तरेरने लगे थे आंखें

विभाजन : शवों के साथ रहे

विभाजन : शवों के साथ रहे

  • Privacy Policy
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping
  • Terms

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • संघ
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • विज्ञान और तकनीक
  • खेल
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • साक्षात्कार
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • श्रद्धांजलि
  • Subscribe
  • About Us
  • Contact Us
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies