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झारखंड के स्कूलों में मजहबियों का बढ़ता प्रभाव! अब हाथ जोड़कर नहीं हाथ मोड़कर होगी प्रार्थना!

ताजा मामला गढ़वा जिले के कोरवाडीह का है। यहां मुस्लिम आबादी लगभग 75% तक हो गई है इसलिए अब क्षेत्र का मुस्लिम समुदाय अपनी मनमानी पर उतर आया है।

रितेश कश्यप by रितेश कश्यप
Jul 5, 2022, 11:08 am IST
in झारखण्‍ड
स्कूल में बच्चे

स्कूल में बच्चे

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झारखंड मजहबी कट्टरपंथियों के हाथ में जाता हुआ नजर आने लगा है। इसके पीछे कहीं न कहीं झारखंड सरकार की तुष्टिकरण की नीति ही है जो इन कट्टरपंथियों का मनोबल बढ़ाती जा रही है। इसी तुष्टिकरण का प्रभाव अब कई स्कूलों में भी दिखने लगा है। कभी झारखंड के सभी स्कूलों को हरा तो कभी और स्कूल के बच्चों के पोशाक के रंग को हरा करने का आदेश दे दिया जाता है। अब तो आलम ये है कि मुस्लिम आबादी के अनुसार शुक्रवार यानी जुमा के दिन को छुट्टी कर देने की मांग हो या हाथ जोड़कर प्रार्थना करने की बात हो हर मामले में अब स्कूल प्रबंधन पर आबादी के अनुसार ही निर्णय लेना पड़ रहा है। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो इन संस्थानों पर भीड़ तंत्र हावी होने का डर बना रहता है।

ताजा मामला गढ़वा जिले के कोरवाडीह का है। यहां मुस्लिम आबादी लगभग 75% तक हो गई है इसलिए अब क्षेत्र का मुस्लिम समुदाय अपनी मनमानी पर उतर आया है। अब वहां के लोगों को स्कूल में चल रहे प्रार्थना में अपने बच्चों से हाथ नहीं जुड़वाना चाहते हैं। साथ ही स्कूलों में पहले चल रही प्रार्थना भी अब नहीं होने देना चाहते। इसी मनमानी के तहत गढ़वा के कोरवाडीह स्थित सरकारी मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक योगेश राम पर दबाव देते हुए कहा गया कि स्थानीय स्तर पर मुस्लिम समाज की आबादी के अनुसार तय किया जाना चाहिए। इसके तहत कुछ वर्ष पहले स्थानीय मुसलमानों की भीड़ स्कूल में पहुंची और स्कूल प्रशासन पर दबाव बनाया गया कि बच्चे हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं करेंगे। इसके साथ ही वर्षों से गाया जाने वाला प्रार्थना “दया कर दान विद्या का..” को बंद करवा कर “तू ही राम है तू ही रहीम है…” प्रार्थना शुरू करा दी गई है। स्कूल में पहुंची भीड़ के आगे स्कूल प्रशासन को नतमस्तक होना पड़ा और अंत में अब स्कूल में जो बच्चे प्रार्थना कर रहे हैं उन्हें हाथ जोड़ने के बजाए हाथ मोड़कर प्रार्थना करने का आदेश दिया गया है।

स्कूल की तस्वीर

स्कूल के प्रधानाचार्य योगेश राम की विवशता भी साफ साफ देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि स्कूल में पहले हाथ जोड़कर प्रार्थना की जाती थी। किसी को कोई परेशानी नहीं थी। उन्होंने बताया कि गांव की मुस्लिम आबादी लगभग 75% और उनके द्वारा दबाव बनाया गया कि स्कूल के बच्चे हाथ जोड़कर प्रार्थना नहीं करेंगे। जब दबाव बढ़ने लगा तो स्थानीय मुखिया को भी बुलाया गया। उन्होंने भी समझाने का प्रयास किया, लेकिन गांव वाले नहीं माने। इसके बाद स्कूल प्रशासन को भीड़ के आगे नतमस्तक होना पड़ा। अब प्रार्थना हाथ जोड़ने के बजाए हाथ मोड़ कर किया जाने लगा है। इसे लेकर बड़े पदाधिकारियों को अवगत कराया गया था, लेकिन उन लोगों ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

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प्रधानाचार्य की बात भी कहीं न कहीं सही ही लग रही है। इसी बात को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी ने कुछ पत्रकारों को कहा था कि इस पर जांच की जाएगी, लेकिन पाञ्चजन्य के प्रतिनिधि ने जब मयंक भूषण से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि पिछले चार-पांच सालों से ऐसे ही प्रार्थना की जा रही है यह कोई बड़ी बात नहीं है। अब हाथ जोड़ लें या हाथ मोड़ लें उससे क्या फर्क पड़ता है? सरकार के निर्देशन के अनुसार ही प्रार्थना कराया जा रहा है। अब यह समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

पिछले कुछ महीनों में झारखंड सरकार की तुष्टिकरण की नीति ने पूरे झारखंड में मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का काम किया है। इसके तहत सबसे पहले तो हर जिले में उर्दू भाषा को प्राथमिकता देने की कोशिश की गई है। उसके बाद शिक्षा विभाग की ओर से सभी स्कूलों को हरे रंग से रंगने का आदेश दे दिया गया है। इसी आदेश के कुछ दिनों के बाद स्कूल के सभी बच्चों के पोशाकों का रंग भी हरा करने का आदेश दे दिया गया। गढ़वा की तरह ही एक और घटना कुछ महीने पहले जामताड़ा जिले से भी सुनने को आई थी। पिछले वर्ष 1 अक्टूबर शुक्रवार को जामताड़ा जिले के कर्माटांड़ प्रखंड अंतर्गत बिराजपुर उच्च विद्यालय में नमाज पढ़ने के लिए कट्टर वादियों ने स्कूल में तालाबंदी करवा दिया था इसके पीछे तर्क दिया था कि स्कूल में मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है, इसलिए शुक्रवार को नमाज पढ़ने के लिए स्कूल में छुट्टी दे दी जाए और रविवार के दिन स्कूल खोल दिया जाए।

जब स्कूल प्रबंधन इनकी मांगों को मानने से इंकार कर दिया तो यहां भी भीड़ तंत्र का ही सहारा लिया गया और स्कूलों को जबरन बंद करा दिया गया था। इस घटना के बाद तो जामताड़ा के उसी विद्यालय के कई हिंदू शिक्षक तो चाहते हैं कि उनका स्थानांतरण हो जाए और उनकी जान छूटे और दूसरे विद्यालय में बिना रोक-टोक बच्चों को शिक्षा दे सकें। पूरे झारखंड के कई ऐसे गांव हैं जहां मुसलमानों की आबादी बढ़ती जा रही है और वहां पर स्कूलों में अपना कानून थोपने की कोशिश की जाती है।

रितेश कश्यप
Correspondent at Panchjanya | Website

दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।

 

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Topics: मुस्लिम आबादीMuslim populationमजहबी कट्टरपंथीझारखंड के स्कूलमुस्लिमों की मनमानीreligious fundamentalistsschools of jharkhandarbitrariness of muslimsJharkhand Newsझारखंड समाचार
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