बिहार में हिंदू आबादी घटी, मुस्लिम आबादी बढ़ी

अभी कुछ दिन पहले तक जदयू के प्रवक्ता रहे डॉ अजय आलोक ने एक ट्वीट कर कहा है कि बिहार में मुसलमानों की आबादी 1.74 करोड़ से बढ़ कर लगभग 2.5 करोड़ हो चुकी है। उनके इस ट्वीट के बाद बिहार में राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है।

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संजीव कुमार

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार—बार दावा करते हैं कि बिहार में जनसंख्या वृद्धि दर घटी है। वे बिहार में जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं लाने के लिए भी यह तर्क देते हैं कि शिक्षा और जागरूकता द्वारा जनसंख्या की वृद्धि दर को कम किया जा सकता है। उनके इस तर्क में सचाई भी है। समाज में ऐसे लोगों का एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो शिक्षा और जागरूकता के बाद परिवार नियोजन के नियमों का पालन भी करते हैं। इस कारण आज करोड़ों ऐसे परिवार हैं, जहां दो या एक बच्चे हैं। लेकिन यह भी सच है कि इस वर्ग में अधिकतर लोग हिंदू हैं। वास्तव में जनसंख्या वृद्धि दर को कम करने का कार्य हिंदुओं ने किया है। यह खुलासा किसी और ने नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के ही पूर्व सिपहसालार एवं जदयू के पूर्व प्रवक्ता डॉ अजय आलोक ने किया है।
पटना के प्रसिद्ध चिकित्सक और उदयन अस्पताल के स्वामी डॉ आलोक का ट्वीट बिहार में चर्चा का विषय बन गया है। डॉ आलोक के अनुसार 11 वर्ष के बाद बिहार की जनसंख्या 13 करोड़ हो गयी मतलब 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी। प्रजनन दर 3.3 प्रतिशत से घट करके 2.9 प्रतिशत हो गया। इसका मुख्य कारण है हिंदू समाज में बढ़ती महिला शिक्षा और जागरूकता। एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में मुसलमानों की आबादी 1.74 करोड़ से बढ़ कर लगभग 2.5 करोड़ हो चुकी है, मतलब 40 प्रतिशत। अपनी बात के समर्थन के लिए डॉ आलोक ने विकिपीडिया का संदर्भ लिया है। वैसे गत दशक में बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर 2.54 रही है, जो राष्ट्रीय औसत दर 1.77 से ज्यादा है।

डॉ आलोक के ट्वीट के बाद बिहार में राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई। केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने अपने ट्वीट में डॉ आलोक के ट्वीट का समर्थन करते हुए लिखा, ”जनसंख्या नियंत्रण क़ानून को राजनीति के चश्मे से देखने की ज़रूरत नहीं है। राष्ट्र के विकास के चश्मे से देखने की ज़रूरत है। अगर 1979 में चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक कड़ा क़ानून नहीं बनाया होता तो आज दुनिया के सामने सशक्त चीन नहीं होता …..। बिहार में भाजपा लंबे समय से बांग्लादेशियों और मुस्लिम जनगणना की मांग कर रही है।”
उन्होंने 26 जून को मुज़फ्फरपुर में स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में यह बात दुहराई कि इस बार की जनगणना में बिहार में बांग्लादेशी घुसपैठियों और मुसलमानों की जातिगत जनगणना होनी चाहिए।

सोमदत्त शर्मा नामक एक व्यक्ति ने भी अपने ट्वीट में लिखा है कि नीतीश जी को सत्य आंकलन और विश्लेषण कड़ुवे लगते रहे हैं। नीतीश कुमार दशकों से तुष्टिकरण की राजनीति जो कर रहे हैं। एक अन्य ट्वीटर के अनुसार “सुशासन बाबू” जनसंख्या नियंत्रण विषय पर जागरूकता की बात करते हैं, अगर जागरूकता से ही सब कुछ हो जाता है तो @NitishKumar शराबबंदी कानून क्यूँ लाए? जागरूक करते ना सबको?

बता दें कि बिहार के बुद्धिजीवी लंबे समय से बिहार में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग कर रहे हैं। बिहार विधान परिषद के पूर्व सदस्य और स्तंभकार हरेंद्र प्रताप पांडेय इसे राज्य का सबसे बड़ा संकट मानते हैं। राज्य के सीमावर्ती 13 जिलों में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। भारत विभाजन के समय किशनगंज हिंदू—बहुल था, लेकिन अब वहाँ 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी है। इन्होंने बिहार के जनसंख्या असंतुलन पर एक पुस्तक भी लिखी है।

भूगोल से पीएचडी कर रहे सुशांत प्रकाश बिहार के विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून को पहली शर्त बताते हैं। बढ़ती आबादी के कारण विकास का लक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सकता।

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