गत दिनों भोपाल स्थित भारत भवन के तत्वावधान में संत शिरोमणि रविदास (रैदास) पर केन्द्रित प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ। रविदास पर केन्द्रित भारत भवन का यह पहला आयोजन था। तीन दिन भारत भवन का पूरा परिसर रविदासमय हो गया। जगह—जगह रविदास के पदों और साखियों के आकर्षक पोस्टरो का प्रदर्शन और रविदास पर रचित पुस्तकों का कोलाज!
इस समारोह में रविदास जी के पदों के गायन की तीन संगीत सभा आयोजित की गयी, जिनमें आठ समूहों ने शिरकत की। इस अवसर पर ‘संत रविदास की अमर कहानी’ फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ। इस फिल्म की बड़ी सराहना हुई। वहां उपस्थित लोग फिल्म प्रदर्शन के दौरान तालियां बजाते रहे।
इस समारोह में तीन वैचारिक सत्र हुए। विषय था ‘संत साहित्य और रैदास।’ पहले सत्र के अध्यक्ष थे विख्यात साहित्यकार श्यामसुंदर दुबे और वक्ता थे वरिष्ठ विद्वान चन्द्रिका प्रसाद चन्द्र, वरिष्ठ कवि अनिल त्रिपाठी और समीक्षक अभिषेक शर्मा। दूसरे वैचारिक सत्र के अध्यक्ष थे प्रतिष्ठित ललित निबंधकार श्री राम परिहार और वक्ता थे वरिष्ठ कथाकार उर्मिला शिरीष, विद्वान समीक्षक कृष्ण गोपाल मिश्र और संत साहित्य के शोधकर्ता बृजेन्द्र कुमार सिंहल।
समापन सत्र की अध्यक्षता ‘संत रविदास की राम कहानी’ उपन्यास के लेखक देवेन्द्र दीपक ने की। वक्ता थे संत साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डा उदय प्रताप सिंह, वरिष्ठ कवि और समीक्षक इंदुशेखर ‘तत्पुरुष ‘ और दलित विमर्श के विख्यात हस्ताक्षर डा जयप्रकाश कर्दम।
समापन वक्तव्य में देवेन्द्र दीपक ने कहा कि सगुण भक्ति मक्खन है और निर्गुण भक्ति घी। जिसको जो रुचिकर लगे, उसका सेवन करे। रविदास की वाणी में सगुण और निर्गुण का मिलन खिचड़ी की तरह है। डा उदय प्रताप सिह ने कहा उत्तर भारत की संत परंपरा में स्वामी रामानंद केन्द्र में हैं। सामाजिक समरसता के लिए उन्होंने कबीर,रैदास,सेन आदि को दीक्षा दी। जयप्रकाश कर्दम का कहना था कि रविदास जी का जीवन चुनौती भरा था, लेकिन अपनी दृढता और साधना से उन्होंने विरोधी शक्तियों पर विजय प्राप्त की। इंदुशेखर तत्पुरुष ने भक्तमाल के साक्ष्य से रविदास को और उनकी भक्ति को परिभाषित किया।
इस त्रिदिवसीय आयोजन में जगह—जगह सभी आमंत्रित विद्वानों के चित्रों को समेकित कर प्रदर्शित किया गया था
सबके आकर्षण का केन्द्र रहा देवेन्द्र दीपक की रविदास पर रचित कविता “मैं कठौती की गंगा ” का पोस्टर।
टिप्पणियाँ